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प्रोफेसर ने कुलपति पर लगाए गंभीर आरोप, कुलाधिपति को शिकायत भेज हटाने की मांग की

कहा-कुलपति बनने के लिए अपने खिलाफ चल रही गंभीर जांच के तथ्य को छुपाया, शिक्षकों को कहते हैं अपशब्द, देते हैं धमकी

गोरखपुर। दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्ता ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राजेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए कुलाधिपति को शिकायत भेज उन्हें हटाने की मांग की है।

प्रो गुप्ता ने कुलपति पर शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार करने, अपशब्द कहने, धमकी देने, नियम विरूद्ध कार्य करने, कोविड प्रोटोकाल व गाइड लाइन का पालन न करते हुए शिक्षकों-कर्मचारियों की जान खतरे में डालने, कोविड से मृत शिक्षकों को शिक्षक कल्याण कोष से अनुग्रह राशि नहीं देने, शिक्षकों पर अवैधानिक कार्य करने का दबाव डालने, शोध प्रवेश परीक्षा में अनियमितता, विज्ञापनों पर पानी की तरह पैसा बहाने सहित कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि कुलपति प्रो राजेश सिंह ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय,गोरखपुर के कुलपति पद पर आवेदन करते समय अपने विरुद्ध पूर्णिया विश्वविद्यालय, बिहार में चल रही गंभीर जाँच के तथ्य को छिपाया था।

प्रो गुप्ता ने कुलपति पर लगाए गए आरोपों के बारे में अपने फेसबुक पोस्ट पर भी लिखा है। उन्होंने कहा है कि वे विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय परिवार के हितों की चिंता करते हुए इस मुद्दे को उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी व्यक्तिगत पत्रावली मंगाकर मुझ पर दबाव बनाकर, डराने की कोशिश करके विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय परिवार के हितों के हमारे प्रयास पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई है लेकिन डरना हमारे संस्कार में नहीं है।

 

 

पढ़िए प्रो कमलेश कुमार गुप्ता की फेसबुक पोस्ट

मित्रो,

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुछ मौखिक और लिखित जिद्दी आदेशों के कारण अपने विश्वविद्यालय के शिक्षकों के व्हाट्सएप ग्रुप फ्रांसीसी कथाकार ऑलफोंस दोदे की कहानी ‘  लास्ट क्लास ‘ के नगर निगम के बोर्ड में तब्दील हो गए थे, जिस पर प्रायः दुखद खबरें ही प्रकाशित होती थीं । तब व्हाट्सएप ग्रुप खोलने में भी डर लगता था कि न जाने किस के बारे में कौन सी खबर हो। धैर्य और साहस बढ़ानेवाले शब्द भी साथ छोड़ते जा रहे थे।

हमने अपने विश्वविद्यालय परिवार के कई सदस्यों को खो दिया।

अभी हम उस भयावह दूसरी लहर से उबर ही रहे थे कि फिर बार-बार अनिवार्य सामूहिक उपस्थित के आदेश आने शुरू हो गए । विश्वविद्यालय परिवार के सदस्यों और उनके परिजनों की जीवन-रक्षा के लिए मैंने माननीय मुख्यमंत्री महोदय , माननीय कुलाधिपति महोदय और माननीय प्रधानमंत्री महोदय से आग्रह किया था , तब से मेरी व्यक्तिगत पत्रावली संचरण में आ गई।

शिक्षकों की व्यक्तिगत पत्रावली के रख-रखाव, संरक्षण और नियंत्रण का दायित्व कुलसचिव महोदय का होता है। अगर किसी शिक्षक की व्यक्तिगत पत्रावली कुलसचिव महोदय के संज्ञान के बगैर और उनकी लिखित सहमति के बिना सामान्य प्रशासन विभाग से कहीं बाहर जाती है, तो यह अधिनियम और परिनियम की व्यवस्था का खुला उल्लंघन है।

यदि मेरी व्यक्तिगत पत्रावली पूरी दुनिया के सामने रखे जाने का प्रस्ताव हो, तो मैं इसकी सहर्ष अनुमति दे सकता हूँ, लेकिन अधिनियम और परिनियम की व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए किसी शिक्षक की व्यक्तिगत पत्रावली मंगा लेना असंवैधानिक कृत्य है। इस पर सवाल करना हमारा संवैधानिक हक और दायित्व भी है।

इस तरह से मुझ पर दबाव बनाकर, डराने की कोशिश करके विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय परिवार के हितों के हमारे प्रयास पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। डरना हमारे संस्कार में नहीं है। हम मूल्यों की उस पाठशाला के स्नातक हैं,जहाँ ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, निर्भयता और समयपालन के संस्कार स्वत: ही मिल जाते हैं ।

आपके मौन-मुखर समर्थन और सहयोग के लिए हम आपके आभारी हैं ।

मित्रो, हमने प्रो0 राजेश सिंह जी को अपने विश्वविद्यालय के कुलपति पद से तत्काल हटाए जाने की मांग माननीय कुलाधिपति महोदय से की है , क्यों कि प्रो0 राजेश सिंह जी, कुलपति, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर का कार्य-व्यवहार और आचरण कुलपति पद की गरिमा के सर्वथा प्रतिकूल है-

1. कुलपति जी का व्यवहार अमर्यादित है। वे अपने सहकर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं, यहाँ तक कि अपशब्दो का प्रयोग भी करते हैं।

2.कुलपति जी की प्रवृत्ति आपराधिक है। वे भरी बैठक में देख लेने की धमकी देते हैं और न केवल धमकी देते हैं,बल्कि उसे कार्यरूप में परिणत भी करते हैं ।

3.कुलपति जी का एकमात्र उद्देश्य सबके सामने अपनी अच्छी छवि गढ़ना है और उसके लिए वे पूरे विश्वविद्यालय की ऊर्जा जबरन खर्च करवाते हैं और विज्ञापनों में पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं ।

4.कुलपति जी कर्मचारियों और शिक्षकों पर उनकी संवैधानिक सीमा से बाहर जाकर अवैधानिक काम करने के लिए दबाव बनाते हैं।जैसे उन्होंने स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों के असाइनमेण्ट को रिसर्च प्रोजेक्ट मान लेने को कहा।

5.जब माननीय प्रधानमंत्री जी और उत्तर-प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी देश और प्रदेशवासियों से कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए सतर्कता बरतने की बार-बार अपील कर रहे थे, तब भी कुलपति प्रो0 राजेश सिंह जी ने बार-बार महामारी एक्ट और कोविड-19 के दृष्टिगत जारी केंद्र और प्रदेश सरकार के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन किया । कुलपति जी खुद कोरोना से संक्रमित थे, इसको उन्होंने छुपाया था। इसको (स्वयं के संक्रमित होने की बात को छिपाने को ) उन्होंने 5 मई,2021 को अध्यक्ष और संकायाध्यक्षगण की मीटिंग में स्वयं बताया था । संक्रमित होने के दौरान भी वे विश्वविद्यालय की गतिविधियों में शामिल होते रहे। इससे न जाने कितने शिक्षक और कर्मचारी संक्रमित हुए होंगे। यह कोरोना के दिशानिर्देशों का सर्वथा उल्लंघन था।

इतना ही नहीं गत 19 जून, 2021को विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों और अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य कर उन्होंने बंद हाल में लगभग 300 लोगों को लगभग डेढ़-दो घंटे तक बैठाए रखकर (अपने विश्वविद्यालय के दुनिया के सौ विश्वविद्यालयों में शामिल हो जाने के संदेहास्पद दावों के साथ) संबोधित किया, जबकि उस दिन लाकडाउन था और प्रदेश सरकार के दिशानिर्देशों के तहत किसी बंद हाल में अधिकतम उपस्थिति 25 तक ही हो सकती थी। इस मामले को हम साक्ष्यों सहित गोरखपुर के जिलाधिकारी महोदय के संज्ञान में 23,जून 2021 को ला चुके हैं और महामारी एक्ट के प्रावधानों के तहत कार्यवाही का आग्रह कर चुके हैं । चूँकि यह प्रकरण माननीय प्रधानमंत्री महोदय और माननीय मुख्यमंत्री महोदय के कार्यालय के संज्ञान में है, अतरू हमारा विश्वास है कि उचित कार्यवाही होगी ही।

6.कुलपति, प्रो0 राजेश सिंह जी न अधिनियम को मानते हैं, न परिनियम को, न अध्यादेश को मानते हैं, न शासनादेश को । उनके लिए उनकी इच्छा ही सर्वोपरि है। उसे ही सबको मानने के लिए बाध्य करते हैं । वे नितांत संविधान विरोधी व्यक्ति हैं।

वे अत्यंत महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाल रहे सम्माननीयजन का बार-बार नाम लेकर उनकी निकटता हासिल होने का अहसास कराते हैं और अपने पूरे कार्य-व्यवहार में यह प्रदर्शित करते हैं कि उनके मन में जो आएगा, वे वह करेंगे,उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।उनके इस कार्य-व्यवहार से विश्वविद्यालय में भय एवं आतंक का वातावरण व्याप्त है।

7. कुलपति जी ने शोध प्रवेश परीक्षा 2020-21 ऑनलाइन करवाई ,जिसमें अनियमितता बरती गई । उत्तर जारी नहीं किए गए , अभ्यर्थियों से आपत्तियां नहीं मांगी गईं , उनका समाधान नहीं हुआ, उनके लिखित परीक्षा के प्राप्तांक बताए नहीं गए। इस शोध प्रवेश परीक्षा के परिणाम कैसे तैयार किए गए , यह कभी बताया नहीं गया। पारदर्शिता के पूर्णतया अभाव के कारण प्रवेश परीक्षा की पवित्रता और विश्वसनीयता को गहरी ठेस पहुंची है।

8.कुलपति जी ने सेमेस्टर परीक्षा की कापियों के मूल्यांकन की ऑनलाइन व्यवस्था करवाई है। मूल्यांकन की इस व्यवस्था में शिक्षकों से उनका आधार नंबर, पैन नंबर, खाता संख्या की जानकारी संबंधित एजेंसी द्वारा माॅगी जा रही है और यह जानकारियांँ देना अनिवार्य है। इसको लेकर सभी शिक्षक चिंतित हैं कि किसी बाहरी एजेंसी को यह सारी जानकारियांँ देना, कहाँ तक सुरक्षित है ? इसमें शिक्षकों द्वारा दिए गए अंको को आसानी से बदला जा सकता है, इससे भ्रष्टाचार की अपार संभावना है।

9.कुलपति जी की कार्यशैली लोकतांत्रिक नहीं है । जब कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए शिक्षण-संस्थानों में एकाधिक प्रवेश द्वारों के खोले जाने और इस्तेमाल किए जाने की बात की गई हो, ऐसे समय में कुलपति जी ने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन का एक द्वार बंद करवा रखा है। उस द्वार से केवल और केवल कुलपति जी की गाड़ी ही आती-जाती है और किसी की गाड़ी नहीं आती- जाती।वह द्वार केवल उन्हीं के आने-जाने के समय कुछ सेकेंडों के लिए खुलता है। कोई पैदल भी उस द्वार से अंदर नहीं आ-जा सकता है। विश्वविद्यालय में दिव्यांग विद्यार्थी भी पढ़ते हैं । उनको अपनी जरूरतों से प्रशासनिक भवन जाना पड़ता है, ऐसे में उनको भारी असुविधा होती है। प्रशासनिक भवन में एक ही गेट से सबके आने- जाने की व्यवस्था होने के कारण कोरोना के संक्रमण की संभावना बनी रहती है। उनके पहले दोनों गेट सबके लिए खुले रहते थे। यह ध्यातव्य है कि जो गेट कुलपति जी के अलावे शेष सबके लिए खुला रहता है, वह व्यस्ततम मार्ग पर है, उस पर दबाव बढ़ने से (ईश्वर न करें कि ऐसा हो।)दुर्घटना की आशंका है ।

10.कुलपति जी अपना ज्यादातर समय अनावश्यक कार्यों में (जहाँ उनके बगैर भी कार्य बहुत अच्छी तरह हो सकता है) व्यतीत करते हैं, जिससे आवश्यक कार्य बहुत
अधिक विलंबित होते हैं। बहुत जरूरी फाइलें भी कई महीनों तक निस्तारित नहीं हो पातीं ।

11.कुलपति जी अपने प्रशासनिक भवन के कार्यालय पर बहुत कम आते हैं,ज्यादातर कार्य अपने आवास से ही करते-करवाते हैं । कुलपति जी का विद्यार्थी, शिक्षक, कर्मचारी या अन्य किसी से मिलने का कोई समय तय नहीं है ।उनसे मिल पाना सबके लिए बेहद कठिन है ।

12.प्रो0 राजेश सिंह जी अमानवीयता की हद तक असंवेदनशील हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के दिवंगत(कोरोना के कारण) शिक्षकों के परिजनों को शिक्षक कल्याण कोष से अनुग्रह राशि देने के लिए उन परिवारों से आवेदन पत्र की मांग की।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातें हमारे संज्ञान में आई हैं,जिनकी पुष्टि कर पाना हमारे लिए संभव नहीँ है।लेकिन जिनकी गंभीरता को देखते हुए किसी सक्षम और स्वतंत्र एजेंसी से निष्पक्ष जाँच कराया जाना अपेक्षित है ।

ऐसा लगता है कि प्रो0 राजेश सिंह जी ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय,गोरखपुर के कुलपति पद पर आवेदन करते समय अपने विरुद्ध पूर्णिया विश्वविद्यालय, बिहार में चल रही गंभीर जाँच के तथ्य को छिपाया था।

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