गोरखपुर। “ सुनीता अबाबील कि कविताएं कर्तृत्व से वंचित कि
यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्या
उन्होंने कहा कि कर्तृत्व के वंचित किए जाने का मतलब यह नहीं कि इन पात्रों की कोई गतिविधि नहीं, बल्कि महज यह कि वे वही कुछ करने को बाध्य हैं जो कथित सभ्य समाज ने उनके लिए निर्धारित किया है। उनकी क्रियाएं उनकी इच्छा से नहीं, दूसरों की इच्छा से संचालित हैं। इसीलिए ये किरदार लोगों से भरी हुई दुनिया में निविड़ अलगाव और परायापन झेलती हैं। स्त्री, दलित और श्रमजीवी गरीबों के स्वत्व से वंचित होने की कवितायेँ अनेक हैं। लेकिन सुनीता की कवितायेँ ऐसे चरित्रों की वंचना-कथा कहती हैं जो एक साथ तीनों हैं। ये तिहरा आत्मनिर्वासन जो इन कविताओं में व्यक्त हुआ है, अनेक तरह की भावदशाओं को समेटे हुए है, जिनकी केंद्रीय संवेदना दंश की है।
प्रो प्रणय कृष्ण ने कहा कि इस संग्रह को अ
उन्होंने कहा कि इको फेमिनिस्म
प्रो प्रणय कृष्ण ने कहा कि इस संग्रह की एक बड़ी विशेषता है जिजीविषा। भीषण दुखों के बावजूद सम्मान के साथ जीने की इच्छा और उसके लिए संघर्ष और अथक आशावाद इन कविताओं में भरपूर है. कई जगह ये आशावाद फंतासी में फूटता है. अबाबील शीर्षक कविता में ‘अबाबील’ ने खेलना छोड़ा है, लेकिन उड़ना सीख लिया है. ‘ इंतज़ार में है लड़कियां ‘ कविता में कवयित्री ने एक फंतासी रचने की कोशिश की है, जो कभी सच होगी।
कवयित्री रूपम मिश्र ने कहा कि
रूपम मिश्र ने कहा कि अभिधा में
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के
उन्होंने कहा कि सुनीता की कविताओं को पढ़ते हुए कई प्रमुख
अध्यक्षीय संबोधन में गोरखपुर वि
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो दी
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रो राजेश मल्ल ने कहा कि सुनीता जाति, रंग के भेदभाव और महिलाओं के दुःख-पीड़ा को बहुत गहराई से उद्घाटित कराती हैं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कवयि
इस मौक़े पर वरिष्ठ पत्रकार रा