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‘ विमर्श रहित कोई कहानी नहीं होती, विमर्श संवेदनशील नागरिक का हमसफर है ’

प्रेमचंद पार्क में कथाकार रवि राय के कहानी संग्रह ‘ चौथी कसम ‘ का लोकार्पण
गोरखपुर। ‘ विमर्श रहित कोई कहानी नहीं होती है। विमर्शों से साहित्य का आकाश भरा हुआ है। विमर्श संवेदनशील नागरिक का हमसफर है। ’

यह बातें गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो अनिल राय ने कथाकार रवि राय के दूसरे कथा संग्रह ‘ चौथी कसम ‘ के लोकार्पण और उस पर बातचीत के कार्यक्रम में कही। यह कार्यक्रम रविवार को दोपहर बाद प्रेमचंद पार्क में प्रेमचन्द साहित्य संस्थान द्वारा किया गया था। देर शाम तक चले इस कार्यक्रम में प्रदेश के सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही भी शामिल हुए।

प्रो अनिल राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि रवि राय की कहानी कला, सृजनात्मक कल्पनाशीलता, भाषा का प्रयोग और शैली आश्वस्त करने वाली है। वह अपनी रचना में कला विधान के उपकरणों का कौशल के साथ उपयोग करते हैं। उनकी कहानियों के संदर्भ और उनका विस्तृत विवरण हतप्रभ और अवाक करता है। कहानी ‘ अज्जू मिस्त्री ’ , ‘ बकरी ’ , ‘ हरामखोर ’ और ‘ चौथी कसम ‘ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इन कहानियों में वर्णित प्रतीकों की सामंतवादी-साम्राज्यवादी प्रतिरोध, हिन्दू मुस्लिम एकता, साहित्य की संवेदनशील व्यक्तित्व के निर्माण में भूमिका के बतौर व्याख्या की जा सकती है।

उन्होंने ‘ अज्जू मिस्त्री ‘ कहानी की विशेष रूप से चर्चा करते हुए कहा कि आज जब बीएचयू में फिरोज खान के संस्कृत शिक्षक के बतौर नियुक्ति के विरोध में जिस तरह का वातावरण रचा जा रहा है उसमें यह कहानी हिन्दू-मुस्लिम उभयनिष्ठता की धरातलीय एकता और श्रम उत्पादन संस्कृति की एकता को हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने रवि राय को कहानी दर कहानी लगातार दुहराव से सावधान करते हुए कहा कि इससे पाठकों में उब पैदा होती है। पुनरावृत्ति, पृष्ठपेषण से भाषा का सौन्दर्य अपनी स्वभाविक आस्वाद खो देता है। जरूरी है कि रवि राय अपनी रूढ़ियों से मुक्त हों।

कहानी संग्रह पर बातचीत शुरू करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी ने कहा कि रवि राय की कहानियों में पढवा लेने की क्षमता है और यह क्षमता उन्हें समकालीन कथाकारों में विशिष्ट बनाती है। सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने रवि राय को उनके दूसरे कथा संग्रह के लिए बधाई देते हुए कहा कि रवि राय ने पत्रकार रहते हुए अपनी शैली से छाप छोड़ी थी और हमारे जैसे बहुत से पत्रकारों को उन्होंने तब प्रभावित किया। बैंक की नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद हम उन्हें उसी पुराने रूप और तेवर में देख रहे हैं।

कवि प्रमोद कुमार ने कहा रवि राय की कहानियों में चुटीलापन मारक है। उन्होंने कहा कि कहानीकार को अपने यर्थाथ को अपने तरीके से कहने का शिल्प विकसित करना होता है। कहानी के बारे में यह कहना कि वह विमर्श न करे या कोई निश्चित विमर्श ही करे, ठीक नहीं है। उन्होंने रवि राय को मोनोटोनस से बचने की सलाह दी।

आलोचक कपिलेदव ने कहा कि ‘ चौथी कसम ‘ की कई कहानियों में छिपा हुआ स्त्री विमर्श है। यह स्त्री विमर्श विमर्शात्मक नारेबाजी या विमर्श का शोर मचाए बगैर है। रचना में विमर्श से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि समाज में विमर्श हमेश रहता है। कहानियों में जीवन मूल्य, वैचारिक मूल्य, संवेदनात्मक मूल्य खोजा ही जाता है। कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब रचना को पढ़ते हुए अनुभव मूल्य, वैचारिक संस्कार के साथ-साथ खास तरह की अपेक्षा की जाने लगती है। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि रचना से क्या विमर्श निकल रहा है। इस पर नहीं कि विमर्शों के अनुरूप रचना में क्या है। उन्होंने कहा कि वह रवि राय की कहानियों को पढ़ते हुए अद्भुत आनंद के अनुभव से गुजरे हैं।

वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि विमर्श तब बनता है जब वह किसी राजनीनिक चेतना व सचेतन दृष्टिकोण से जुड़़ता है। हर रचनाकार जानता है कि उसका पाठक कौन है और वह किसके लिए लिखता है। रवि राय भी इससे अनजान नहीं हैं। रवि राय की भाषा बहती हुई भाषा है। रवि पाठक के साथ-साथ खुद भी भाषा के बहाव में बहने लगते हैं। उनके पास भाषा का ज्ञान है, मनोविज्ञान की समझ है, व मध्यमवर्गीय चेतना की महीन पकड़ है लेकिन सवाल यह है कि वह इससे क्या पका पा रहे हैं ? रवि राय की एक कहानीकार के रूप में 30-35 वर्ष की यात्रा पूरी कर चुके हैं। कहानी सिर्फ भाषा या घटना नहीं होती। इसलिए उन्हें अब बड़े प्रश्नों से टकराना होगा। अब उन्हें अपने अंदर एक संपादक को जागृत करना होगा ताकि कहानी में क्या कहना है, क्या नहीं कहना है, कि कांट-छांट कर सकें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि रवि राय की कहानियों का क्राफ्ट अद्भुत है। उनमें कहन क्षमता जबर्दस्त है। उनकी कुछ कहानियां सचेत ढंग से लिखी गई हैं। उन्होंने कहा कि ‘ अज्जू मिस्त्री ’ कहानी पढ़ते हुए उन्हें स्वयंप्रकाश की कहानी ‘ अन्तरयात्रा ’ और शेखर जोशी की कहानी ‘ नौरंगी बीमार है ’ की याद आई। भोजपुरी और उर्दू भाषा का अधिक प्रयोग उनकी कहानी को विश्वसनीय ही बनाता है। इससे परहेज करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने ‘ चौराहा ’ कहानी को बहुत सुन्दर प्रेम कहानी बताया। मदन मोहन ने कहा कि विमर्श की बड़ी भूमिका है। कहानी में विमर्श आरोपित नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे अपनी स्वायतता के साथ होना चाहिए।


कवि श्रीधर मिश्र ने कहा कि ‘ चौथी कसम ’ रवि राय की ‘ बजरंग अली ’ से आगे की यात्रा है। कहानी संग्रह के आत्मकथ्य को भी कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि रवि राय की कहानियों का भाषिक विन्यास सशक्त है। उन्होंने संग्रह की सभी कहानियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि सभी कहानियां समकालीन तनाव, दबाव को व्यक्त करने की कसौटी पर खरी उतरती हैं।
शायर सरवत जमाल ने कहा कि रवि राय की कहानियों में गोरखपुरियापन है। उनकी कहानियों में उनका भोगा हुआ यथार्थ, आपबीती इमानदारी से व्यक्त हुई है।

युवा साहित्यकार आनंद पांडेय ने कहा कि रवि राय की कहानी कहने की रोचकता जहां उनकी ताकत है, वहीं उनकी सीमा भी बन रही है। उनकी कहानियों में पात्र के साथ-साथ नैरेटर भी एक ही टोन में बोल रहे हैं। कहानियों को कुछ देना चाहिए। कहानियां सिर्फ बतकही नहीं होती। उन्होंने संग्रह की कई कहानियों में दुहराव को लक्षित करते हुए कहा कि कई कहानियों का कथानक एक ही तरह का है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर राम नरेश ने कहा कि विमर्श कोई आरोपित चीज नहीं है। रचनाओं के भीतर विमर्श होता ही है क्योंकि समाज में भी विमर्श है। उन्होंने संग्रह की लम्बी कहानी ‘ चौथी कसम ‘ की विशेष रूप से चर्चा करते हुए कहा कि यह बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए जरूरी कहानी है।

उन्होंने आनंद पांडेय के इस कथन से असहमति व्यक्त की कि नैरेटर और पात्रों की एक ही भाषा होने से कहानी में अवरूद्धता आती है। उनका कहना था कि इसके बजाय यह कहानी की गति को बढ़ा देती है। उन्होंने प्रो तुलसीराम की आत्मकथा ‘ मुर्दहिया ’ की चर्चा कहते हुए कहा कि इस आत्मकथा को बड़े से बड़े आलाचकों ने सिर्फ इसलिए प्रशंसा नहीं की कि इसमें जीवन संघर्ष बड़ा है, बल्कि इसलिए भी की कि इसमें भोजपुरी और अवधी भाषा का प्रयोग बहुत सहज और सशक्त है। उन्होंने कहा कि रवि राय की कहानियां आंचलिकता के बने बने बनाए फ्रेम से थोड़ी अलग जाकर ठहरती हैं। उन्होंने कहा कि प्रमुख सवाल यह है कि कहानीकार समाज का कौन की समस्या, तनाव को डील करता है। उन्होंने कहा कि रवि राय की कहानियां सामाजिक सत्ता के विविध रूपों की कहानियां हैं। राजनीतिक सत्ता की तरफ इस कहानियों का रूख नहीं है।

कथाकार रवि राय ने कार्यक्रम में अपनी बात रखत हुए कहा कि वह भोजपुरी में अपनी कहानी कहने में ज्यादा समर्थ व सहज महसूस करते हैं। उन्होंने बताया कि वह आत्मकथा लिख रहे हैं। उनका मानना है कि अत्मकथा लिखना मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की तरह होता है जिसमें कुछ भी छिपाना नहीं चाहिए और यह सब करने के लिए अपने आप से बहुत लड़ना होता है। कार्यक्रम का संचालन प्रेमचंद साहित्य संस्था के सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।

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