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पत्रकारिता के समक्ष चुनौती है सत्य के पक्ष में हलफ उठाना : डॉ. सुधीर सक्सेना

गोरखपुर l आज पत्रकारिता के सामने दोहरी चुनौती है l चुनौती भीतरी भी है और बाहरी भी l इसलिए एक सजग पत्रकार को इन दोनों चुनौतियों का सामना अपनी चाहत और विवेक के साथ करना होगा l पत्रकारिता को कटघरे में खड़ा करने की बजाय हमें खुद को भी देखना चाहिए कि हम किस तरह का समाज बना रहे हैं l अपने घरों में पढ़ने लिखने की संस्कृति का किस तरह विकास कर रहे हैं l एक सजग पत्रकार का धर्म होता है कि वह सत्य के पक्ष में हलफ उठाए, तभी वह समाज और व्यवस्था को एक नई दिशा दे सकता है l आज के दौर में हमारे पत्रकारों ने प्रश्न पूछना बंद कर दिया है, यह चिंता की बात है l

यह विचार हिंदी के प्रतिष्ठित पत्रकार और जाने-माने कवि डॉ. सुधीर सक्सेना ने व्यक्त किया l वह सोमवार को ‘ गतिविधि ‘ संस्था की ओर से गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब के सभागार में आयोजित समकालीन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां विषय पर बतौर मुख्य अतिथि अपना वक्तव्य दे रहे थे l अपनी विचारोत्तेजक तकरीर में डॉ. सक्सेना ने समकालीन पत्रकारिता के अंत और बाह्य संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि हम उपभोक्तावादी समाज के एक ऐसे दौर में सांस ले रहे हैं जहां हमें हमारी हर सांस का दूसरी जगह हिसाब लिया जा रहा है यह आज के पत्रकार की सबसे बड़ी अंतर वेदना है l हमें इस बात के लिए तैयार रहना है कि हम जो देखते हैं वही हमें लिखना और बोलना चाहिए l असहमति को जगह मिलनी चाहिए l केवल एक तरह के विचारों को प्रक्षेपित करना पत्रकार का धर्म नहीं है l उसका परम धर्म है सत्य की पहचान करना और तथ्यों के आधार पर उसका प्रस्तुति करना l हमें समाज और व्यवस्था के भीतर जो असली शत्रु हैं उनकी पहचान देर सवेर करनी ही होगी l तभी हम सत्य के पक्ष में हलफ उठा सकते हैं जिससे समाज में स्वीकारोक्ति होगी l वक्तव्य के समापन समापन में डॉ. सक्सेना ने कहा कि हमें आज विचारों की दृढ़ता की जरूरत है l तभी हमारी अलग पहचान बनेगी l आज मीडिया में पहले की अपेक्षा रंगे सियार अधिक हैं, जिनकी पहचान भी पत्रकारिता को ही करनी होगी l क्योंकि यही लोग पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं l हमारी ताकत व्यावसायिक घराने नहीं बल्कि समाज है, जिसने हमारा निर्माण किया है l इसे हर हाल में बचाना है और यही बड़ी चुनौती भी है l इस अवसर पर डॉ. सक्सेना ने ‘ विडंबना ‘, ‘ 272 ‘, ‘ तानाशाह ‘, ‘ अर्धरात्रि ‘, ‘ रात में जब चंद्रमा बजाता है बांसुरी ‘ आदि कविताओं का पाठ किया, जिसे मौजूद लोगों ने काफी सराहा l

आयोजन के आरंभ में गतिविधि के कार्यक्रम संयोजक और जाने-माने आलोचक और संस्कृतिकर्मी प्रो. अरविंद त्रिपाठी ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गतिविधि नए विचार और साहित्य के मुख्यधारा केंद्रीय संस्था रही है l हमारा मकसद मनोरंजन नहीं बल्कि समाज और साहित्य में नए विचारों का समावेश करना है l उन्होंने डॉ. सुधीर सक्सेना का स्वागत करते हुए कहा कि सुधीर समकालीन कविता में श्रीकांत वर्मा की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कवि हैं। उनकी कविता इतिहास के बहाने अपने समय के यथार्थ की खोज है l डॉ. सुधीर के बहुआयामी व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सुधीर के भीतर बैठा हुआ एक सजग पत्रकार और एक संवेदनशील कवि दोनों साथ-साथ यात्रा करते हैं l दोनों ही अपने मकसद में कामयाब हैं। वह प्रश्न पूछने वाले कवि हैं, उत्तर देने वाले नहीं l इसलिए उनकी कविता हमेशा कभी इतिहास में और कभी अतीत मैं जाकर वर्तमान के जलते हुए प्रश्नों से मुठभेड़ करती है l

आयोजन में बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद प्रो. चितरंजन मिश्र ने कहा कहा कि आज पत्रकारिता के समक्ष जो चुनौतियां दिख रही हैं वह केवल पत्रकारिता की नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन की चुनौतियां हैं l आज समाज और राजनीति में असहमति की प्रवृत्ति को दबाया जा रहा है, जो पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं है l पत्रकारिता में अभिव्यक्ति की आजादी सबसे बड़ा जीवन मूल्य जो आज दांव पर लगा है l

रेल सेवा के पूर्व अधिकारी राकेश त्रिपाठी ने पराधीन भारत के दौर में पत्रकारिता के समक्ष की चुनौतियों के इतिहास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज हमें अतीत से सबक लेकर वर्तमान को संवारने का काम करना चाहिए, तभी एक पत्रकार का धर्म सफल होगा l

दिल्ली से आए पत्रकार संजय सिंह ने बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि पत्रकारिता के चेहरे को बाहर से देखने की बजाय आज भीतर से देखने की जरूरत है l पत्रकार आज खुद ही अपने अस्तित्व से जूझ रहा है l ऐसा नहीं है कि हर पत्रकार दूसरों के इशारे पर काम कर रहा है, बल्कि सजग पत्रकार हमेशा अपने धर्म का पालन विकट स्थितियों में भी भरपूर कर रहे हैं l

अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. अनंत मिश्रा ने कहा कि आज पत्रकारिता को हार्दिक विवेक की जरूरत है l वह आरंभ से नीर क्षीर विवेकी रही है लेकिन बदले हुए हालात में उसे साहित्य से यह सीखने की जरूरत है कि सत्य का पक्ष कहीं पीछे न छूट जाए l इसलिए मनुष्यता के पक्ष में ही पत्रकारिता और साहित्य का धर्म अपनी राह बनाता है और उस पर चलने की कोशिश करता है l आज पत्रकारिता के सामने जो चुनौतियां हैं कोई नई नहीं है लेकिन हमें सत्य की पहचान जरूर करनी होगी और वही लिखना होगा, जिसके लिए हमारी आत्मा गवाही दे रही हो l

करीब 4 घंटे की विचारोत्तेजक परिसंवाद में पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर गंभीर बहस और चर्चाएं हुई, जिनमें वक्ताओं के साथ श्रोताओं की भी सहभागिता रही l इस अवसर पर आरंभ में आकाशवाणी के लोकप्रिय गायक प्रभाकर शुक्ला ने वाणी वंदना प्रस्तुत की l आकाशवाणी की ही वरिष्ठ ब्रॉडकास्टर नूतन मिश्र ने मुख्य अतिथि डॉ. सुधीर सक्सेना एक रेखांकन, शीर्षक से उनके लेखन यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया l गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब की ओर से महामंत्री मनोज यादव ने अतिथियों का स्वागत और गतिविधि संस्था की व्यवस्था प्रभारी सुश्री तृप्ति लाल ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया l कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार विजय कुमार उपाध्याय ने किया l आयोजन में साहित्यकार, पत्रकार, शहर के गणमान्य प्रबुद्ध जन एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे l आयोजन को सफल बनाने में गतिविधि के पदाधिकारी शिवेंद्र मणि त्रिपाठी और रजनीश पांडेय का विशेष योगदान रहा l

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