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बागमती नदी की बाढ़ का दीर्घकालीन समाधान निकालें नेपाल और भारत

नेपाल-भारत नागरिक समाज का संयुक्त अध्ययन रपट जारी
रौतहट/ सीतामढ़ी. नेपाल और भारत के नागरिकों के एक संयुक्त दल ने बागमती नदी की बाढ़ और कटान से दोनों देशों में होने वाली हानि तथा बाढ़ बचाव के लिए बने तटबंध से उत्पन्न समस्याओं को समझने के लिए सीमावर्ती जिलों का दौरा किया और लोगों से संवाद करने के बाद रिपोर्ट जारी किया. नेपाल- भारत नागरिक संयुक्त अध्ययन दल ने अपनी रिपोर्ट में दोनों देशों की सरकार से परस्पर समन्वय के आधार पर बाढ़ का दीर्घकालीन समाधान निकालने का सुझाव दिया है. रिपोर्ट में बागमती नदी में बालू खनन की वैज्ञानिक प्रक्रिया को कड़ाई से लागू करने की मांग की गई है.
इस अध्ययन में बिहार ( भारत) के तरफ़ से अरूण दास , नागेन्द्र प्रसाद सिंह व नेपाल की तरफ़ से चन्द्रकिशोर , राजीव झा, कुशेश्वर और प्रेमचंद झा सहभागी थे. अध्ययन और जनसंवाद में नेपाल- भारत खुला सीमा संवाद समूह जनकपुर धाम , नेपाल द्वारा सहजीकरण किया गया.
जनसंवाद के क्रम में बिहार के सीतामढ़ी जिले की पूर्वी तटबंध से जुड़े गांव रूसलपुर , छनकी, जमला ,पर्सा , श्रीनगर, बसबिट्टा, ढेगं , मनियारी , बडहडवा तथा पश्चिमी तटबंध – क्षेत्र की आदमबान, मसाही, बैरगनिया में सम्पर्क- संवाद किया गया.
ठीक इसी तरह नेपाल के रौतहट जिला के ग़ौर, राजदेवी , दुर्गा भगवती, माधवनारायण , गढ़ीमाई नगर पालिका क्षेत्र में पश्चिमी ‌तटबंध की अवस्था का अवलोकन एवं बाढ़ प्रभावित लोगों से मुलाकात किया गया.  यह अवलोकन 26,27, 28 अगस्त को हुआ.
अध्ययन दल की रिपोर्ट
बागमती नदी जो नेपाल के तराई हिस्सों से होते हुए बिहार में बहती है, उसमें बाढ़ आ जानें से पिछले वर्षों में नेपाल के रौतहट और सर्लाही जिला एवं भारत बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, और खगड़िया में डुबान , कटान ओर पटान की समस्या होती रही है. इससे धन, जन ,फसल और भौतिक संरचना को नुक्सान होता रहा है.
बागमती नदी इस इलाके में शताब्दियों से बहती रही है और इस इलाके की जन-आबादी की भी पुरानी परम्परा यह साबित करती है कि बागमती नदी के साथ यहां का जीवन विकसित होता रहा है.
लेकिन इधर कुछ दशकों में तटबन्ध बागमती के बाशिंदों के बीच में एक यथार्थ बनकर खड़ा है। चूंकि बागमती का क्षेत्र दो स्वतंत्र किन्तु अभिन्न पड़ोसी देशों से होकर गुजरती है, इसमें तटबन्धजन्य कारणों से बागमती के बाशिंदे प्रभावित होते रहें हैं, इस पीड़ा के बीच बागमती के लोग आपस में बंट गए हैं ।
इधर के वर्षों में नदी का स्वरूप, पानी का स्तर, जल- जीवों की अवस्था , गाद की मात्रा में व्यापक  परिवर्तन हुआ है. बाढ़ का चरित्र भी पहले से भिन्न हुआ है.
इस आलोक में बागमती के बाशिंदों के बीच बाढ़ का व्यवस्थापन, जल प्रबंधन, आजीविका की सुरक्षा, उर्वर एवं अनुत्पादक ज़मीन जो दोनों तटबंधों के बीच में है जिसका जनहित में प्रयोग आदि मसले पर बिहार ( भारत) व नेपाल के नागरिक समाज द्वारा दोनों तरफ से जमीनी स्तर पर जनसंवाद करने के उपरांत निम्नलिखित तथ्यों को रेखांकित करते हैं .
(1) नेपाल के हिस्से में बागमती के दोनों किनारे पर बनें तटबंध अंर्तराष्ट्रीय सीमा से कुछ मीटर दूर पर ही अनिर्मित अवस्था में है जिससे बाढ़ के समय पानी नदी क्षेत्र से बाहर आकर दोनों देशों के लोगों को बूरी तरह प्रभावित करता है ।
(2) तटबंध का रखरखाव में कमी देखी गई, जोखिम क्षेत्र की पहचान कर समय रहते उसका ब्यवस्थापन में कमी की शिकायत आई।
(3) एक ही परियोजना के तहत तटबंध निर्माण के बावजूद तटबंध का स्वरुप एवं गुणस्तर में एकरुपता का अभाव दिखा ।

(4) बालू का उत्खनन नदी क्षेत्र में अराजक एवं अवैज्ञानिक तरीके से होने के कारण तटबंध पर बहाव का दवाब, कहीं कहीं कटान एवं जोखिम क्षेत्र का निर्माण हो गया है ।

(5) सुलिस गेट का उपयोग सही तरीके से सही जगहों पर नहीं हो पा रहा है ।

(6) नदी से जुड़ी हुई नहर एवं सहायक नदी क्षेत्र में तटबंध पर होने वाली दबाव का वैज्ञानिक प्रबंधन का अभाव दिखाईं पड़ा

(7) विगत में दोनों देशों की सरकारों के बीच बाढ़ ब्यवस्थापन के सवाल पर गम्भीर समन्वय नहीं होने की वजह से कई ऐसी संरचना निर्मित है जो अभी डूबान का कारण बनता है। इन बन चुकी संरचनाओं को कैसे समाज मैत्री बनाया जाए, इसपर प्राविधिक कार्यान्वयन का अभाव स्पष्ट दिखता है।
(8) विपद के समय में दोनों तरफ़ के जिला स्तरीय समकक्षी पदाधिकारियों के बीच ” हाट लाईन” संवाद की व्यापक कमी दिखाई पड़ी

(9) नदी क्षेत्र में बढ़ती बालू की मात्रा के कारण के रूप में चुरे शिवालिक पर्वत श्रृंखला एवम् चारकोशे जंगल के कटान बताया गया।
(10) बाढ़ जहां पहले पंकीली मिट्टी लाती थी, जो खेत की उर्वरा शक्ति का बढ़ाने में सहायक थी, वहीं अब प्रदूषित पानी के कारण से फ़सल का नुक़सान एवं खेतों के उर्वरक क्षमता में ह्रास ला रही है
(11) तटबंधों के लेकर दो तरह के मत दिखे
(क) कुछ लोगों का कहना था कि तटबंध बनने से हमेशा टूटने का त्रास बना रहता है । बाहरी इलाकों में जल जमाव की समस्या , बहुत ज्यादा उर्वर ज़मीन तटबंध क्षेत्र के बीच में पड़ गया है।
(ख) वहीं कुछ लोगों का मानना है कि तटबंध से इस क्षेत्र में एक स्थायित्व का भाव आया है । अब के दिनों में चूंकि बाढ़ के समय जलस्तर बढ़ता जा रहा है इस हेतु तटबंध की उंचाई बढायी जाएं ।
(12) जो लोग बाढ़ के समय तटबंध के भीतर जलस्तर बढ़ने से अभी मौजूदा तटबंध की ऊंचाई से चिन्तित है इसके लिए तटबंध को ऊंचा करने से बेहतर बालू खनन की वैज्ञानिक प्रक्रिया को कड़े ढंग से लागू करने की बात आईं।

(13) दोनों देशों के बागमती के बाशिंदों के बीच प्रेम व सद्भाव का मनोभाव पाया गया।
किसी भी क्षेत्र के लोगों में दूसरा पक्ष प्राकृतिक बिपद में पड़े ऐसी सोच नहीं पायी गई ।
लोगों का समान रूप से कहना था कि बाढ़ जो इस क्षेत्र की स्थायी शोकगीत बनती जा रही है, इसके लिए दोनों देशों की सरकारों को परस्पर समन्वय के आधार पर दीर्घकालीन समाधान की ओर अविलंब बढ़ना चाहिए ।
(14) जनसंवाद को संस्थागत स्वरुप देने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा स्थानीय सरकारों के बीच संवाद का क्रम बढ़ना चाहिए।
(15) बागमती नदी को इस क्षेत्र की सामाजिक,आर्थिक उन्नयन में सहायक व उत्प्रेरक बनाया जाए , इसके लिए बागमती के बाशिंदों के बीच सदैव नागरिक जागरूकता बनीं रहनी चाहिए।

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