एनजीटी के आदेश की अवहेलना पर पूर्व कुलपति प्रो राधेमोहन मिश्र ने डीएम को लिखा पत्र
गोरखपुर, 13 जून। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा रामगढ़ ताल के वेटलैंड में पक्का निर्माण पर लगाए गए रोक का कोई असर नहीं दिख रहा है। निजी तौर पर तो निर्माण हो ही रहे हैं, गोरखपुर विकास प्राधिकरण पक्के निर्माण रोकने के बजाय खुद ही नए-नए प्रोजेक्ट लांच कर रहा है। ताल में कचरा फेंकने और मवेशियों के प्रवेश पर रोक के आदेश का भी अनुपालन नहीं हो रहा है।

एनजीटी ने पूर्व कुलपति प्रो राधेमोहन मिश्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए 9 अगस्त 2016 को रामगढ़ ताल के वेटलैंड में कोई भी निर्माण कराने पर रोक लगा दिया था। एनजीटी ने यह भी आदेश दिया था कि ताल में वेस्ट मैटेरियल डम्प न किया जाए। एनजीटी ने रामगढ़ ताल के वेटलैंड को निर्धारित करने के लिए सरकार को निर्देशित किया था।

इस आदेश का गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने कितना अनुपालन कर रहा है, रामगढ़ ताल क्षेत्र में दौरा कर देखा जा सकता है। जीडीए व अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा रोज-रोज नए प्रोजेक्ट की घोषणा हो रही है और धड़ल्ले से निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। एनजीटी के आदेश के बाद खुद जीडीए ने कई नए आवासीय व कामर्शियल प्रोजेक्ट की घोषणा की है।
हाल में रामगढ़ ताल वेटलैंड में ही प्रेक्षागृह बनाने का ऐलान हुआ है और उसका शिलान्यास भी हुआ है। एयरपोर्ट से सर्किट हाउस तक फोर लेन सड़क बनाने के लिए लिए रामगढ़ ताल क्षेत्र में सड़क का चौड़ा करने का कार्य हो रहा है।
रामगढ ताल क्षेत्र में ही प्रसाधन और फ़ूड प्लाजा भी बनाया गया है.

जीडीए ने एनजीटी के आदेश का सिर्फ इतना ही पालन किया है कि उसने दो साइन बोर्ड लगा दिए हैं। इन साइन बोर्ड पर लिखा है कि ‘ एनजीटी के आदेश के मुताबिक रामगढ़ ताल के अन्तर्गत कपड़े धोने, जानवरों को नहलाने तथा किसी भी प्रकार का कूड़ा-करकट एवं अपशिष्ट पदार्थ फेंके जाने को निषिद्ध किया जाता है। ’
इस साइन बोर्ड में एनजीटी द्वारा रामगढ़ ताल क्षेत्र में स्थायी निर्माण को रोके जाने के आदेश को कोई उल्लेख नहीं है। इस तरह से जीडीए ने एनजीटी का पूर आदेश सार्वजनिक करने के बजाय आधा-अधूरा आदेश ही सार्वजनिक किया है।
रामगढ़ ताल के वेटलैंड के संरक्षण को लेकर संघर्ष कर रहे पूर्व कुलपति प्रो राधे मोहन मिश्र ने जीडीए के रवैये पर नाराजगी जतायी है और इस सम्बन्ध में डीएम को एक पत्र भी लिखा है।
प्रो मिश्र ने 10 जून को जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि उनकी याचिका पर एनजीटी ने 09 अगस्त 2016 को आदेश दिया था कि रामगढ ताल के कैचमेंट एरिया में बिना वेटलैंड का निर्धारण किये हुए किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी तथा ये भी आदेश दिया था कि किसी भी प्रकार का वेस्ट मैटीरियल डम्प न किया जाय। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया था कि जलाशयों, तालाबो आदि की यथावत स्थिति को बनाए रखा जाय और वेटलैंड कंजर्वेशन एन्ड मैनेजमेंट रूल्स 2010 के प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया जाय।

प्रो मिश्र ने आरोप लगाया कि जीडीए न्यायालयों एवं एनजीटी के आदेशों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। उसने अगस्त 2016 के बाद रामगढ ताल के वेटलैंड में कई नए प्रोजेक्ट स्वीकृत किये हैं और उस पर निर्माण भी शुरू कराया है। कैचमेंट एरिया में आवासीय कालोनियां विकसित की जा रही है और कई कमर्शियल प्रोजेक्ट शुरू किये गए हैं । रामगढ ताल के जलाशय में ही पम्पिंग स्टेशन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, भवन तथा सडक आदि का निर्माण किया गया है। इससे रामगढ ताल एवं उसके पर्यावरण को काफी नुकसान पंहुच रहा है।

उन्होंने कहा कि एनजीटी के आदेश के मुताबिक रामगढ ताल के वेटलैंड को निर्धारित करने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में जीडीए द्वारा एनजीटी के आदेश को ताक पर रख कैचमेंट एरिया में स्थायी निर्माण कराना शहर के धरोहर रामगढ ताल को नुकसान पहुंचाना है। साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और एनजीटी के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने डीएम को पत्र लिख कर आगाह कर दिया है और अब वह एनजीटी को इससे अवगत कराएंगे।