‘ बूढे माॅ-पिता बीमार हैं, मेेरे सिवा उनका कोई नहीं, इसलिए पैदल ही औरंगाबाद से चला आया ’

कुशीनगर। ‘ बूढे माता-पिता बीमार है। मेरे अलावा उनका और कोई नहीं। मुझे जल्दी घर पहुंचना है। इसलिए हम बिना रूके चलते जा रहे हैं। ’

यह बात कही 14 मई को दोपहर सालिकपुर पुलिस चौकी से गुजर रहे एक दर्जन प्रवासी मजदूरों के समूह में शामिल राजू महतो ने। राजू महतो साथी मजदूरों के साथ औरंगाबाद से आ रहे हैं। ये मजदूर भूखे.प्यासे राष्ट्रीय राजमार्ग 27 की तपती सड़क के रास्ते बिहार जा रहे थे। रास्ते में रोककर जब छांव में बैठने और गुड़-पानी पीने का आग्रह किया गया तो सभी की आंखे छलछला उठीं। दिल में दबा दर्द छलक उठा.

राजू महतो, शंकर, आलम अंसारी, अजय महतो, अरबाज, तौकीर, नबी हसन, बिकाऊ, अजय ठाकुर, आदिल अंसारी, नूरहुदा अंसारी, रिजवान अहमद बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के सहोदरा व इनरवा थाना क्षेत्र के पिंडारी, अररिया बरवा और बसंतपुर के निवासी हैं. ये सभी लोग पांच महीना पहले महाराष्ट के औरंगाबाद में मजदूरी करने गए थे.

मजदूरों ने मजदूरी की कमाई होली के पहले घर भिजवा दिया था. उन्हें आने वाले कठिन दिनों का कोई अंदेशा नहीं था. लाॅकडाउन होते ही काम बंद हो गया. डेढ़ माह के लाक डाउन में सारा पैसा खत्म हो गया. काम देने वाले सेठ ने भी कहा काम बंद है. इसलिए घर वापस लौट जाओ.

मजदूरों ने बताया कि हमने महाराष्ट्र के नोडल अधिकारी के आफिस से सम्पर्क किया तो वहां से कहा गया कि अभी सिस्टम बंद है. बाद में व्यवस्था की जाएगी. जब कुछ उपाय नहीं हुआ तो पैदल चल दिए. चलने के बाद सभी ने अपने-अपने घर से दो-दो हजार रूपए मंगाए.

ये सभी मजदूर आठ दिन पहले औरंगाबाद से चले. पैदल चलते-चलते एमपी-यूपी के बॉर्डर पर पहुंचे तो वहां पर पुलिस ने ट्रक पर बिठा दिया. बुधवार की आधी रात बाद मजदूर गोरखपुर पहुंचे.

राजू , आलम अंसारी कहते हैं कि गोरखपुर पहुंचने के बाद वे सभी आराम कर रहे थे कि सभी के घर से फोन आने लगा. घर वाले यही कह रहे थे कि अब अपने गांव के नजदीक आ गए हैं. बस 24 घंटे और लगेेंगे. हिम्मत न हारिएगा.

गोरखपुर से सभी कामगार पैदल ही कसया, पडरौना होते हुए सालिकपुर पहुंचे. सालिकपुर बिहार सीमा पर है.

आलम अंसारी सहोदरा के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि 10 साल पहले उसके मां-बाप गुजर गए. घर पर विकलांग पत्नी और दो जवान बेटियां है. वह बेटियों  की शादी के लिए पैसा जमा कर रहा था लेकिन लाॅकडाउन ने उसकी सभी तैयारी पर पानी फेर दिया.

राजू महतो ने बताया कि घर पर 65 वर्षीय मां तथा 70 वर्षीय बाप उसके आने की बाट देख रहे हैं क्योंकि वही अपने परिवार में इकलौता कमाने वाला शख्स है. उसके सहारे घर के लोगों को दो वक्त का भोजन और दवा-इलाज मिल पाता है. पूरे रास्ते वह मां-पिता की चिंता करते हुए चलता आया.