साहित्य - संस्कृति

युवा भारत में नौजवानों के सााथ व्यवस्था के क्रूर मजाक की दास्तान है ‘ झुमहिया पोखरी ’

देेवरिया। नागरी प्रचारिणी सभागार में 12 नवम्बर को जन संस्कृति मंच की देवरिया इकाई द्वारा कवि शैलेंद्र पांडेय असीम की किताब ‘ झुमहिया पोखरी ’पर परिचर्चा आयोजित की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि झुम्हिया पोखरी बेरोजगारी और नियुक्तियों में गड़बड़ी का दंश झेल रहे लाखांे-करोड़ों नौजवानों की दास्तान है। यह न्याय के अन्याय की कहानी है। इस किताब को पढ़ते हुए युवा भारत में नौजवानों के साथ व्यवस्था द्वारा किये जा रहे क्रूर मजाक के विरूद्ध आक्रोश उत्पन्न होता है।

‘ झुमहिया पोखरी ‘ शैलेन्द्र असीम की संस्मरण की किताब है। शैलेन्द्र असीम 25वीं बिहार न्यायिक सेवा में चयनित होने के बाद भी नियुक्ति नहीं पा सके। उनके साथ 50 और नौजवान भी नियुक्त नहीं किए गए और कहा गया कि बिहार राज्य के बंटवारे के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। लम्बी न्यायिक लड़ाई के बाद भी इन युवकों को न्याय नहीं मिला और वे गुमनामी के अंधेरे में खो गए। गहरी उदासी और निराशा में डूबते उतराते इन नौजवानों के साथ-साथ अपनी दास्तां को शैलेन्द्र असीम ने इस किताब में दर्ज किया है। गोरखपुर, हाटा, देवरिया, कप्तानगंज की साहित्यिक संस्थाओं की गतिविधियों और उनसे जुड़ाव से अपने को संघर्ष के लायक बना पाने की कहानी भी इस किताब में साथ-साथ चलती है।

किताब पर चर्चा करते हुए मनोज सिंह ने कहा कि झुमहिया पोखरी नौजवानों को शिक्षा-रोजगार न दे पाने वाली देश की व्यवस्था का पर्दाफाश तो करती ही है , न्याय पाने के लिए आम आदमी के जद्दोजेहद को भी सामने लाती है।

वरिष्ठ पत्रकार अशोक चैधरी ने कहा कि झुमहिया पोखरी जितनी आत्मिक है उतना ही सार्वजनिक। प्रश्नाकुलता इसकी मुख्य खासियत है। यह किताब जनमानस की संवेदना को झकझोर कर उसे अपने परिवेश के प्रति सवाल खड़ा करने के लिये विवश करती है।

जन संस्कृति मंच, देवरिया के जिला संयोजक उद्भव मिश्र ने कहा कि यह किताब हमें बताती है कि कैसे व्यक्ति को अवसाद से बाहर निकालने और संघर्ष करने की प्रेरणा देने में साहित्य मददगार है।

कवि सच्चितानंद पांडेय ने लेखक और किताब का परिचय देते हुए कहा कि यह पुस्तक व्यवस्था के मकड़जल का पर्दाफाश करने के साथ-साथ साहित्य को जीवन का प्रेरक के रूप में प्रस्तुत करती है।

अपनी किताब के बारे में बात करते हुए कवि शैलेन्द्र पांडेय असीम ने कहा कि ‘ झुमहिया पोखरी ’ दर्द का दरिया है। वह दर्द जिससे मैं बहुत मुश्किल से निकल पाया हूं। उन्होंने अपनी गीत की दो पंक्तियों. ‘ जिनकी खुशियों को सपनों के व्यापारी लूट गए 8  जीवन के ऊँच नीच में धोखा खाकर टूट गये मैं कविता का औघड़ साधु धुन अलख जगाऊँ रे। यह पुस्तक हताश, निराश और उदास लोगों की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए लिखी गई है।

सरकारी अधिवक्ता नवनीत मालवीय ने कहा कि शीलेंद्र जज भले नहीं बन पाये लेकिन आज समाज का आईना जरूर बन गए हैं।

सभा की अध्यक्षता कर रहे नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष परमेश्वर जोशी ने कहा कि झुमहिया पोखरी के जरिए शैलेन्द्र असीम ने अपने दुःख को समाज का दुःख बना कर प्रस्तुत किया है।

परिचर्चा का संचालन नागरी प्रचारिणी सभा के पूर्व मन्त्री इंद्र कुमार दीक्षित ने किया। इस अवसर पर बृजेश पांडेय, गोपाल कृष्ण सिंह रामू, डॉ सौरभ श्रीवास्तव, जितेंद्र तिवारी, रमेश चन्द्र तिवारी, धर्म देव सिंह आतुर, वरिष्ठ शायर एडवोकेट अब्दुल हमीद आरजू दया शंकर कुशवाहा, कौशल कुमार तिवारी, छेदी प्रसाद गुप्त, अनिल कुमार राय, चन्द्रकिशोर सिंह, जगदीश उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आचार्य परमेश्वर जोशी की अध्यक्षता में नागरी काव्य गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें वरिष्ठ गीतकार दयाशंकर कुशवाहा, छेदी प्रसाद गुप्त, रमेश सिंह दीपक, शैलेश त्रिपाठी, हमीद आरजू, शैलेंद्र असीम, पार्वती देवी, अचल पुलस्तेय, युवा कवि अक्षय गिरि, धर्मदेव सिंह आतुर, राधामोहन बी ए, इंद्र कुमार दीक्षित, शायर सईद अयूब , विनोद पाण्डेय, रविनन्दन सैनी, चराग सलेमपुरी, रमेश तिवारी, रामेश्वर तिवारी, नितेश रौनियार, नित्यानंद आनन्द, बाबूराम शर्मा ने अपनी कविता का पाठ किया।

काव्य गोष्ठी का संचालन सरोज कुमार पाण्डेय ने किया। इससे पूर्व नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया की ओर से कवि शैलेंद्र असीम और रामेश्वर तिवारी को अंग वस्त्र सम्मानित किया गया।

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