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गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अशोक कुमार सक्सेना का निधन

गोरखपुर। गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व अधिष्ठाता कला संकाय प्रो अशोक कुमार सक्सेना का कल रात निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार आज राप्ती नदी के तट पर राजघाट में किया गया। इस मौके पर विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक, बुद्धिजीवी, लेखक व शहरवासी मौजूद थे।

प्रो अशोक कुमार सक्सेना की तबियत कुछ दिन से खराब थी। पिछले वर्ष सर्दियों में वे निमोनिया से ग्रसित हुए थे लेकिन ठीक हो गए थे। तबियत खराब होने के बावजूद 16 मार्च की शाम प्रेमचंद पार्क में आयोजित ‘ सांस्कृतिक संध्या-ढाई आखर प्रेम का ‘ में वे शामिल हुए थे।

प्रो अशोक सक्सेना अपने पीछे दो बेटियों और एक बेटे का परिवार छोड़ गए हैं। उनकी बड़ी बेटी भावना सक्सेना अमेरिका में रहती हैं जबकि दूसरी बेटी सृष्टि पुणे में रहती हैं। प्रा अशोक सक्सेना बशारतपुर स्थित जेमिनी अपार्टमेंट में अपने बेटे प्रतीक सक्सेना के साथ रहते थे। प्रतीक सक्सेना गोरखपुर के एक एफएम रेडियो में कार्यरत हैं।

प्रो अशोक कुमार सक्सेना ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक, परास्नातक व पीएचडी की पढाई पूरी की थी। वे वर्ष 1965 में गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए और वर्ष 2012 में अध्यापन कार्य से सेवानिवृत हुए। उनकी पत्नी गीता सक्सेना का दस वर्ष पूर्व निधन हुआ था।

प्रो सक्सेना सक्रिय बुद्धिजीवी थे और उनका शहर के सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन में बराबर उपस्थिति रहती थी। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। ‘ अर्जुन का विषाद-एक मनोवैज्ञनिक विश्लेषण ‘ वर्ष  2010 में प्रकाशित हुई थी। बाद में यह किताब अंग्रेजी में ‘ डिप्रेशन इन द बैटिलफीलल्डः एक कांगेटिव एनलिसिस ’ नाम से प्रकाशित हुई। उन्होंने ‘ भारत में सुखी रहने के 101 सूत्र ’, ‘ सरस्वती स्वयंवर ’ (नाटक), ‘ अथ कोरोना पैरोडी शतक निवेदनम ’ नाम से किताब लिखी। ‘ गोरखनाथ का हठ योग और मन पर विजय ‘  नाम से उन्होंने एक किताब भी सम्पादित की थी। उनकी कविताओं का संग्रह ‘ शब्दाजंलि ’ प्रकाशित होने वाली थी।

उन्होंने इतिहास विभाग के प्रोफेसर चन्द्रभूषण अंकुर के सहयोग से शोध पत्रिका गोरखपुर सोशल साइंस का भी प्रकाशन शुरू किया था। उनके अनेक लेख पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं।

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