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कार्यशाला में गंगा प्रहरियों, पशु चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया गया

गोरखपुर। शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान गोरखपुर में आयोजित कार्यशाला पशु चिकित्सक, वन विभाग के अधिकारी, प्राणी उद्यान के जू कीपर के साथ-साथ गंगा की सहायक नदियों की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए गंगा प्रहरियों को प्रशिक्षित किया गया।

कार्यशाला में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से आए हुए वैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों में से डॉ. आशीष पांडे और सौरभ ने सभी को कछुआ की हैंडलिंग, उनके प्रजनन में आने वाली समस्याओं के निराकरण के बारे में प्रशिक्षित किया।

टीएसए की डॉ. अरुणिमा ने मछली मारते वक्त जाल में फंस जाने वाले डॉल्फिन (जिसे बोलचाल की भाषा में सोंस भी कहा जाता है) को जाल से निकालकर सुरक्षित पानी में वापस छोड़े जाने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बाढ़ के वक्त जब पानी छोटे-छोटे गड्ढों में भर जाता है और बाढ समाप्त होने के बाद वह पानी उन गड्ढ़ों में रुक जाता है तो वहां भी कभी-कभी डॉल्फिन के फंसे होने की सूचना मिलती है। ऐसी परिस्थितियों में वन विभाग एवं प्राणी उद्यान को किस तरीके से कार्य करना चाहिए इसके बारे में उन्होंने सभी को प्रशिक्षित किया।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ. नीरज ने सभी प्रतिभागियों को प्राणी उद्यान में स्थित वेटलैंड में पंछियों की गणना उनके इकोलॉजी और इकोसिस्टम के बारे में प्रशिक्षित किया।

प्रशिक्षण के चौथे एवं आखिरी दिन गंगा की सहायक नदियों राप्ती, रोहिन और आमी किनारे बसे गांव के ग्रामीण जो इन नदियों शिवम एवं उस में पाए जाने वाले जलीय जंतुओं के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने में रुचि रखते हैं, उनको गंगा प्रहरी बनाते हुए प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में उनको प्रशिक्षण किट के साथ अन्य जरूरी और आवश्यक बातें बताई गई, जिससे वह नदियों के पारिस्थितिकी को बचाने में अपनी भूमिका निभाएंगे।

कार्यक्रम के समापन के अवसर पर प्राणी उद्यान के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. योगेश प्रताप सिंह ने प्रशिक्षण के महत्व को बताते भारतीय वन्य जीव संस्थान का धन्यवाद देते हुए कहा कि बिना उचित प्रशिक्षण के वन विभाग एवं चिड़ियाघर के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को आम जनमानस के बीच क्षेत्र में कार्य करते वक्त असहजता महसूस होती है। ऐसे में वैज्ञानिक तरीके से कार्य करना आवश्यक हो जाता है और यही कारण है कि प्रशिक्षण आवश्यक हो जाता है। डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि वैज्ञानिक तरीके से किसी भी कार्य को करने के बाद आम जनमानस उसकी सराहना तो करती ही है साथ ही साथ वह महत्वपूर्ण वन्य जीव है सुरक्षित हो जाता है जिसे बचाना हमारा प्रथम कर्तव्य है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. संगीता एंगोम ने सभी प्रतिभागियों को विशेष रूप से धन्यवाद देते हुए प्रशिक्षण में अर्जित ज्ञान एवं अनुभव को मौके पर कार्य करते हुए उपयोग में लाने का सुझाव दिया। प्रशिक्षण में आए सभी प्रतिभागियों को डॉ. संगीता एवं डॉ. योगेश प्रताप सिंह के द्वारा प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र दिया गया।

पूरे प्रशिक्षण में डॉ. आकाश मोहन रावत, राहुल गुप्ता, सना शेख, आयुषी, शालिनी, दीक्षा अभिमन्यु की महत्वपूर्ण भूमिका रही और सराहनीय योगदान किया।

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