साहित्य - संस्कृति

पसमांदा समाज की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक स्थिति नहीं बदली -प्रो. चौथीराम यादव

गोरखपुर। पसमांदा समाज का अधिकांश हिस्सा हिन्दू समाज का धर्म परिवर्तन करने वाले दलित- पिछड़ों से ही मिल कर बना है। पसमांदा समाज के साथ सबसे बड़ी साजिश यह हुई कि उनका धर्म तो परिवर्तित हुआ मगर पेशा नहीं। इस कारण पेशेगत जो अवमानना उन्हें हिन्दू समाज में रहते झेलनी पड़ीं, वही मुस्लिम समाज का हिस्सा बनने के बाद भी वे झेल रहे हैं। उनकी सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।

उपरोक्त बातें प्रोफेसर चौथीराम यादव ने ‘आयाम’ द्वारा प्रेस क्लब में ‘ दलित, पसमांदा और बहुजन : साहित्य और समाज का सच ‘ विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमीनार में अपने उद्धाटन वक्तव्य में कही.

विमर्श में हिस्सा लेते हुए वाराणसी से आए प्रोफेसर कमलेश वर्मा ने जाति के जमात बनने के ख़तरों की चर्चा की. उन्होंने कहा कि जाति के सवाल पर हिंदू समाज और मुस्लिम समाज अलग-अलग तरह से विचार और व्यवहार करता है l हिंदू समाज में तो जाति के सवाल को मुखरता से उठाया गया है पर मुस्लिम समाज जाति के प्रश्न पर मौन हैl

आजमगढ़ से आई पसमांदा ऐक्टिविस्ट सबीहा अंसारी ने मुस्लिम समाज में जातिवाद पर अपने विचार रखते हुए कहा कि पसमांदा फ़ारसी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ पीछे छूट गया या जो पीछे छूट गये हैं l उन्होंने कहा की मुस्लिम समाज के सिद्धांत में तो भेद नहीं है पर व्यवहार में यहाँ भी जातियाँ हैं और जातियाँ की विद्रूप सच्चाईयाँ भी हैं l

डा. सिद्धार्थ ने हिन्दू समाज के ब्राह्मणवाद चर्चा  करते हुए कहा कि दलित साहित्य प्रतिशोध का साहित्य है, भारतीय समाज के निर्माण का साहित्य है और इसी साहित्य ने दलितों के आंदोलन को धार दियाl पसमांदा समाज के साहित्य पर काम करना होगा, साहित्य को खोजना होगा उसे धार देना होगा ताकि वो पसमांदा समाज को धार दे सकेl

आलोचक मैनेजर पाण्डेय की स्मृति को समर्पित इस आयोजन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध दलित विचारक एवं ग़ज़लगो बी. आर. विप्लवी ने की।

समारोह की शुरुआत में प्रोफेसर चित्तरंजन मिश्र ने हिंदी आलोचना में मैनेजर पाण्डेय के अवदान पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रो मैनेजर पांडेय ने आलोचना को नया मानदंड दियाl विवेकपूर्ण सहमति और साहसपूर्ण विरोध का आलोचनात्मक तरीका बताया l

आयोजन की प्रस्तावना ‘ आयाम ‘ के संयोजक देवेंद्र आर्य ने रखी l

दूसरे सत्र में बीज वक्तव्य देते डॉ अलख निरंजन में कहा की भारत में कोई भी निर्णायक सामाजिक परिवर्तन की लडाई दलित या पिछड़ो के नेतृत्व के बिना नहीं लडी जा सकती हैl उन्होंने कहा कि पसमांदा समाज को अपने समाज से ही नेतृत्व निकाल कर लडाई लड़नी होगी l

शामशाद अहमद मंसूरी ने पसमांदा समाज के पिछडेपन के कारणों की सविस्तार चर्चा की l

अमर उजाला के संपादक अरुण आदित्य ने कहा कि पसमांदा समाज पर साहित्य को खोज कर सामने लाने की ज़रूरत है ताकि समस्या को समझते हुए समाधान की ओर बढ़ा जा सके l

प्रथम सत्र का संचालन अमित कुमार ने और दूसरे सत्र का संचालन अजय सिंह ने किया l

कार्यक्रम में इमामूदीन, असीम सत्यदेव, प्रमोद कुमार ने हस्तक्षेप के अंतर्गत अपनी बात रखी l इस अवसर पर सूरज भारती, मोहन आनंद आज़ाद, राजा राम चौधरी, संजय आर्य सहित कई लेखक, पत्रकार उपस्थिति थे l

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