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हम राजनीतिक द्वेष के शिकार हुए हैं -शिक्षा मित्र

 उत्तर प्रदेश में बीजेपी के शासन काल में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा 1999- 2000 में प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए उनके जगह को भरने के उद्देश्य से तथा विद्यालयों में सुचारु रुप से गुणवत्तापरक पठन पाठन हेतु गांव के मेधावी अभ्यर्थियों को शिक्षामित्र के पद पर चयन कर 2250 रुपए के मानदेय पर रखा जिनका काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना था।

समय बीतने के साथ-साथ मानदेय बढ़ोतरी के लिए कई बार जिले से लेकर लखनऊ तक शिक्षामित्र संगठनों द्वारा धरना-प्रदर्शन किया गया. इस दौरान कई बार लाठियां चली ,लोग जेल भी गए तब जाकर 2250 से 2400  रुपए फिर 3000 और उसके बाद 3500 रूपये मानदेय हुआ.

उसके बाद सपा सरकार आई और अपने घोषणा पत्र के वादे के मुताबिक प्रदेश के सभी शिक्षामित्रों को 2 वर्षीय दूरस्थ बीटीसी का प्रशिक्षण कराकर 2014-15 में 137000 शिक्षा मित्रों का समायोजन सहायक अध्यापक के पद पर किया. मामला हाईकोर्ट पहुंचा और 12 सितंबर 2015 को हाईकोर्ट वृहद पीठ ने समायोजन रद्द किया. फिर सुप्रीम कोर्ट से 7 दिसंबर 2015 को स्टे मिला और पुनः 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद्द किया और प्रदेश के 137000 सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित शिक्षक सड़क पर आ गए.

तब से जिले से लेकर लखनऊ, दिल्ली तक शिक्षा मित्र धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. वर्ष 2017 में प्रदेश में बीजेपी सरकार आई. उसने अपने संकल्प पत्र में शिक्षामित्रों की समस्या को तीन महीने में न्यायोचित तरीके से समाधान करने की बात कही थी परन्तु दो वर्ष बाद भी यह सरकार कोई राहत नहीं दे सकी है.

इस बीच शिक्षामित्रों के एक संगठन ने उमा देवी के नेतृत्व में 18 मई से लखनऊ में कई महीने लगातार इकोकार्डन में धरना दिया, जहां ब्राहृमण शिक्षामित्रों ने अपने जनेऊ का परित्याग किया तो वहीं महिला शिक्षामित्रों ने बाल मुंडवा लिए जो मीडिया में काफी चर्चा का विषय बना रहा.

इसके बाद सरकार ने उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया जिसका रिपोर्ट अभी तक उजागर नहीं हुआ कि शिक्षामित्रों के लिए क्या निर्णय लिए गए है.

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के बैनर तले 1 जून से विभिन्न शिक्षामित्रों के अलग-अलग संगठनों ने एक होकर ” संयुक्त समायोजित शिक्षक शिक्षामित्र संघ ” के बैनर तले एक मंच पर गाजी इमाम आला के नेतृत्व में इको गार्डन लखनऊ में अनवरत तेरह दिन धरना चला. धरने के 13 वें दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संगठन के प्रतिनिधियों की बातचीत हुई. शिक्षा मित्रों को आश्वासन मिला कि सरकार उनकी बेहतरी के लिए सोच रही है. थोड़ा समय दिया जाय. शिक्षा मित्रों ने इस आश्वासन पर अपना आन्दोलन समाप्त कर दिया. लेकिन प्रदेश सरकार ने कुछ नहीं किया. इस दौरान सदमे, अवसाद और आत्महत्या के कारण 1200 शिक्षा मित्रों व उनके परिजनों की मौत हो चुकी है.

प्रदेश मे एक लाख बहत्तर हजार शिक्षामित्रों में से 1,37,000  शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हुआ था. समायोजन रद होने के बाद अब उनसे  दस हजार के मानदेय पर कार्य लिया जा रहा है जबकि पहले वे 35,000 से 40,000 रूपये पाते थे. अब उन्हें पूरे 12 महीने के बजाय सिर्फ ग्यारह माह ही मंदी दिया जा रहा है. जून माह का मानदेय उन्हें नहीं मिलेगा.

आइये सुनते हैं कि शिक्षा मित्र आपने मुद्दे पर क्या बोलते हैं –

अविनाश कुमार

जीवन के 18 वर्ष प्राथमिक विद्यालयों में खपा दिए. अब जब अपने बच्चे 18 वर्ष से अधिक के हो गए हैं. पढ़ाई-लिखाई का खर्च बढ़ गया है. आखिर हम कहाँ जाएँ ? इसी उम्मीद पर टिके रहे कि एक ना एक दिन हम भी नियमित हो कर सहायक अध्यापक बनेंगे.

 

 

रामनगीना निषाद

 शिक्षामित्रों के विषय में अयोग्यता की गलत अफवाह फैलाई जा रही है. सभी शिक्षामित्र स्नातक हैं, बीटीसी हैं और एक शिक्षक की योग्यता रखते हैं . प्रदेश का शिक्षामित्र राजनीतिक द्वेष भावना का शिकार हुआ है.

 

 

मनोज यादव

तीन वर्ष स्थाई शिक्षक के पद पर कार्य करने के बाद कोर्ट के आदेश का हवाला देकर निकाल देना सरकार की विफलता है. कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट रूप से कहा था कि सरकार चाहे तो रख सकती है.

 

 

रविंद्र चौधरी

 शिक्षामित्रों से सरकार तगड़ी दुश्मनी निभा रही है. अब तक शिक्षक की भर्ती टेट पास और एकेडमिक मेरिट से होती थी, लेकिन शिक्षामित्र फिर शिक्षक ना बन सके इसलिए लिखित परीक्षा पहली बार अलग से ठोक दी गई है. जरा सोचिए 17 वर्ष पहले किसी सिपाही ,लेखपाल, आईएएस ,पीसीएस से इस समय के अभ्यर्थियों के साथ कंपटीशन करवाया जाए तो क्या यह दोबारा पुनः भर्ती हो सकते हैं ? ठीक वही बात शिक्षा मित्रों के साथ लागू होती है. 18 वर्ष नौकरी करने के बाद नए अभ्यर्थियों के साथ लिखित कंपटीशन करवाया जा रहा है जो निहायत गलत है.

 

बिन्दु सिंह

 प्रदेश सरकार बार-बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर शिक्षामित्रों को बरगलाती रही है. सरकार इमानदारी पूर्वक कोर्ट के फैसले पर इतना ही गंभीर है तो अभी जल्द ही हाईकोर्ट का एक फैसला 38,878 रुपया देने का आया है. इस पर सरकार क्यों नहीं अमल कर रही है ?

 

दिलीप कुमार

9 अगस्त 2017 को एक कानून पारित हुआ है जिसमें अपने पद पर रहते हुए 4 साल में योग्यता पूरी करने का समय दिया गया है जिसके आधार पर उत्तराखंड के शिक्षा मित्रों को शिक्षक के पद पर रहते हुए योग्यता पूरी करने का समय दिया गया है तो उत्तर प्रदेश में इस समय अपने पद पर रहते हुए शिक्षामित्रों को क्यों नहीं समय दिया जा रहा है जबकि शिक्षामित्र का जन्म जब हुआ उस समय उत्तराखंड यूपी में ही था.

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