कुशीनगर में तीन वर्षों में 13,205 हेक्टेयर कम हो गया गन्ना क्षेत्र

नरेन्द्र प्रताप शर्मा
कुशीनगर। एक तरफ सरकार किसानों की आय बढ़ाकर दोगुनी करने की बात कर रही है वहीं आंकड़े बात रहे हैं कि कभी चीनी का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र कुशीनगर में गन्ने की खेती सिमट रही है। पिछले तीन वर्षों में जिले में गन्ना क्षेत्र 13,205 हेक्टेयर की कम  हो गया है।
पिछले तीन वर्ष से अकेले कुशीनगर जिले के गन्ना किसानों को प्राकृतिक आपदा व चीनी मिलों की नीतियों की वजह से 567 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। प्रकृति की मार झेलने को विवश किसानों का गन्ना रकवा भी इस दौरान काफी गिरा है।जिसकी भरपाई की कोई सूरत नजर नहीं आती।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक जिले के रूप में पहचान रखने वाले कुशीनगर जिले के गन्ना किसानों ने पेराई वर्ष2018-19 में  5 चीनी मिलों को बारह सौ साठ करोड़ का गन्ना बेचा वहीँ 2020 -21 में मात्र 639 का ही गन्ना बेंचा इस प्रकार मात्र तीन वर्षो में ही जिले के किसानो को पांच सौ सरसठ करोड़ का भारी भरकम घाटा उठाना पड़ा।
वर्षवार गन्ना उत्पादन व मूल्य
वर्ष गन्ना पेराई (लाख कुंतल में ) गन्ना मूल्य  (करोड़ में)

 

 

2018-2019

 

392  1260
2019-2020

 

320 1031

 

2020-2021

 

215 693

 

इतना ही नहीं 2019-20 में जहाँ गन्ना रकवा 1,00,724 हेक्टेयर था वहीं पेराई वर्ष 2020-21 में घटकर 91,117 हेक्टेयर रह गया। वर्तमान पेराई वर्ष 2021-22 में गन्ना रकबा और कम होते हुए 87,519 हेक्टेयर पर आ पहुंचा है।

 

वर्ष गन्ना क्षेत्र (हेक्टेयर)
2019-2020 100724
2020-2021 91117
2021-2022 87510

 

इस प्रकार मात्र 3 वर्षो में गन्ने के क्षेत्रफल में 13,205 हेक्टेयर की कमी आयी है। इसके करण गन्ना किसानों को काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। उ प्र गन्ना किसान संस्थान प्रशिक्षण केंद्र पिपराइच गोरखपुर के सहायक निदेशक ओमप्रकाश गुप्ता ने बताया कि असमय व अत्यधिक वर्षा के रूप में पिछले तीन सालों से आ रही दैवीय आपदा के फलस्वरूप गन्ने की फसल पानी की अधिकता की वजह से सूख रही है जो किसानों की परेशानी का मुख्य कारण है। इसके अलावा चीनी मिलों की नीतियों की वजह से किसान अर्ली वेराइटी की एक ही प्रजाति को 0238 पर निर्भर हो गया। क्षेत्र में इसकी 90 प्रतिशत तक बुआई हुई जिसमें अब रेड रॉट नामक रोग लग गया है। उन्होंने किसानों को एक ही प्रजाति के गन्ने पर निर्भर  न रहने की सलाह देते हुए सामान्य व अर्ली की विभिन्न प्रजातियों के गन्ने की बुआई की सलाह दी।