दलित साहित्य एवं संस्कृति मंच के अध्यक्ष कवि सुरेश चंद का कोरोना से निधन

गोरखपुर। कवि व दलित साहित्य एवं संस्कृति मंच के अध्यक्ष सुरेश चंद का कोराना संक्रमण से मंगलवार को निधन हो गया। वे गोरखपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे।

सुरेश चंद एक सप्ताह पूर्व कोविड-19 से संक्रमित हुए थे। तबियत गंभीर होने पर उन्हें छात्र संघ चौराहा स्थित पैनेशिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी स्थिति में पहले सुधार हुआ लेकिन फिर उनका आक्सीजन लेवल नीचे आने लगा। मंगलवार को उन्होंने आखिरी सांस ली।

दो दिन पहले ही दो मई को सुरेश चंद के पिता हीरालाल का निधन हो गया था। उसके बाद सुरेश चंद के छोटे भाई मनोज की पत्नी चम्पा देवी का भी निधन हुआ।

सुरेश चंद भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत थे।

उनका कविता संग्रह ‘ हम उन्हें अच्छे नहीं लगते ’ वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने दलित साहित्य एवं संस्कृति मंच की स्थापना की थी और इस संस्था के कई कार्यक्रम कराए थे।

सुरेश चंद की संगीत में रूचि थी और वे बहुत अच्छे बांसुरी वादक थे। उन्होंने 16 मार्च को प्रेमचंद पार्क में बुद्ध से कबीर तक की यात्रा के मौके पर आयेजित सांस्कृतिक संध्या ‘ ढाई आखर प्रेम का ‘ कार्यक्रम में बांसुरी वादन प्रस्तुत किया था। अम्बेडकर जंयती पर आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने भाग लिया था।

सुरेश चंद ने 16 मार्च को प्रेमचंद पार्क में ‘ ढाई आखर प्रेम का ‘ में बाँसुरी वादन प्रस्तुत किया था

सुरेश चंद समता पर आधारित न्यायपूर्ण समाज बनाने के संघर्ष से जुड़े थे। बु़द्ध, फूले, अम्बेडकर, माक्र्स के अनुयायी सुरेश चंद शहर के साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रियता से हिस्सेदारी तो करते ही थे, जनता के मुद्दों को लेकर होने वाले आंदोलनों में भी उतनी ही सक्रियता से भाग लेते थे। वह साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सपरिवार हिस्सा लेते हैं।

बेहद विनम्र स्वभाव वाले सुरेश चंद के चेहरे पर हमेशा एक मधुर हंसी बनी रहती थी जो सबको आकर्षित करती थी।

उन्होंने अपनी एक कविता में कहा भी था कि ‘ हरापन के लिए जरूरी है हंसना’।

 

हंसो
कि हंसने से पिघलता है दुःख का पहाड़
बर्फ बनकर जम गई है
जो वेदना
हमारे दिलों में
आंसू बनकर झरता है
मोती की तरह

हंसो
कि लोग हंसते हैं तुम पर
कि कितने अनाड़ी
और निश्छल हो तुम
कि नहीं बन सकते
उनकी तरह चालाक
लोमड़ी
ओर तुम ढग लिए गए

हंसो
कि वे अभिशप्त हैं
जिंदगी के बीहड़ में
लुटेरे बन कर जीने के लिए

 

हंसो
कि चिड़िया हंसती है
और चहकती है भोर
कि फूल झरता है बसंत
के आंगन में

हंसो
कि जिंदगी मरूस्थल बन गई है
और हरापन के लिए जरूरी है हंसना

कहने दो उन्हें जो कहते हैं कि 
हंसे तो फंसे

हंसने से खतरा है जरूर
तो नहीं हंसने में
डूब मरने की पूरी व्यवस्था है
और हर खतरे से मुुक्ति के लिए
हंसना जरूरी है