कोशी की समस्या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से – मेधा पाटकर

कोशी महापंचायत में कोशी जन आयोग का गठन कर 17 सूत्री मांग के लिए आंदोलन का निर्णय

सुपौल के गाँधी मैदान में कोशी महापंचायत का आयोजन, लगान मुक्ति के लिए कानून बनाने,  लापता कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार को हाजिर कर सक्रिय करने, पलायन करने वाले मजदूरों के हित में बने कानूनों को प्रभावी बनाने की मांग की गई

पटना (बिहार). सुपौल के गाँधी मैदान में कोशी नव निर्माण मंच के आह्वान पर आयोजित कोशी महापंचायत में उपस्थित पंचों ने सरकार से कोशी की समस्या का तत्काल हल निकालने, लापता कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार को हाजिर कर पुनः सक्रिय करने, मौजूदा सत्र में लगान मुक्ति के लिए कानून बनाये जाने, पलायन मजदूरों के हित में बने कानूनों को प्रभावी बनाने के साथ ही कल्याणार्थ कार्यक्रम बनाने व आने-जाने के समय पर्याप्त संख्या में ट्रेनों की व्यवस्था करने का फैसला लिया।  साथ ही यदि सरकार इस फैसले को नही मानती हैं तो अपनी तरफ से कार्य करने के प्रस्ताव और संघर्ष के लिए जन गोलबंदी का फैलला लिया गया.

महापंचायत को सम्बोधित करते हुए सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद मेधा पाटकर ने कहा कि आजादी केवल इंसानों को नहीं चाहिए बल्कि यदि हमें मानवता को बचाना है तो नदियों को भी आजाद करना होगा। उन्होंने कहा की कोशी की समस्या पिछले व वर्तमान सत्ताधारी पार्टियों की देन है. कोशी तटबंध के अंदर रहने वाले लोग आज यदि परेशान हैं तो यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण है। हम आज सभी राजनीतिक पार्टियों का आह्वान करते हैं कि वे जन आंदोलनों की ताकत को समझिए और आंदोलनों के साथ खड़े होने की ताकत दिखाइए। विकास के नाम पर नदियों के साथ छेड़छाड़ करने का परिणाम सरकारें भुगतेगी। प्रकृति की पूंजी को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है,जिसका परिणाम है कि पृथ्वी गर्म होती जा रही है. विकास के नाम पर जल जंगल जमीन को कुछ लोगों को फ़ायदा पहुंचाने की दृष्टि से निजी हाथों में सौंपा जा रहा है जो हमें मंजूर नहीं है। हम विकास चाहते हैं विनाश नहीं।

मेधा पाटकर ने कहा कि आज हमलोग कोशी की बर्बादी पर बात करने और उसका समाधान खोजने के लिए बैठे हैं. बिहार में पहले भी बाढ़ आती थी जो कि खुशहाली की प्रतीक होती थी परंतु तटबंधों की राजनीति ने बिहार की मानवता को संकट में डाल दिया है. कोशी के साथ जो अन्याय हुआ है उसके साथ न्याय हम सबको मिलकर करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जिनकी जमीन बर्बाद हुई उसे क्षति देने के बजाय लगान व सेस की वसूली समझ से परे है. उनके कल्याण के लिए गठित कोशी पीड़ित विकास प्राधिकरण लापता है. सरकार लगान मुक्ति के साथ प्राधिकार को अविलम्ब सक्रिय बनाये। पलायन मजदूरों के इंटर स्टेट माइग्रेशन एक्ट की अमल करे। मजदूरों के आने जाने के समय ट्रेनों की व्यस्था करना तो सरकार प्राथमिक दायित्व है, उसे भी पूरा नही कर पाती। नीतीश जी समाजवादी कहते है तो वे तत्काल आंदोलन के साथियो से संवाद कर महापंचायत के फैसले को स्वीकार करें ।

महापंचायत को संबोधित करते हुए सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद व गोल्डमैन अवार्ड से सम्मानित प्रफुल्ल सामंत्रा ने कहा कि बांध को बनाते समय उसे विकास का नाम दिया जाता है परंतु बांध बनने के बाद वह विनाश का रुप धारण कर लेती है. बाढ़ की विभीषिका देखने को मिलती है. लोग हर साल उजड़ते और बसते रहते हैं. कोशी के लोगों को 1954 से अबतक संविधान सम्मत न्याय नहीं मिल पाया जो सरकार का काम होता है । उड़ीसा में भी महानदी पर बांध बनाया गया. जब एक बार लोग सरकार की नीतियों को समझ गए फिर दोबारा जन आंदोलनों के बल पर उस दुसरे बांध को बनने से रोका गया

सभा को संबोधित करते हुए मज़दूरों के हक व अधिकारों के हक व अधिकारों को लेकर काम करने वाले एनएपीएम के राज्य समन्वयक अरविंद मूर्ति ने कहा कि कोशी की समस्या कोशी तटबंध के अंदर जीनेवाले लोगों के लिए है. यह एक राजनैतिक रोजगार है जिसको सत्ताधारी दल, विपक्ष और बिहार की नौकरशाही बिना घाटे के उद्योग धंधे के रूप में चलाती हैं। महापंचायत में आए लोगों से उन्होंने आह्वान किया कि अपने को आबाद होने के लिए इस धंधे को बर्बाद करें और तटबंधों पर रहने की बजाय सुपौल, पटना से लगायत दिल्ली तक में बने इनके हवेलियों पर कब्जा करने का काम करें।

मछुआरा आंदोलन के प्रदीप चटर्जी ने कहा कि सरकार ने जो नीति बनाई वह बहुत ही हास्यास्पद है. कोशी में मछुआरों के लिए अबतक कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है.

पर्यावरणविद् रणजीव कुमार ने कहा कि कोई नदी शोक नहीं होती है. नदी तो प्रकृति होती है. अगर उनके साथ छेड़छाड़ करेंगे तो उनका नुकसान हमें भुगतना पड़ेगा। सरकार ने कोशी पर तटबंध बनाकर उसे विकास का नाम देते हुए कहा था कि 2-3 फीट हीं पानी आएगा लेकिन जो विनाश पैदा हुआ हम आज तक उनको सहते आए हैं। कोशी परियोजना ने यहां के लोगों को बांट दिया है. पुनर्वास की बात हुई थी जो अब तक पूरा नही हुआ है।

दरभंगा से आये चंद्रवीर ने कहा कि हमें पुनर्वास नहीं पुनः वास चाहिए। हमारे जितने संसाधन नदी में बह रहे हैं उतनी संसाधन हमें दे दे। सीपीएम नेता राजेश यादव, भाकपा माले नेता अरविंद शर्मा , राजद नेता विनोद यादव, कांग्रेस नेता जय प्रकाश चौधरी ने आंदोलन का समर्थन किया।

महापंचायत के प्रस्तावों को जिला अध्यक्ष इंद्र नारायण सिंह ने सभी के समक्ष रखा वही प्रधिकार की रपट को मुकेश ने पढ़कर हकीकत से तुलना करने की अपील की। प्रस्ताव के समर्थन में आये अतिथियों के अलावे अरविंद यादव, श्री प्रसाद सिंह , विजय यादव(पूर्व वार्ड पार्षद मुरलीगंज) , दुःखीलल, शिवशंकर मण्डल, रामस्वरूप पासवान, प्रकाश चंद मेहता, सोनी कुमारी, हरेराम मिश्रा, चन्द्र मोहन यादव, गगन ठाकुर, रामदेव शर्मा, शिवकुमार यादव, दिनेश मुखिया, रामचरित्र पण्डित, इशरत परवीन इत्यादि ने कोशी की पीड़ा बताते हुए बाते रखी।

भारतीय सामुदायिक कार्यकर्ता संघ के सहसंयोजक सौमेन राय, मुजफ्फरपुर के मनरेगा यूनियन के संजय सहनी, पटना के वरिष्ठ पत्रकार अमर नाथ झा, सामाजिक कार्यक्रम विनोद कुमार, काशी से दीनदयाल, सुरेश राठौर, महेंद्र राठौर, राजकुमार पटेल, मनोज व मुस्तफा, शारदा नदी के किनारे संघर्ष कर रहे संगतिन सीतापुर से विनोद पाल, विनीत तिवारी और रामसेवक तिवारी ने प्रस्तावों पर सहमति दी।

महापंचायत में नहीं आये मंत्री और अफसर, प्रतिनिधि भी नहीं भेजा 

महापंचायत में मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष के साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा, मंत्री बिजेंद्र यादव, विधान परिषद के सभापति, स्थानीय सांसद को भी आमंत्रित किया गया था और नही आने की स्थिति में प्रतिनिधि भेजने का भी आग्रह किया गया था. जल संसाधन, श्रम संसाधन, भू राजस्व विभाग और आपदा विभाग के प्रधान सचिव, रेलवे के डी आर एम को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन  नहीं आया न ही अपने प्रतिनिधि को भेजा।

महापंचायत में कोशी जन आयोग के गठन का निर्णय 

सुपौल सहरसा, मधुबनी, दरभंगा व मधेपुरा के हजारों लोगों महापंचायत के इस प्रस्तावों को दोनों हाथ उठाकर सर्व सम्मति से स्वीकृति दी.
महापंचायत ने सरकार से कहा कि कोशी की समस्या का समस्या का जल्द समाधान निकाले। यह भी माना कि सरकार पर जनदबाव के साथ ही समाज और पीड़ित जनता भी हाथ पर हाथ धरे नही बैठी रहे इसलिए यह भी प्रस्ताव पारित किया गया कि कोशी समस्या के समाधान के जनपक्षीय सुझावों के लिए “कोशी जन आयोग” का गठन किया जाएगा। इस जन आयोग में देश के प्रमुख सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ता रहेंगे वही नेपाल और अन्य देश के सदस्यों को आमंत्रित सदस्य के रूप में रखा जायेगा। सबसे संवाद कर इसकी घोषणा की जायेगी। महापंचायत ने सरकार से कहा कि वह लापता कोशी प्राधिकार को खोजते हुए उसे पुनः सक्रिय कर 17 सूत्रीय तय कार्यक्रम धरातल पर उतारने की गारंटी करे. यदि सरकार 6 माह में यह काम नही करती हैं तो हम लोग न्यायालय जायेंगे।

लगान मुक्ति के सवाल महापंचायत ने लगान व सेस मुक्त कर, जमीन की क्षति की भरपाई देने सम्बन्धी कानून मौजूदा सत्र में लाने को कहा. यह भी तय किया गया कि यदि सरकार ऐसा क़ानून नही लाती है तो एक वर्ष तक जन दवाव के बाद, लगान नही देने के असहयोग आन्दोलन शुरू करने की तरफ भी बढ़ा जायेगा। वहीं पलायन मजदूरों के सवालों पर महापंचायत ने इंटर स्टेट माइग्रेस एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू कर उनके कल्याणार्थ कार्यक्रम बनाने और यहाँ से मौसमी पलायन करते समय पर्याप्त संख्या में ट्रेनों की व्यवस्था करने का फैसला लिया| इन मजदूरों को संगठित कर जनदबाव बनाने का प्रस्ताव लिया गया.

अतिथियों का स्वागत भुवनेश्वर प्रसाद व रामचंद्र यादव ने संचालन महेंद्र यादव व प्रो संजय मंगला गोपाल ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन संगठन के परिषदीय अध्यक्ष संदीप यादव ने किया।
महापंचायत में तटबन्ध के बीच हाँसा के आदिवासी समुदाय के लोग अपनी परम्परागत भेष भूषा ढोल मांदर के साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी तो नदी के बीच से घोड़े से भी अनेक लोग आए थे।

कोशी महापंचायत के आयोजन की तिथि इस मायने में महत्वपूर्ण थी कि 58  वर्ष पहले 23 फरवरी 1961 को कोशी में लगान पर बिहार विधान सभा में बहस हुई थी और 4 हेक्टेयर तक माफी का कानून भी बना था पर बाद में पूरा लगान लिया जाने लगा था।

महापंचायत के आयोजन में अरविंद कुमार, हरिनंदन कुमार, इंद्रजीत कुमार, अमलेश कुमार, धर्मेंद्र कुमार भागवत पंडित , प्रमोद राम, संतोष मुखिया, संदीप कुमार,मनेश कुमार, विकास कुमार, अमित, सतीश , सदरूल, जिला सचिव सुभाष कुमार देवकुमार मेहता, भीम सदा, अरविंद मेहता, मुकेश, उमेश यादव, पूनम, अरुण कुमार मो अब्बास, दुनिदत आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।