समाचारस्मृति

“ शाम दर शाम जलेंगे, तेरे यादों के चिराग, नस्ल दर नस्ल तेरा दर्द नुमाया होगा ”

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक,प्रगतिशील विचार धारा के पोषक और समाज सुधारक सर सयैद अहमद खान मुसलमानों में शिक्षा खास तौर पर आधुनिक शिक्षा के ज़रिये व्यापक बदलाव के हिमायती थे। वे इस्लाम धर्म के अनुयायियों में बौद्धिक चेतना प्रदान कर उन्हें नई दिशा देना चाहते थे। उनका मानना था कि तकनीकी, वैज्ञानिक,और आधुनिक शिक्षा हासिल करके ही मुसलमान अपनी ग़ुरबत,और बदहाली को दूर कर सकता है।उन्होंने कहा था जब एक कौम तालीम हासिल करने से दूरी अख्तियार करती है,तो ग़ुरबत पैदा होती है, और जब ग़ुरबत आती है तो हजारों जरायम भी अपने साथ लाती है।

सर सयैद अहमद खां के शिक्षा के प्रति समर्पण ,त्याग और निष्ठा से राष्ट्र पिता महात्मा गांधी भी बहुत प्रभावित थे। शिक्षा जगत के इस महान पुरोधा को शांति के अग्रदूत महा मानव महात्मा गांधी ने प्रॉफेट ऑफ़ एडुकेशन तक कह डाला। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि सर सयैद अहमद ने मुसलमानों को नए दौर की तालीम देने पर अपनी पूरी ताकत लगा दी।बिना तालीम के मुस्लमान नए तरह की राष्ट्रीयता में हिस्सा नहीं ले सकते थे।

दर असल ,सर सयैद अहमद इल्म की ताकत से बखूबी वाकिफ हो चुके थे। उन्हें मालूम था कि आने वाला दौर ज्ञान ,विज्ञानं और तकनीक का होगा।जिस कौम के पास इल्म की ताकत होगी वही मजबूत और ताकतवर होगा। हालाँकि उन्हें इस सामाजिक बदलाव के लिये बड़ा संघर्ष भी करना पड़ा।तब लोग आसानी से पारंपरिक शिक्षा छोड़कर आधुनिक शिक्षा की ओर आने को तैयार नहीं थे। मुस्लिम समाज के भीतर भी इनका जोरदार विरोध हुआ। लोगों ने इस्लाम मुखालिफ आरोप भी लगाये।लेकिन उन्होंने इन सब की परवाह कभी नहीं की।प्रगति शील और आधुनिक तालीम के लिए संघर्ष करते रहे।

बौद्धिक चेतना का संचार करने के ही मकसद से इन्होंने कई शैक्षणिक संस्थाओं की भी स्थापना की जिसमे मुरादाबाद का एक फ़ारसी मदरसा,सइंस्टिफिक सोसाइटी अलीगढ प्रमुख है। 1875 में अलीगढ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज की स्थापना की।बाद में यही कॉलेज अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित हुआ।आज यही विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।

इस विश्वविद्यालय ने मुसलमानों के शैक्षणिक ,आर्थिक,सामाजिक और राजनैतिक बदलाव लाने में अग्रणी भूमिका निभायी है।इस विश्वविद्यालय से पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन,पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत अली खान, भाजपा के पूर्व मुख्यंमत्री दिल्ली साहिब सिंह वर्मा,उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ,हाकी खिलाडी ध्यान चंद्र जैसे नामचीन हस्तियों ने शिक्षा हासिल की है।

17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में जन्मे शिक्षा जगत के इस महान पुरोधा ने कई किताबें भी लिखी थीं।जिसमे अतहर अस्नादीद, 1857 की क्रांति पर आधारित पुस्तक अस्बाबे बगावते हिन्द,तहज़ीबुल अख़लाक़ प्रमुख हैं।अंग्रेजों ने ही नाईट कमांडर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया और सर की उपाधि से नवाजा था। यही नहीं एडिनबरा यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर ऑफ़ लॉ की उपाधि दी थी। सर सयैद अहमद खान को ज्योतिष,तैराकी और निशाने बाज़ी में बहुत रूचि थी। इसके अलावा तालीम के मैदान में भी उन्होंने  नए नए कीर्तिमान स्थापित किये।

उन्हें अरबी,फ़ारसी,हिंदी और अंग्रेजी भाषाओँ में महारत हासिल थी। पहले उन्होंने मुग़लों की नौकरी की ।फिर अंग्रेजों की।विभिन्न पदों पर होते हुए 1876 में बनारस के स्माल काज कोर्ट के जज पद से रिटायर्ड हुए। नौकरियां तो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में की लेकिन खुद को दफ्तर और घर तक महदूद नहीं किया।वो चिंतन करते रहे क़ि मुसलमानों को कैसे देश ,समाज और राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा जाए।अपने निरन्तर प्रयासों ,संघर्षों से उन्होंने एक ऐसे पौधे का बीजारोपण किया जो आज अलीगढ विश्विद्यालय के रूप में एक महान और विशालकाय वृक्ष की तरह हमारे पास मौजूद है।

 25 मार्च 1898 को इल्म की शमा जलाने वाला यह महानायक और समाज सुधारक इस दुनिया ए फानी से कूच कर गया।लेकिन उसकी जलाई शमा आज पूरी दुनिया में अशिक्षा,जहालत,और ग़ुरबत  के अंधेरे को दूर कर रही है।।

शाम दर शाम जलेंगे, तेरे यादों के चिराग।

नस्ल दर नस्ल तेरा दर्द नुमाया होगा।