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गोरखपुर विश्वविद्यालय : मीडिया/ सोशल मीडिया में बोलने -लिखने पर लगाई गई पाबंदी का विरोध

गोरखपुर। गोरखपुर विश्वविद्यालय में मीडिया और सोशल मीडिया पर बोलने -लिखने पर लगाई गई पाबंदी का विरोध शुरू हो गया है। गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ गुआक्टा के अध्यक्ष डॉ के डी तिवारी ने इसे तुगलकी फरमान बताया है तो विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्त ने लिखा है कि अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाए जाने वाले किसी भी अवैधानिक आदेश को मानने से हम विनम्रतापूर्वक इनकार करते हैं।

प्रो कमलेश गुप्ता ने अपने फ़ेसबुक वाल पर लिखा है कि ‘ हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय में शिक्षक होना केवल एक अच्छी नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक बड़े सामाजिक दायित्व को स्वीकार करना भी है। हम एक शिक्षक के साथ भारत के जिम्मेदार नागरिक भी हैं । हमें अपने संवैधानिक दायित्वों की जानकारी है और अधिकारों की भी। हम अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के हक से भी परिचित हैं और उसकी मर्यादाओं का बोध भी हमें है। अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाए जाने वाले किसी भी अवैधानिक आदेश को मानने से हम विनम्रतापूर्वक इनकार करते हैं।

उन्होंने लिखा है कि ‘ जिस विश्वविद्यालय के होने से हम हैं, उसकी छवि खराब करने के बारे में, तो सपने में भी नहीं सोच सकते। उसकी छवि को धूमिल होने से बचाना हमारा धर्म है।’

गुआक्टा के अध्यक्ष डॉ के डी तिवारी ने कहा है कि ‘ इस तुगलकी फरमान का विरोध होना चाहिए। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है जो हमारे बोलने की स्वतंत्रता एवं मूल अधिकार को बाधित करता है। उच्च शिक्षा के शिक्षक अपने विचार से समाज को और संस्थाओं को दिशा देने का कार्य करते हैं।  हमारे संविधान में इनको अधिकार दिया गया है कि अपने विचारधारा का प्रचार एवं प्रसार करें तथा इसी के साथ यह भी  कि चुनावों में बिना अपने पद को त्याग किए , चुनाव लड़ने के लिए भी स्वतंत्र हैं। ’

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