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इरोम शर्मिला के संघर्ष जैसा है 120 दिन से पानी की टंकी पर शिखा पाल का सत्याग्रह

लखनऊ। सोशलिस्ट महिला सभा और सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि बेरोजगारी की समस्या के निराकरण हेतु उत्तर प्रदेश सरकार में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है।

पार्टी की ओर से नुजहत सिद्दीकी, रानी सिद्दीकी, गौरव सिंह, मोहम्मद अहमद खान और संदीप पाण्डेय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार का एक विज्ञापन है, ’शिक्षित नारी है संकल्प हमारा, भविष्य का है यह विकल्प हमारा।’ किंतु एक शिक्षित नारी पिछले 120 दिनों से ऊपर हो गए शिक्षा निदेशालय, निशातगंज की पानी की टंकी पर सौ फीट की ऊंचाइ पर चढ़ी हुई है जो उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने की इच्छुक है। उसके पास शिक्षा में स्नातक की डिग्री है और उत्तर प्रदेश सरकार के पास 26,000 ऐसे पद खाली है जो शिखा पाल जैसे अभ्यर्थियों द्वारा भरे जा सकते हैं। इस पानी की टंकी के नीचे उसके कई सहयोगी 160 दिनों से ऊपर हो गए धरने पर बैठे हैं। क्या उ.प्र. में शिक्षित नारी का यही हश्र होने वाला है?
शिखा ने गर्मी झेली है, बरसात झेली है और अब ठंड से निपटने की तैयारी कर रही हैं कुछ वैसे ही जैसे किसान आंदालन ने सारे मौसमों की मार झेली। इरोम शर्मीला, जिसने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने के लिए इम्फाल, मणिपुर में 16 वषों का लम्बा उपवास किया, के बाद शायद एक महिला द्वारा अपनी मांग को लेकर शिखा पाल का अपनी तरह का अकेला जुझारू प्रदर्शन है।
सरकार का एक दूसरा विज्ञापन है जो दावा करता है कि उ.प्र. ने 4.5 लाख लोगों को रोजगार दिया है। किंतु 30,000 अनुदेशक व 69,000 कम्प्यूटर प्रशिक्षक जो सरकारी विद्यालयों में रुपए 7,000 के मासिक मानदेय पर काम करते हैं नियमितीकरण की मांग कर रहै हैं, 32,022 शारीरिक शिक्षा के व 4,000 उर्दू शिक्षकों, जिनको पिछली सरकार ने रखा था, की भर्तियों पर वर्तमान सरकार ने रोक लगा रखी है, 12,800 विशेष बी.टी.सी. व 12,400 बी.टी.सी. अपनी नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं यह कहते हुए कि यदि सरकार को उन्हें रखना नहीं था तो उन्हें प्रशिक्षण क्यों दिया। वर्ष  2018 से 2,00,000 प्रेरकों, जिनकी काम विद्यालयों में बच्चों का पंजीकरण बढ़ाना था, का रुपए 2,000 का मासिक मानदेय रोक कर रखा गया है, 1,50,000 एन.आई.ओ.एस. बेसक शिक्षा की नियमावली के तहत मान्यता चाहते हैं, 3,000 महाविद्यालयों के शिक्षक अपने परास्नातक छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति से कम वेतन पर पढ़ा रहे हैं, 3,750 फार्मासिस्ट नियुक्ति कर इंतजार कर रहे हैं, 74,000 गाम प्रहरी जो पुलिस के लिए मुखबिरी का काम करते हैं अपने रुपए 2,500 मासिक मानदेय की बढ़ोतरी चाहते हैं, 58,000 स्वच्छाग्राही जिन्होंने लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित किया व गांवों को खुले में शौच से मुक्त कराया अपने प्रति शौचालय रुपए 150 की प्रोत्साहन राशि व प्रति घोषित खुले में शौच से मुक्त गांव की रुपए 10,000 प्रोत्साहन राशि मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इस प्रकार नौकरियों के इंतजार में अथवा अपनी सेवा शर्तों से असंतुष्ट लोगों की संख्या 4.5 लाख से कहीं ज्यादा है। साफ है कि तस्वीर उतनी गुलाबी नहीं जितनी उत्तर प्रदेश सरकार के विज्ञापनों में नजर आती है। बल्कि स्थिति काफी विस्फोटक है क्योंकि शिखा पाल पानी की टंकी पर चढ़ी हुई हैं और दूसरे असंतुष्ट भी अपना धैर्य खो रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार कोई ठोस कदम जल्दी ही उठाएगी।

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