ग़ैर कांग्रेसवाद की तरह ग़ैर भाजपावाद का नारा आज की जरूरत

मो. आसिम ख़ान 

डॉक्टर राममनोहर लोहिया के ग़ैर कांग्रेसवाद का सपना आंशिक रूप से 1967 में पूरा हुआ जब देश के अनेक राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी। डॉ राम मनोहर लोहिया कहते थे लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर, शायद मेरे मरने के बाद। लोहिया की मृत्यु के दस साल बाद उनकी बात उनके ही अभिन्न साथी जय प्रकाश नारायण ने सुनी और 1977 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के सपने को साकार किया।

लोहिया के विचारों पर और उनके सिद्धांतों को आगे बढाने वाले नेताजी मुलायम सिंह यादव ने 1990 और 1992 में साम्प्रदायिकता , गैर बराबरी , समाजिक न्याय और समाज में पिछड़ चुके अन्तिम व्यक्ति की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा लेकिन वर्तमान सरकार ने पिछड़ों के उस आरक्षण को जिसे भारतवर्ष की संयुक्त मोर्चा की सरकार के विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी प्रधानमंत्री पद को निछावर करके 27%आरक्षण को लागू किया था और 27%आरक्षण को लागू कराने वाले नेताओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पहले नेता नेताजी मुलायम सिंह यादव जी और दूसरे नेता आदरणीय लालू प्रसाद यादव जी थे जिन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह का बढ चढकर सहयोग किया था, को खत्म करने का काम किया है।

2021आते-आते NEET परीक्षाओं से पिछड़ों का आरक्षण समाप्त कर दिया जबकि डाक्टर लोहिया पिछड़ों को विशेष अवसर दिलाने के पक्ष में थे मगर ये पिछड़ों का आरक्षण NEET से समाप्त हो गया और कोई चीं चाँ की आवाज़ भी नहीं हुई। जबकि नेताजी मुलायम सिंह यादव साहब के सुपुत्र अखिलेश यादव जी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और लालू प्रसाद यादव जी के सुपुत्र तेजस्वी यादव जी नेता प्रतिपक्ष बिहार विधानसभा हैं। इनके रहते ये आरक्षण समाप्त हुआ है ये इतिहास में अवश्य दर्ज होगा।

इतिहास में ये भी दर्ज होगा कि एक ऐसा लीडर जिसने तब एक ऐसी यूनिवर्सिटी बनायी जब केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि भारतीय मुसलमान दलितों से भी बद्तर स्थिति में है। तब मोहम्मद आज़म खान साहब ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की नींव रखी। उस यूनिवर्सिटी को समाप्त करने के लिए वर्तमान एनडीए सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा और यूनिवर्सिटी बनाने वाले शिक्षाविद, धर्मनिरपेक्ष नेता मोहम्मद आज़म खान साहब को और उनके परिवार को जेल के सीख़चों के पीछे बन्द कर रखा है।

आरक्षण ख़त्म हुआ, यूनिवर्सिटी बनाने वाला बन्द है फिर भी हम भाजपा के विरुद्ध अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं ? अगर डाक्टर लोहिया को आदर्श मानते हैं तो फिर उनके विचारों को उनके सिद्धांतों को भी अपनाया जाना चाहिए जैसे डाक्टर लोहिया ने ग़ैरकांग्रेस वाद का नारा दिया था वैसे ही इस समय ग़ैर भाजपावाद का नारा देकर चुनाव लड़ने की आवश्यकता है, नहीं तो याद रखिएगा मैंने 2016 में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय अखिलेश यादव जी को पत्र लिखकर बताया था कि यदि 2017में भाजपा जीती तो कई दल समाप्त हो जाएंगे। ना विश्वास हो तो देख लीजिए। कुछ दल समाप्ति के कगार पर हैं और इस बार कह रहा हूँ कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी आपसे मिलने वाले लोग आपको ये कहकर गुमराह कर रहे हैं कि आपकी सरकार बन रही है और आप 2022 में मुख्यमंत्री बन रहे हैं। ये सब चाटुकारिता कर रहे हैं। वर्ष 2022 में आप वैसे ही हारेंगे जैसे अभी ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव हारे हैं। विकल्प केवल और केवल डाक्टर लोहिया का सिद्धांत है जिसे अपनया जाना चाहिए और वह सूत्र है ग़ैर कांग्रेसवाद के तर्ज पर ग़ैर भाजपावाद का। सभी विपक्षी दलों को एक सूत्र में बांधकर इस अहंकारी सरकार को हटाया जा सकता है, इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।

( मो. आसिम ख़ान समाजवादी पार्टी के नेता हैं )