इंसेफेलाइटिस के केस पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़े लेकिन मृत्यु दर कम हुई

साल के पहले पांच महीने में पिछले वर्ष के मुकाबले इंसेफेलाइटिस केस बढ़े हैं हालांकि मृत्यु दर में काफी कमी आई है। मानसून के पहले इंसेफेलाइटिस केस बढ़ना खतरे का संकेत है और सरकार व स्वास्थ्य विभाग को काफी सचेत रहने की जरूरत है।

मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में एक जनवरी से सात जून तक पूरे प्रदेश में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) के 216 केस रिपोर्ट हुए हैं। इंसेफेलाइटिस से पांच लोगों की मौत की भी सूचना है। पिछले वर्ष इसी अवधि में एईएस के 165 केस और 16 मृत्यु रिपोर्ट हुई थी। तुलनात्मक रूप से पिछले वर्ष के मुकाबले एईएस के केस तो बढ़े हैं लेकिन मृत्यु दर 10 फीसदी से गिरकर दो फीसदी हो गई है।

पूरे प्रदेश में इस वर्ष भी सबसे ज्यादा एईएस केस गोरखपुर मंडल के चार जिलों-गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर और देवरिया से रिपोर्ट हुए हैं। इन चारों जिलों में इस वर्ष एक जनवरी से सात जून तक एईएस के 114 केस और 5 मृत्यु रिपोर्ट हुई है। पिछले वर्ष इसी अवधि में इन जिलों में एईएस के 45 केस आए थे जिसमें से नौ की मौत हो गई थी। गोरखपुर मंडल के चार जिलों मंे इंसेफेलाइटिस से मृत्यु दर सिर्फ चार फीसदी है।

इस वर्ष अभी तक गोरखपुर जिले में एईएस के 19, देवरिया में 20, कुशीनगर में 40 और महराजगंज में 35 केस रिपोर्ट हुए हैं। गोरखपुर में तीन, देवरिया और कुशीनगर में एक-एक इंसेफेलाइटिस रोगी की मौत हुई हैं।

बस्ती मंडल के सिद्धार्थनगर जिले में 24, बस्ती में 8 और संतकबीरनगर में 10 केस रिपोर्ट हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में विशेषकर पूर्वांचल में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम और जापानी इंसेफेलाइटिस के केस मानसून शुरू होने के बाद बढ़ते हैं। जुलाई, अगस्त और सितम्बर महीने में सर्वाधिक केस रिपोर्ट होते हैं। जाड़े की दस्तक के साथ ही केस कम होने लगते हैं। इस वर्ष यदि शुरू के पांच महीनों में पिछले वर्ष के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक आने से चिंता स्वभाविक हैै।

नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल  प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश में एईएस और जेई के केस काफी कम हुए हैं। वर्ष 2018 में यूपी में एईएस के 3080 केस और 230 मृत्यु, वर्ष 2019 में 2185 केस और 126 मृत्यु तथा 2020 में 1646 केस और 183 मृत्यु रिपोर्ट किए गए।

इन वर्षों में जापानी इंसेफेलाइटिस के क्रमशः 323, 235 और 100 केस सामने आए। जापानी इंसेफेलाइटिस से उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में 25, 2019 में 21 और 2020 में नौ लोगों की मौत हुई।

इंसेफलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) में इंसेफेलाइटिस मरीजों की भर्ती बढ़ी  

पिछले एक दशक में जिले स्तर पर और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर इंसेफेलाइटिस इलाज के लिए सुविधाएं बढ़ाई गईं हैं। जिला अस्पतालों  में पीड़ियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू ) बनाए गए तो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर मिनी पीआईसीयू की व्यवस्था की गई। इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो पर भी इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज के लिए अलग से इंसेफलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाए गए। पहले तो ईटीसी पर काफी कम मरीज इलाज के लिए आते थे। मरीज सीधे जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज जाते थे लेकिन अब स्थिति बदली है। ईटीसी पर इंसेफेलाइटिस एडमिशन बढा है जबकि टर्सियरी लेवल के चिकित्सा संस्थानों पर एडमिशन रेट कम हुए हैं।

वर्ष 2020 में यूपी के ईटीसी पर इंसेफेलाइटिस के 31 मरीज भर्ती हुए जबकि इस वर्ष 143 मरीज भर्ती हुए। इस तरह ईटीसी पर इंसेफेलाइटिस मरीजों की भर्ती 19 फीसदी से बढ़कर 66 फीसदी हो गई है। उच्च चिकित्सा संस्थानों में इंसेफेलाइटिस मरीजों की भर्ती 2020 के मुकाबले 81 फीसदी से घटकर 34 फीसदी हो गयी है।

इंसेफेलाइटिस से सबसे अधिक प्रभावित गोरखपुर मंडल के चार जिलों-गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर में भी ईटीसी पर इंसेफेलाइटिस मरीजों की भर्ती बढ़ी है। गोरखपुर के ईटीसी पर इंसेफेलाइटिस मरीजों की भर्ती वर्ष 2020 के मुकाबले 31 फीसदी से बढ़कर 71 फीसदी हो गई है।

इंसेफेलाइटिस मरीजों के नजदीकी ईटीसी पहुंचने पर जरूरी इलाज जल्दी मिल जाता है और मरीज के गंभीर होने का खतरा कम हो जाता है।