साहित्य - संस्कृति

कहानी ‘नाक की फुरूहुरी’ : प्रेम की उदात्तता के व्यापक मूल्य को बनाये रखने की जद्दोजहद

कोरोना काल के लम्बे सन्नाटे को तोड़ते हुए गोरखपुर में कहानी पाठ और कहानी कला पर एक सार्थक आयोजन 26 जून को संपन्न हुआ. जनवादी लेखक संघ गोरखपुर द्वारा आयोजित एकल कहानी पाठ कार्यक्रम’ में आज़मगढ़ से आयीं  सुप्रसिद्ध युवा कहानीकार डॉ सोनी पाण्डेय ने अपनी कहानी ‘नाक की फुरूहुरी’ का वाचन किया।

सोनी पाण्डेय के तीन कहानी संग्रह चर्चित हैं, वह ग्रामीण जीवन और देशज शब्दों के प्रयोग के लिए जानी जाती हैं।

यह कार्यक्रम स्थानीय सिविल कोर्ट के अधिवक्ता सभागार में आयोजित था।

पढ़ी गयी कहानी पर परिचर्चा में भाग लेते हुए डा आनंद पांडेय ने कहा की यह कहानी ग्रामीण परिवेश में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बदलते मूल्यों और प्राथमिकताओं की कहानी है। यह कहानी समय की शिनाख्त करती है। दांपत्य प्रेम के साथ संयुक्त परिवार के ताने बाने में बुनी कहानी पाठकों को पसन्द आयेगी।

कवयित्री सतविंदर कौर ने इस कहानी को ग्रामीण पारिवारिक जीवन और उसमें महिलाओं की स्थिति को लेकर कहीं गई बेहतरीन कहानी बताया। उन्होंने कहा कि इस कहानी में फुरुहुरी को माँ ने बेटी को और फिर उस बेटी ने अपनी बेटी को एक सांस्कृतिक मूल्य के रूप में दिया जो नाक में नकेल की तरह भी थी. वह फुरुहुरी पति और पत्नी के बीच प्रेम प्रतीक बन गयी, जिसे सामंती व्यवस्था काट निकालना चाहती थी, लेकिन नई पीढ़ी की शहरी महिला और शिक्षित होती एक लड़की उस फुरुहुरी में छुपी अपनी दादी की प्रेम भावना को खोने नहीं देतीं.

रंगकर्मी और कथाकार राजाराम चौधरी ने कहानी की समीक्षा करते हुए कहा कि कहानी में प्रतिरोध के तत्व शुरू से ही दिखने चाहिए. आजकल कहानियों में नाटकीयता अधिक और आख्यान कम होते जा रहे हैं. इस कहानी में आख्यान अधिक हैं. साफ़ दिखता है कि हमारे समाज में सामंती मूल्य बचे हुए हैं। गावों में तो वह अभी भी शक्तिशाली हैं। यह कहानी सामंती मूल्यों और आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं के बीच के द्वंद्व की कहानी है। इसकी देशज भाषा सभी को आकर्षित कर रही है। वास्तव में शब्द भी इस्तेमाल होते-होते अर्थ खोने लगते हैं। कहानी में देशज शब्दों के प्रयोग से कहानी में ताजगी तो आती ही है। साथ ही शब्दकोष भी सम्वृद्ध होता है।

फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ ने कहा कि कहानियाँ आम पाठकों तक न पहुंच पाने के कारण समाप्त भी हो जाती हैं. इस कहानी में देशज शब्दों ने दृष्यात्मकता उत्पन दिया है और इस कारण से कहानी को पाठक तक पहुँचने का रास्ता मिला है. इस कहानी में पति की मृत्यु के बाद पत्नी की नाक से फुरूहुरी निकालने का कष्ट दायक दृश्य कभी की सती प्रथा की यातनाओं की तरह है.

श्री पुरुषोतम त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य अधिरचना का हिस्सा है। अभी संरचना में पूंजी है। कहानी में सास की सम्पति पर बहुओं की नज़र अब आर्थिक कारणों से है। उन्होंने कहानी की भाषा पर कहा कि देशज शब्दों के सफल प्रयोग से लग रहा है कि कहानी की भाषा संस्कृतनिष्ट हिंदी से जन भाषा की ओर यात्रा कर रही है।

गीतकार वीरेंद्र मिश्र दीपक ने कथाकार से शीर्षक को भी काव्यात्मक बनाने की अपील की. कथाकार लाल बहादुर कहा कि यह एक सफल कहानी है। इस कहानी में प्रेमचंद के कथ्य और रेणु की आंचलिकता की याद आती है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता हिंदी विभाग के प्रो अनिल कुमार राय ने कहा कि सोनी पाण्डेय हमारे समय की एक प्रगतिशील- जनवादी कहानीकार हैं। यह कहानी अपनी वस्तु और संवेदना से कहानीकार की उक्त छबि और प्रतिष्ठा को पुष्ट करती है.
प्रो राय ने परिचित यथार्थ पर कहानी कहने, कहानी में अतीतावलोकन, संवेदना, वर्णन और चित्रण के अंतर आदि पर विस्तार से अपनी बातें रखी और प्रस्तुत कहानी पर कहा कि यह एक जानी -पहचानी पुरानी कथावस्तु पर आधृत होते हुए भी रचनाकार के रचनात्मक कौशल के कारण कई प्रसंगों में नई –सी होने का अनुभव कराती है।

उन्होंने कहा कि ऐसे सुपरिचित विषय कहानीकार के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं। भोजपुरी अंचल की भाषा – संस्कृति के पारम्परिक वातावरण से जीवन के जो दृश्य और संदर्भ अब नई पीढ़ी के लिए लगभग विस्मृत – से हो गए हैं , इस कहानी में उन्हें अन्वेषित ही नहीं किया गया है , बल्कि उनकी स्वाभाविक संवेदना और अर्थवत्ता के साथ पुनर्प्रस्तुत भी किया गया है। यह इस अंचल के साहित्य – समाज के लिए एक नए तरह के अनुभव के संसार में प्रवेश करने जैसा है । यह इस कहानी की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

प्रो राय ने आगे कहा कि मध्यकालीन सामंती हिन्दू समाज के चले आ रहे विश्वासों और संस्कारों के विरुद्ध नई आधुनिक चेतना की प्रतिष्ठा कहानी का केन्द्रीय मूल्य है, जो हमारे समय के लिए भी इसे जरूरी और पठनीय बनाती है.

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि सामंती अवशेषों को वर्तमान में भी देखा जा सकता है। आज धर्मान्धता और पाखण्ड को राजनीतक गलियारों से सह मिल रहा है। इसलिए साहित्य में इन्हें उजागर करना जरुरी है। सोनी पाण्डेय ने अपनी कहानी में प्रेम और घृणा को एक दूसरे के खिलाफ पूरे रचना कौशल के साथ खड़ा किया है। प्रेम की उदात्तता के व्यापक मूल्य को बनाये रखने की जद्दोजहद कराती हुयी यह एक कामयाब कहानी है. इसमें शिक्षा की सकारात्मक भूमिका में खडी है. उन्होंने सोनी के रचना विधान पर कहा कि कथाकार ने कहीं भी विचारधारा को आरोपित नहीं किया है.

कहानी पर आयोजित परिचर्चा में शायर कलीमुल हक, देवेन्द्रनाथ द्विवेदी , कवि जय प्रकाश नायक, संजीव कुमार आदि ने भी अपने विचार रखे. चार घंटे चले इस विचारोतेजक कार्यक्रम में सामाजिक नेता शिव वचन, अशोक चौधरी , चतुरानन ओझा, वेद प्रकाश , प्रबोध नारायण , श्याम मिलन, संजय कुमार आर्य , विनय अजीज , शिव नंदन सहाय , मनोज मिश्र , बैद्नाथ आदि साहित्यकारों सहित तमाम पाठकों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि जयप्रकाश मल्ल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार ने किया।

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