स्मृति शेष : नेपाल के राष्ट्र कवि माधव प्रसाद घिमिरे

नेपाल के राष्ट्र कवि माधव प्रसाद घिमिरे अब हमारे बीच नही रहे। काठमाण्डु में 18 अगस्त की शाम को लैंचोर स्थित निवास पर 101 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उन्होंने लंबा जीवन पाया। उनके निधन से नेपाल के साहित्य जगत में सन्नाटा पसर गया है। साहित्य प्रेमी गहरे सदमे में हैं। नेपाली साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर के चले जाने से साहित्य जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है जिसकी भरपाई आसान नही होगी। माधव जी अपने स्वास्थ और दीर्घायु जीवन का श्रेय “प्रेम “को देते थे। उत्साह और सकारत्मकता उनके लंबे जीवन का आधार था। वो स्वच्छंदतावादी भावधारा और परिष्कारवादी शैली के कुशल नेपाली कवि ,साहित्यकार व गीतकार थे।उनके निधन से नेपाली साहित्य का एक युग समाप्त हो गया है।

काठमाण्डु स्थित भारतीय राज दूतावास में हिंदी,सूचना एवं संस्कृति अधिकारी रघुबीर शर्मा उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि इस बार भारतीय राजदूतावास, काठमांडू द्वारा आयोजित विश्व हिंदी दिवस 2020 के अवसर पर जिन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ, उनमें एक महत्वपूर्ण पुस्तक थी जिसका नाम था “अश्वत्थामा” जो कि एक गीति-काव्य नाटक है । इसके अंग्रेजी अनुवाद को नेपाल एकेडमी ने नोबल प्राइज के लिये अपनी संस्तुति के साथ भेजा था।

इस पुस्तक के मूल लेखक थे नेपाल के राष्ट्रकवि श्री माधव प्रसाद घिमिरे जी। 10 जनवरी 2020 को जब इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ तो अपने स्वास्थ्य के कारण वे इसमें शामिल न हो सके।तब उनके आवास पर इस पुस्तक की लेखकीय प्रतियाँ उन्हें भेंट करने के लिए जाने का सुअवसर मिला था,तो राष्ट्रकवि जी का उत्साह देखने लायक था।

खराब स्वास्थ्य के बावजूद पूरे एक घंटे का जो समय उन्होंने मुझे दिया, उसमें उन्होंने अपने कुछ नेपाली गीत भी सुनाए और मेरी सुविधा के लिए उनका हिंदी में अनुवाद भी करते चले।श्री शर्मा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्रकवि जी का भरपूर स्नेह मिला था। उस वक़्त मेरे साथ पुस्तक के अनुवादक प्रोफेसर डॉक्टर संत कुमार वास्ती भी थे।बाद में कवि दीनानाथ पोख्रेल जी भी वहां पहुंच गए। श्री शर्मा कहते है तब मुझे कहाँ पता था कि श्रद्धेय राष्ट्र कवि से यह मेरी आखिरी मुलाक़ात होगी। भारतीय दूतावास के इस कार्यक्रम में मैं भी उपस्थित था ।जनवरी 2020 में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के संचालन के लिए मुझे आमंत्रित किया गया था।जिसमें दर्जनों देशों के प्रतिनिधि मंडल ने हिस्सा लिया था।

नेपाल के काठमाण्डु में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन करने वाले हिंदी मंच नेपाल के अध्यक्ष मंगल प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि घिमिरे जी की बचपन से ही साहित्य में अभिरुचि थी।उनका यूं चले जाना हम सबको अखर गया है।श्री गुप्ता उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि कविता ,खंडकाव्य,गीत,नाटक,कथा ,अनुवाद लेख आदि अनेको विधाओं में वो अपनी कलम चलाते थे।वो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे लेकिन उनके लेखन का मूल केंद्र विंदु कविता काव्य ही था।

राष्ट्र कवि घिमिरे जी मे साहित्य के प्रति प्रेम बचपन से ही था। 14 वर्ष की उम्र में उनकी पहली रचना “ज्ञान पुष्प “शीर्षक अंतर्गत गोरखा पत्र समाचार पत्र में प्रकाशित हुई।यहीं से उनके काव्य सृजना की शुरुआत हुई ।भारत के वाराणसी से पढ़ाई करने वाले राष्ट्र कवि घिमिरे जी लक्ष्मी प्रसाद सापकोटा की अध्यक्षता में गठित काव्य प्रतिष्ठान में चार वर्षों तक सदस्य भी रहे।आप नेपाल के प्रतिष्ठित व सम्मानित समाचार पत्र गोराखपत्र में सहायक संपादक भी रहे।इसके अलावा नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान के पहले सदस्य फिर आजीवन सदस्य तत्पश्चात उप कुलपति, कुलपति भी रहे।

उनका काव्य संग्रह नवमंजरी, घाम पानी,नया नेपाल,किन्नर किन्नरी आदि काफी चर्चित रहे।नेपाली खंडकाव्य के विकास में भी आपका विशिष्ट योगदान था।उनका खंडकाव्य राम विलास, जीवन संगीत,सुदामा चरित्र आदि काफी लोक प्रिय हुए। घिमिरे जी ने अपने जीवन मे अनेकों उतार व चढ़ाव देखे थे।उनका जीवन संघर्षों से भरा था लेकिन वो सदैव सकरात्मक जीवन जीने की प्रेरणा सबको देते थे एक साक्षात्कार में उन्होंने अपनी धर्मपत्नी गौरी से विवाह के क्षण को सबसे ज़्यादा खुशी देने वाला लम्हा करार दिया था।जब उनकी धर्मपत्नी गौरी का निधन हुआ तब वो बहुत दुखी थे। धर्मपत्नी गौरी के निधन से आहत गौरी खंडकाव्य की आप ने रचना की जो उनकी विशिष्ट कृति साबित हुई।

देश प्रेम,राष्ट्रीयता की भावनाओं से सराबोर रहने वाले घिमिरे जी अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से आम लोगों में राष्ट्रीय भावना का संचार करते थे।उनके चर्चित राष्ट्रीय गीतों ने राष्ट्रवादी की जड़ों को न सिर्फ मजबूत किया बल्कि उन्हें एक राष्ट्रवादी कवि के रुप मे भी स्थापित किया।”राष्ट्र निर्माता”जैसे खंडकाव्य लिखने वाले घिमिरे जी साहित्य के संसार मे हमेशा अमर रहेंगे।
अलविदा राष्ट्र कवि जी!