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बस्ती में ध्वस्त हुआ फ्लाईओवर ठेका पाने वाली कंपनी नहीं लोकल ठेकेदार बना रहे थे 

गोरखपुर; विकास में सबको हिस्सेदारी चाहिये, भले ही हिस्सेदारी के बांट बखरा में ताश के पत्ते की तरह ढह जाने वाली इमारतें, फ्लाईओवर, पुल खड़ें हो जायें. आम जनता की जान सांसत में पड़ी रहे, किसी को इसकी परवाह नहीं है. मिशन-2019 सामने है लिहाजा विकास दिखाने की जल्दी है. साथ ही विकास में मुनाफे के लिये लगे हिस्सेदारों के हितों की गारंटी भी जरूरी है.

एनएच-28 पर 11 अगस्त की सुबह बस्ती के पास फुटहिया में निर्माणाधीन फ्लाईओवर का 12 मीटर चौड़ा और 45.5 मीटर लंबा आरसीसी स्पैन टूटकर धराशाई हो गया था. संयोग से इस घटना में किसी की जान नहीं गयी लेकिन चार मजदूर घायल हो गये. निर्माणाधीन फ्लाईओवर का काम ठेका पाने वाली मूल कंपनी नही लोकल ठेकेदार करा रहे थे.

सड़क परिवहन और राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय से परियोजना निर्माण का ठेका हैदराबाद की कंपनी केएमसी लिमिटेड को टेंडर के जरिये मिला था. इस टेंडर में 15 करोड़ की लागत से बनने वाले फुटहिया फ्लाईओवर निर्माण की जिम्मेदारी मूल कंपनी ने लखनऊ की विजय कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड वीसीआईपीएल को दी। बताते है कि मौके पर काम बस्ती के ही ठेकेदार करा रहे थे. जिनकी योग्यता निर्माण कार्य के मानक के अनुरूप नहीं थी.

-बस्ती के डीएम राजशेखर ने 24 जुलाई को किया था निर्माण स्थल का निरीक्षण, गुणवत्ता की जांच आईआईटी, रुडकी या कानपुर से कराने के लिये शासन को पत्र लिखा था

दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार वाराणसी में इसी साल मई माह में फ्लाईओवर हादसे से बस्ती में राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों ने कोई सबक नहीं लिया. काम के बंटवारे को लेकर जनप्रतिनिधियों से लगायत विभागीय जिम्मेदारों का काफी दबाव था. मंत्रालय से निविदा जिस कंपनी को मिली थी उसने लखनऊ की बीसीआईपीएल को काम दे दिया. इस कंपनी ने भी खुद काम पूरा न करके इसे स्थानीय ठेकेदारों के हवाले कर दिया. तीन माह पहले केन्द्रीय राज्य सड़क परिवहन मंत्रालय की टीम इस परियोजना को अधूरी हालत में छोड़कर चली गयी. अस्थाई तौर पर यहां बनाया गया पीआईओ कार्यालय रीजनल आफिस लखनऊ में मर्ज निर्माण कार्य को बिना निगरानी के छोड़ दिया गया.

अमर उजाला की खबर के अनुसार फ्लाइओवर का काम 60 फीसदी पूरा हो चुका था. 24 जुलाई को बस्ती के डीएम राजशेखर ने निर्माणस्थल का दौरा किया था. अधिकारियों ने दिसंबर तक कार्य पूरा करने का आश्वासन दिया था. निर्माण कार्य की गुणवत्ता की जांच आईआईटी रुड़की या कानपुर से कराने के लिये शासन को पत्र लिखा था.

राजमार्ग प्राधिकरण के एक अधिकारी ने गोरखपुर न्यूज लाइन से अपनी पीड़ा शेयर करते हुये बताया कि इतना ज्यादा दबाब है कि मानक के अनुरूप काम करना मुश्किल हो चला है। राजनेताओं को सारे प्रोजेक्ट के उद्घाटन, शिलान्यास की जल्दी है। इसके चक्कर में जल्दी जल्दी काम निपटाये जा रहे हैं। इसके अलावा निर्माण कंपनियों को विविध स्तरों पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को संतुष्ट रखना पड़ता है। जनप्रतिनिधियों के दबाव में उनके लोगों को स्थानीय स्तर पर परियोजना में हिस्सेदार बनाना पड़ता है। इन पर हम जिम्मेदार अधिकारी भी गुणवत्ता का दबाव नहीं डाल सकते क्योंकि इसके बाद ये दुश्मन हो जाते हैं और नौकरी के पीछे पड़ जाते हैं। इस अधिकारी ने कहा कि जिस निर्माणकार्य में ज्यादा पार्टनर होंगे और सबकों हिस्सेदारी चाहिये होगी। ऐसे में गुणवत्ता की गारंटी मुश्किल होगी।

इस अधिकारी का दर्द यह है कि किसी हादसे में कोई जनप्रतिनिधि दंडित नहीं होता। बनारस हादसे में सेतु निगम के अधिकारी कर्मचारी और एक स्थानीय ठेकेदार मुलजिम बनाये गये। पर मूल ठेकेदार कंपनी को बचा लिया गया क्योंकि वह सत्ता के शिखर पर मौजूद लोगों से जुड़ी हुई थी।

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में ध्वस्त फ्लाईओवर- फाइल फोटो

क्या यूपी क्या पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी में भी ढहा फ्लाईओवर

11 अगस्त को उप्र के बस्ती में फोरलेन पर निर्माणाधीन फ्लाईओवर के ढहने की घटना अकेली नहीं है। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के फांसीदेवा प्रखंड के कांतिभिटा में एनएच-31डी पर घोषपुकुर व फांसीदेवा को जोड़ने वाला फ्लाईओवर सुबह ध्रराशाई हो गया। यह हादसा भी बस्ती की तरह सुबह के वक्त हुआ जिससे लोग हताहत होने से बच गये।

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