लागत बढ़ता गया लेकिन यूपी में तीन वर्ष से नहीं बढ़ा गन्ने का दाम

आनंद राय

अक्टूबर 2016 में अखिलेश सरकार ने गन्ने का मूल्य ₹325 रुपया प्रति क्विंटल घोषित किया। अभी आधा ही गन्ना सत्र बीता था कि मार्च 2017 में योगी सरकार अस्तित्व में आ गयी। तबसे यानि 2017 से लेकर 2020 तक  प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य एक रुपया भी नहीं बढ़ाया है। तीन वर्ष से गन्ना मूल्य 335 रुपया क्विंटल स्थिर है।

इस बीच खाद-कीटनाशक-मजदूरी-डीजल कुछ भी स्थिर नहीं रहा है। सब के दाम बढ़ गए लेकिन गन्ना का दाम नही बढ़ा।

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर ने योगी सरकार को सूचित किया है कि इस सत्र में गन्ने की लागत ₹300/- कुन्तल है

गन्ना किसान, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों के दावों “लागत मूल्य का डेढ़ गुना” के मद्देनजर ₹450/- और 14 दिन में पूर्ण भुगतान अन्यथा 15%ब्याज के साथ भुगतान की मांग कर रहे हैं।

दूसरी तरफ चीनी मिलों के संगठन एस्मा ने योगी सरकार को कह दिया है कि एक रुपया भी अगर बढ़ा तो हम गन्ना भुगतान नही कर पाएंगे और सरकार ब्याज मुक्त धनराशि हमें मुहैया कराए अन्यथा हम गन्ना भुगतान तीन पार्ट में (150+100+75₹) करेंगे।

मोदी सरकार ने FRP में इस सत्र के लिए ₹10/-कुन्तल का इजाफा किया है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि योगी सरकार गन्ना किसानों की मांग मानते हुए ₹450/-प्रति कुन्तल गन्ना मूल्य घोषित करती है या शुगर लाबी के दबाव के तहत पिछले 3 वर्षों की तरह गन्ना मूल्य नही बढ़ाती है और शुगर लाबी को फायदा पहुंचाते हुए ₹325/- ही बरकरार रखती है

इस वर्ष गन्ना किसानों के ऊपर चौतरफा आफत आन पड़ी है।
लगभग 30-40% गन्ना रेड रॉट नामक बीमारी के फैलने के कारण सूख गया है।

बेहद लम्बे समय तक वर्षाकाल जारी रहने से जलजमाव दूसरी आफत बन के टूटा। इसकी वजह से गन्ना का विकास न हो सका और गलने-सड़ने की समस्या व्यापक रूप से सामने आईं।

कोविड काल तीसरे आफत के रूप में टूटा। इसकी वजह से पिछले सत्र का गन्ना मूल्य भुगतान अभी तक शत प्रतिशत नही हो सका और अभी भी लगभग 4 हजार करोड़ रुपया यूपी के गन्ना किसानों का बकाया है

गन्ना मूल्य निर्धारित नहीं होने से चौथी आफत आन पड़ी है। चीनी मिलों के चले लगभग डेढ़ महीना हो चुका है। पूरे यूपी में गन्ना सप्लाई पर्चियों में गन्ने का भाव जीरो जीरो लिख कर आ रहा है भुगतान तो बेहद दूर की कौड़ी है।

अब इन आफतों का सबसे बुरा कोई भुगत रहा है तो वो हैं यूपी का गन्ना किसान।
नया सत्र चल रहा है उसको अपनी फसल कटाई-छिलाई-लदाई-साधन खर्च-खेत साफ कराई इत्यादि मद में तत्काल भुगतान करना पड़ता है। हाथ मे पैसे हैं नहीं तो ये खर्चे निकलें कैसें ?

इस सूरत में गन्ना किसान अपनी फसल औने पौने दाम ₹150/- से 250/- पर कोल्हू/क्रेशर पर बेच कर अपने खेती और बेहद जरूरी तत्काल के घरेलू खर्चों की व्यवस्था करने को मजबूर है।

किसानों को पहले ही ₹1868/- का धान ₹800 से 1100/- पर बेचने को विवश किया ही जा चुका है। अब गन्ना उत्पादक भी अपनी फसल को बेहद कम दाम में बेचने को विवश हैं।

गन्ना किसान अधिक बारिश और बीमारी से नुकसान हुए फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ भी नही ले सकता क्योंकि गन्ना,  इस बीमा योजना में नामित ही नही है।

धान की फसल में किसानों से प्रीमियम तो काट लिया जाता है लेकिन फसल के नुकसान का बीमा पाने के लिए किसानों को नाको चने चबाने पड़ते हैं क्योंकि बीमा योजना के प्रावधान ही ऐसे ऐसे बनाये गए हैं कि आम किसान उसका फायदा नहीं ले पाता है।
बीमा कंपनियों को प्रीमियम लूटने की खुली छूट देकर किसानों के ऊपर पांचवा हमला बोल दिया गया है।

किसी भी पेशे में उत्साह तभी आता है जब उसके मेहनत का उचित व लाभकारी मूल्य समय से उसे प्राप्त हो जाए।
खेती में ऐसा कत्तई नही हो रहा औने पौने दाम पर उत्पाद बेचने पर मजबूर कर दिए जाने पर भला कौन सा उत्साह बनेगा।

लम्बे समय तक ऐसी स्थितियां रहने पर मजबूरी वश व्यक्ति उस पेशे से निकलेगा नही तो क्या करेगा ?

गन्ना चीनी मिल में जाता है और चीनी, बगास, शीरा, प्रेसमड के रूप में बाहर आता है।
सिर्फ गन्ने को छोड़कर बाकी सभी चीजों का दाम तय है और मिलें तुंरन्त भुगतान भी पा जातीं हैं इन चीजों का।
बस जिस चीज से ये चारों चीज बनती है उसी के भुगतान में सारे नियम कानून ,किंतु परन्तु सामने लाई जाती है और किसान को बेबस और बेचारा बना कर छोड़ दिया जाता है।

मोदी सरकार तीन कृषि कानूनों को लेकर आई है और दावा कर रही है कि इससे छोटे से छोटा किसान भी “समृद्ध” हो जाएगा
अगर सच में ऐसा ही है तो उपरोक्त बातें इन तीनों कानूनों के देश में लागू हो जाने के बाद के ही विश्लेषण हैं। कहाँ बदली स्थिति ?

कारपोरेट लाबी ही इन कानूनों से उत्साहित है क्योंकि उनको पता है कि अभी तक बिना किसी संस्थागत कानून के हमारे हित सध रहे थे अब तो इसी काम के लिए अब एक पूरा का पूरा व्यवस्थित कानून आ चुका है

किसान हित के भलाई के भोंपू के शोर में किसानों को एक किनारे साइड लाइन करके उसके पास सीमित विकल्प छोड़ दिया जा रहा है कि या तो औने पौने दाम पर अपने उत्पाद बेचे अन्यथा खेती किसानी छोड़कर दूसरे काम मे लगे।

इन दोनों ही स्थितियों में लाभ में कौन है और नुकसान में कौन है, इसे साफ तौर पर देखा जा सकता है।

(लेखक युवा किसान हैं )