साहित्य - संस्कृति

कवि के भीतर एक नैतिक आक्रोश होता है : प्रो0 चितरंजन मिश्र

श्रीधर मिश्र के कविता संग्रह ‘वह सुबह कब होगी’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण

गोरखपुर। बुधवार नांगालिया शिक्षा एवं स्वास्थ्य संस्थान (नेहा) के तत्वाधान में कवि-आलोचक श्रीधर मिश्र की पुस्तक ‘वह सुबह कब होगी’ का लोकार्पण बैंक रोड स्थित विवेक होटल के सभागार में हुआ ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर चितरंजन मिश्र ने और संचालन प्रोफेसर विमलेश कुमार मिश्र ने किया। इस अवसर पर साहित्यिक वातावरण के सृजन में अपना अमूल्य योगदान देने हेतु वरिष्ठ कवि नरसिंह बहादुर चंद का मानपत्र, अंग वस्त्र, व स्मृति चिन्ह द्वारा अभिनंदन किया गया ।

वक्तव्य के क्रम में अमित कुमार ने कहा श्रीधर मिश्र अपनी कविताओं द्वारा एक यात्रा में हैं। इनकी कविताएं केवल संकेत ही नहीं करती बल्कि हलचल पैदा करती है। आसपास के वातावरण के प्रति व्यापक दृष्टि प्रदान करती है।

श्रीधर मिश्र ने कोरोना काल की अपनी रचना ‘अग्निपथ के यानी ‘ के पाठ द्वारा माहौल को भावुक किया- वह शहर थोड़े ही है, वह गांव है अपना, धधाकर मिलेंगे सब ।

अजय कुमार सिंह ने लोकार्पित संग्रह की विशेष कविताओं का ‘ जो चुप थे/उन्हें सहमत मान लिया गया/ जो असहमत थे/ उन्हें चुप मान लिया गया ‘ , ‘ गांधी जैसा पहाड़/ कि जिसने भी उसकी धोती खींची/ वह खुद नंगा होता रहा ‘, ‘ जब मैं लिखता हूं मां/ भोजपत्र हो जाता है पत्र/ जब मैं सोचता हूं मां/ गंगाजल हो जाता है मन ‘ का पाठ करते हुए कहा कि  अपनी कविताओं के जरिए श्रीधर मिश्र एक अच्छी सुबह का सपना देखते हैं।

अपने वक्तव्य में नरसिंह बहादुर चंद ने प्रत्येक व्यक्ति से मनसा वाचा कर्मणा एक बेहतर सुबह लाने का प्रयास करने हेतु आग्रह किया।

वरिष्ठ कवि एवं आलोचक देवेंद्र आर्य ने कहा कि श्रीधर मिश्र स्वयं छंद युक्त कविताएं रचते हैं जबकि आलोचना छंदबद्ध रचनाओं की करते हैं, यह महत्वपूर्ण है।

लोकार्पण संग्रह के शीर्षक “वह सुबह कब होगी” को रेखांकित करते हुए वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल ने कहा कि श्रीधर मिश्र की प्रत्येक कविता एक विशेष सुबह की खोज में है जिसकी आकांक्षा संपूर्ण जगत को है। स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि श्रीधर मिश्र की कविताएं इस लिए महत्वपूर्ण लगती हैं कि कविता रचते समय वे स्वयं को एक बड़े कवि के रूप में स्थापित नहीं करते हैं।

डॉ अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि दुख बोध और निराशा भरे समय से गुजरती हुई श्रीधर मिश्र की कविताएं एक आशा भरी सुबह की दिशा में अग्रसर है। यह आशावाद ही कवि का लक्ष्य होना चाहिए।

अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर चितरंजन मिश्र ने कहा कि कवि के भीतर एक नैतिक आक्रोश होता है जिसके वशीभूत होकर वह लिखता है। श्रीधर की कविताएं स्वयं को कसौटी पर रख कर दूसरों का मूल्यांकन करती है जिनमें सभी के दुखों को बहुत गहराई से व्यक्त किया गया है।

आभार ज्ञापन नेहा के संयोजक मोहन आनंद आजाद ने किया । इस अवसर पर आरडीएन श्रीवास्तव, धर्मेंद्र त्रिपाठी, सृजन गोरखपुरी, डॉक्टर चारूसीला सिंह, सुनैना गुप्ता, आईएच सिद्धकी, रोशन सिद्धकी, सुभाष चंद्र यादव, कुमार अभिनीत, सुधीर श्रीवास्तव, डॉक्टर कामिल खान, वीरेंद्र मिश्र दीपक, डॉक्टर चेतना पांडेय, हिमांशु, ओमप्रकाश पांडेय आचार्य, राम सुधार सिंह सैंथवार, राजेश धर दुबे, हरेंद्र राय, सुधांशु मोहन सिंह, ज्ञानेंद्र ओझा, योगेश शुक्ला, अजय सिंह, अनिल पांडेय, योगेंद्र शर्मा, वशिष्ठ त्रिपाठी, महेंद्र चतुर्वेदी, अनिरुद्ध त्रिपाठी, नारायण पांडेय, कुलदीप सिंह, अरविंद चंद, महेश कुमार शुक्ल आदि साहित्यकार व शिक्षक उपस्थित रहे।