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कुशीनगर में ‘ मैत्रेय ’ के अवतरण की संभावना पूरी तरह खत्म, मैत्रेय परियोजना की एमओयू निरस्त

किसानों ने निर्णय का स्वागत किया,  अधिग्रहीत भूमि वापस मांगी

मैत्रेय परियोजना के स्थान पर पर्यटन विभाग को इन्टीग्रेटेड बुद्ध सर्किट का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश

लखनउ /गोरखपुर/ कुशीनगर. योगी सरकार ने आज कुशीनगर मैत्रेय परियोजना का एमओयू और लीज डीड निरस्त कर दिया. मंत्रिपरिषद की आज हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। मंत्रिपरिषद ने मैत्रेय परियोजना के स्थान पर पर्यटन विभाग को इन्टीग्रेटेड बुद्ध सर्किट विकसित करने का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

मंत्रिपरिषद के इस निर्णय से कुशीनगर में 250 मिलियन डालर की मैत्रेय परियोजना के जमीन पर उतरने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो गई है. कुशीनगर के किसानों ने प्रदेश सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए मांग की कि अब किसानों को उनकी भूमि तुरंत वापस कर दी जानी चाहिए.

भूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष गोवर्धन गोंड ने कहा कि प्रदेश सरकार का निर्णय स्वागत योग्य है। सरकार 2012-13 में करार एक्ट के तहत ली गई 202 एकड़ भूमि पर मेडिकल कालेज व अन्य जनोपयोगी निर्माण कराए. शेष भूमि किसानों को वापस कर दे. किसानों को जमीन वापस मिलने तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.

इस प्रोजेक्ट के लिए पांच मई 2003 में तत्कलीन मुलायम सरकार ने मैत्रेय परियोजना ट्रस्ट से एमओयू किया था. एमओयू के पहले राजनाथ सरकार, मायावती सरकार ने परियोजना को सैद्धांतिक सहमति दी थी और इसको आगे बढ़ाया था.

मुल परियोजना में महात्मा बुद्ध की 500 फीट उंची विशालकाय प्रतिमा के अलावा एक धर्मार्थ चिकित्सालय, प्रारम्भिक से उच्च स्तर तक की शिक्षा के लिए एक धर्मार्थ शिक्षण संस्थान, विशाल ध्यान केन्द्र (मेडिटेशन पवेलियन), फव्वारों से सुसज्जित भव्य जलाशय, बच्चों के लिए पार्क, बौद्ध विहार व अतिथि गृह आदि का निर्माण प्रस्तावित था. परियोजना की लागत 250 मिलियन डालर थी.

एमओयू के अनुसार राज्य सरकार को परियोजना के लिए 750 एकड़ भूमि निःशुल्क उपलब्ध करानी थी. परियोजना पर व्यय मैत्रेय परियोजना ट्रस्ट को करना था.

इस परियोजना के तहत वर्ष 2004-05 में सात गांव- विशुनपुर विंदवलिया, सबया, कसया, सिसवा, अनिरुधवा डुमरी की 660.57 एकड़ सहित कुल 750 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की गई थी.  किसानों ने भूमि अधिग्रहण का विरोध किया और इसके खिलाफ भूमि बचाओ संघर्ष समिति की अगुवाई में लम्बा आंदोलन चलाया. आंदोलन के कारण मैत्रेय प्रोजेक्ट ट्रस्ट को भूमि पर कब्जा नहीं मिल पाया. इससे निराश ट्रस्ट ने 2012 में मैत्रेय परियोजन से अपने हाथ खींच लिए.

तब तत्कालीन अखिलेश सरकार ने नए सिरे से मैत्रेय परियोजना ट्रस्ट से बातचीत शुरू की। परियोजना में संशोधन करते हुए इसे 273 एकड़ तक सीमित कर दिया। बुद्ध प्रतिमा की उंचाई भी 500 फीट से घटा कर 200 फीट कर दी गई. नए सिरे से बढ़े हुए मुआवजे पर किसानों से करार के तहत जमीन ली गई लेकिन जिला प्रशासन को 202 एकड़ भूमि ही मिल पाई. शेष 71 एकड़ भूमि को प्रोजेक्ट के लिए न देने का ऐलान करते हुए किसान हाईकोर्ट में चले गए.

इसके बाद 13 दिसम्बर 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस परियोजना का शिलान्यास किया. शिलान्यास के छह वर्ष बाद भी परियोजना का यहां पर काम शुरू नहीं हो पाया. सिर्फ थाई मंदिर के पास परियोजना का आफिस बना था. परियोजना से जुड़े पुराने लोग ट्रस्ट से या तो अलग हो गए या अलग कर दिए गए.

शिलान्यास के बाद भी परियोजना को कोई कार्य शुरू न होने को लेकर सवाल उठ रहे थे. किसान जमीन वापसी की मांग को लेकर दबाव बनाए हुए थे. कुशीनगर के विधायक रजनीकांत मणि त्रिपाठी ने विधानसभा में प्रश्न उठाकर ट्रस्ट पर कई गम्भीर सवाल खड़ा किए थे और सरकार से स्वयं भूमि पर जनहितकारी योजना लांच करने की मांग की थी.

इस पर प्रदेश सरकार ने कुशीनगर के जिलाधिकारी से इस परियोजना के बारे में रिपोर्ट मांगी . डीएम के निर्देश पर कसया के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट/एसडीएम अभिषेक पांडेय ने ट्रस्ट व परियोजना की डीपीआर,सरंचना, वित्तीय व तकनीकि आदि पहलुओं का परीक्षण कर एक रिपोर्ट तैयार की. इस रिपोर्ट को डीएम ने अपनी संस्तुति के साथ निदेशक संस्कृति को भेजा.

डीएम और निदेशक संस्कृति ने राज्य सरकार को बताया कि मैत्रेय परियोजना ट्रस्ट द्वारा कई वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी एमओयू, संशोधित एमओयू तथा लीज डीड के प्राविधानों के अनुसार कार्य नहीं किया जा रहा है, जबकि उन्हें पर्याप्त भूमि उपलब्ध करा दी गयी है.

कैबिनेट ने इसी आख्या व संस्तुति के आधार पर मैत्रेय परियोजना ट्रस्ट और राज्य सरकार के बीच 16 वर्ष पुराने एमओयू को आज निरस्त कर दिया.

मैत्रेय परियोजन बौद्ध अनुयायियों की संस्था फाउंडेशन फार द प्रिजरवेशन आफ द महायान ट्रेडिशन (एफएमपीटी) का उपक्रम था. इस संस्था के आध्यात्मिक निदेशक लामा जोपा रिनपोछे हैं. संस्था का विश्वास है कि बुद्ध का अगला जन्म ‘ मैत्रेय ‘ के रूप में कुशीनगर में होगा क्योंकि उनका महाप्रयाण यहीं हुआ था. इसलिए मैत्रेय परियोजना के जरिए पूरे विश्व में शांति, सद्भाव, करूण का संदेश देने के लिए कुशीनगर में बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए. इसी विचार से इस परियोजना की संकल्पना तैयार की गई थी.

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