गोरखपुर, 26 जून। एक तरफ करोड़ो रूपया खर्च कर रामगढ़ ताल को साफ करने की परियोजना चल रही है, दूसरी तरफ अभी भी ताल में कालोनियों और शहर के नाले का गंदा पानी गिर रहा है। इसको रोकने और गंदे पानी को उपचारित कर रामगढ़ ताल में जाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। यही कारण है कि रामगढ़ ताल में लगातार सिल्ट जमा हो रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के बावजूद ताल में सीवर पानी का गिरना और ताल क्षेत्र में अतिक्रमण गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
रामगढ़ ताल करीब 7 वर्ग किमी0 क्षेत्रफल में फैला है। वर्ष 2010 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने रामगढ़ ताल को राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के अन्तर्गत ले लिया और इसके लिए 147.60 करोड़ लागत की परियोजना प्रस्तावित किया। केन्द्र सरकार ने इसे 124.30 करोड़ की धनराशि- 01 अप्रैल, 2010 को स्वीकृत किया था। इस परियोजना को 2013 तक पूर्ण होना था। यह पूरी योजना झील को प्रदूषण से मुक्त कर इसे सुन्दर बनाने तथा इसके जैविक-पारिस्थितिकी को मानक युक्त बनाने हेतु थी।
इस परियोजना में शहर के 6 विभिन्न स्थलों पर मिलने वाले गंदे नालोें को दो स्थानों पर रोक कर उनके पानी से ठोस कचरे को छानकर 30 एवं 15 एमएलडी गंदा जल सीटीपी तक ले जा कर गंदे जल को उपचारित कर झील में या बाहर प्रवाहित करना था। इसके अलवा झील से खरपतवार, जलकुम्भी आदि को साफ करने के साथ-साथ ताल की गहराई बढ़ाने के लिए उसके तली में जमे गाद को निकाल कर बाहर निकालना था।
इस परियोजना को समय से पूरा न करने के कारण इसकी लागत बढ़ती गई। अब दावा किया जा रहा है कि परियोजना के सभी कार्य पूरे हो चुके हैं लेकिन अभी भी ताल में खरपतवार, जलकुम्भी, कूड़ा-कचरा देखने को मिल रहा है।
इसी बीच रामगढ़ ताल के वेटलैण्ड को सुरक्षित रखने के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो राधेमोहन मिश्र ने नेशनल ग्रीन टिब्यूनल में याचिका दाखिल की जिस पर एनजीटी ने 9 अगस्त 2016 को वेट लैण्ड में हर तरह के स्थायी निर्माण को रोकने, ताल में गंदा जल प्रवाहित किए जाने पर रोक लगा दी।
एनजीटी के आदेश के मद्देनजर गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने ताल के किनारे जगह-जगह बोर्ड भी लगाया है कि ताल में मवेशियों का स्नान, कूड़ा-कचरा व अपशिष्ट पदार्थ फंेकना प्रतिबंधित है। यह बोर्ड लगाकर जीडीए ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया जबकि आज भी ताल के किनारे स्थित सरकारी, निजी कालोनियों से निकला गंदा पानी ताल में ही गिर रहा है।
पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्था महानगर पर्यावरण मंच ने मई महीने के अंतिम सप्ताह में इस विषय पर सर्वेक्षण कर एक रिपोर्ट जिलाधिकारी को दी है। इस रिपोर्ट पर डीएम ने अधिकारियों को कार्यवाही करने का भी निर्देश दिया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार ताल के पूर्वी तट पर स्थित सहारा स्टेट आवासीय कालोनी का गंदा जल कालोनी के उत्तरी-पश्चिमी छोर पर स्थित एक नाले के माध्यम से ताल में गिर रहा है। यहां पर पानी छानने का संयत्र बना हुआ है लेकिन वह कार्य नहीं कर रहा है।
ताल के पश्चिमी छोर पर बने बन्धा (ताल के सीमांकन हेतु) में कुल 6 जगहों पर बन्धे के पूर्व स्थित आवासीय कालोनियों का गन्दा जल बिना रोक टोक ताल में गिर रहा है।
कूड़ाघाट एवं झारखण्डी मुख्य नाले के पानी को पाइप द्वारा पम्पिंग स्टेशन से जोड़ा गया है ताकि उसका पानी पम्पिंग स्टेशन से पम्प होकर 15 एम एल डी गंदा जल उपचार केन्द्र (सीटीपी) तक पहुंचा कर साफ करने के बाद ताल में निस्तारित किया जाता है।परन्तु इन दोनों नालों का गंदा जल से ठोस अपशिष्टों को छानने के बाद, पम्पिंग पाइप में न जा कर सीधे ताल में ही गिर रहा हैं। इस प्रकार इन दोनों स्थलों को लेकर कुल 6 स्थलों पर छोटे-बड़े नालों का गंदा पानी पाइप द्वारा ताल में बिना रोक टोक गिराया जा रहा है।
इसी प्रकार कूड़ाधाट एवं मोहद्दीपुर से पैड़लेगंज चैराहे तक ( एनएच 29 सड़क के दक्षिण) रामगढ़ ताल रेलवे कालोनी तथा उसके सन्निकट पश्चिम स्थित प्राइवेट कालोनिया का गंदा पानी दक्षिण में ही ढाल होने के कारण सतत् ताल में गिर रहा है।
इस रिपोर्ट में रामगढ़ ताल को स्वच्छ रखने के लिए सर्वेक्षण कर ताल में गिरने वाले सभी छोटे-बड़े नालों को भी एसटीपी से जोड़ने, व्यक्तिगत घरों के जल को ताल में प्रवाहित होने रोकने, ताल के चारो ओर बने बन्धे के बाहर के नमभूमि पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने का सुझाव दिया गया है।