नगर निकाय चुनाव 2023

गोरखपुर शहर में मतदान में कमी का कारण क्या है

गोरखपुर। मुख्यमंत्री के शहर में नगर निकाय चुनाव में एक बार फिर बहुत कम मतदान हुआ। तमाम कोशिशों और मुख्यमंत्री की अपील के बावजूद पिछले चुनाव से सिर्फ एक फीसदी ही अधिक वोट पड़े। यदि नए बने वार्डों के साथ शहर के कुछ बाहरी वार्डों के मतदाताओं ने उत्साह नहीं दिखाया होता तो मतदान प्रतिशत 30 फीसदी से नीचे चला जाता। कम मतदान होने से सबसे अधिक नुकसान भाजपा प्रत्याशी का ही होगा। कम मतदान का खामियाजा भाजपा 2018 के लोकसभा उप चुनाव में भुगत भी चुकी है।

नगर निगम चुनाव में इस बार 32 गांवों को शामिल करते हुए दस और वार्डों को बढ़ा दिया गया। इससे नगर निगम के वार्डों की संख्या 70 से बढ़कर 80 हो गई। मतदाताओं की संख्या भी 8.65 लाख से बढ़कर 10.48 लाख हो गई।

भाजपा ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किए थे। खुद मुख्यमंत्री ने गोरखपुर की दो जनसभाआों सहित चिकित्सक और व्यापारी समुदाय के साथ बैठकों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर जोर दिया। उनकी अपील पर कुछ चिकित्सक मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर भाजपा का प्रचार करने भी निकले। राप्तीनगर और टाउनहाल की सभा में योगी आदित्यनाथ ने अपील की कि लोग मतदान के दिन नेपाल घूमने न जाएं। पहले मतदान करें और फिर जलपान करें। कार्यकर्ताओं से कहा कि एक -एक बूथ छान ले और अधिक से अधिक मतदान कराएं। सर्द -गर्म मौसम की परवाह न करें। मतदान बढ़ाने को लेकर मुख्यमंत्री कितने गंभीर थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि टाउनहाल की सभा में उन्होंने कहा कि राप्तीनगर में हमारा प्रत्याशी निर्विरोध चुनाव जीत गया है लेकिन वहाँ वहां के प्रत्याशी को पूरी मेहनत करनी होगी कि वहां महापौर पद पर शत प्रतिशत मतदान हो।

नए वार्डों में मतदान प्रतिशत 

  नया वार्ड मतदान %
1

 

रानीडीहा 52.51
2 खोराबार 55.64
3 बड़गो 48.28
4 संझाई 57.62
5 मोहनपुर 43.61
6 गुलरिहा 57.00
7 हरिसेवकपुर 50.09

 

8 भरवलिया 42.89

 

9 देवी प्रसाद नगर 54.1
10 गायघाट 60.6

 

चार मई को जब मतदान हुआ तो राप्तीनगर सहित तमाम वार्डों में मुख्यमंत्री की अपील और भाजपा के प्रयासों का कोई असर नहीं दिखा। कुछ वार्डों विशेषकर नए वार्डों, विस्तारित शहर के इलाकों में ही मतदाताओं में उत्साह दिखा।
गोरखपुर में कुल 36.74 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछले चुनाव की तुलना में सिर्फ एक फीसदी अधिक है। वर्ष 2017 में 35.74 फीसदी मतदान हुआ था।

दो वार्डों में तो 20 फीसदी से भी कम मतदान हुआ। राप्तीनगर वार्ड में 12 फीसदी तो सिविल लाइन दो में 18.3 फीसदी मतदान हुआ। इसके अलावा 19 वार्डों में 30 फीसदी से भी कम मतदान हुआ। ये सभी वार्ड भाजपा के मजबूत गढ़ माने जाते हैं।

पिछले चार चुनावों से गोरखपुर शहर में फीके मतदान का ही ट्रेंड हैं। वर्ष 1989 में नगर निगम बनने के बाद पहली बार मेयर का चुनाव हुआ था। तब मेयर सीधे जनता के वोट से नहीं चुने जाते थे। निर्वाचित पार्षद मेयर को चुनते थे। इस चुनाव में कांग्रेस के पवन बथवाल को पार्षदों ने मेयर चुना था।  इसके बाद वर्ष 1995 से सीधे जनता के वोट से मेयर चुनने कि व्यवस्था कि गई। इस चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र शर्मा नगर प्रमुख बने थे। उस वक्त 60 प्रतिशत वोट पड़े थे। वर्ष 2000 में गोरखपुर की जनता ने नेताओं के खिलाफ नकारात्मक मतदान किया था और निर्दल किन्नर आशा देवी उर्फ अमरनाथ को मेयर बनाने के लिए 50 प्रतिशत से अधिक लोग बूथों तक पहुंचे थे। इसके बाद वर्ष 2006 में हुए चुनाव में बीजेपी की अंजू चौधरी को मेयर चुना गया था लेकिन करीब 43 प्रतिशत लोगों ने ही वोट डाले थे। वर्ष 2012 में नगर निगम चुनाव में केवल 38.3 प्रतिशत मतदान हुआ और बीजेपी की डा. सत्या पांडेय मेयर बनीं। पिछले चुनाव में नगर निगम के केवल 35.4 प्रतिशत मतदाताओं ने ही वोट डाला।

 

गोरखपुर नगर निगम में मतदान 

  वार्ड मतदान %
1 महादेव झारखंडी 01 37.05
2 रानीडीहा 52.51
3 मदन मोहन मालवीयनगर 37.34
4 महादेव झारखंडी 02 40.00
5 खोराबार 55.64
6 बड़गो 48.28
7 गायत्रीनगर 43.85
8 गिरधरगंज 35.82
9 सिविल लाइंस 2 18.3
10 गोपालपुर 46.85
11 मत्सयेन्द्र नगर 58.99
12 शाहिद अशफ़अकुलह नगर 29.5
13 भरवलिया 42.89
14 कान्हा उपवन नगर 35.29
15 गायघाट 60.67
16 देवी प्रसाद नगर 54.18
17 चंद्रशेखर आजाद चौक 25.97
18 शिवाजी नगर 38.8
19 कृष्णमोहन पांडेय नगर 28.63
20 सरदार भगत सिंह नगर 26.34
21 बाबा राघव दास नगर 51.94
22 बाबा गम्भीरनाथ नगर 48.45
23 चरगांवा 37.3
24 नकहा 32.83
25 राप्तीनगर 12.00
26 अशोक नगर 33.00
27 लच्छीपुर 30.88
28 मोहनपुर 43.61
29 तुलसी राम पश्चिमी 55.00
30 शहीद शिव सिंह छेत्री नगर 47.88
31 सँझाई 57.62
32 डॉ राजेन्द्र प्रसाद नगर 49.66
33 माधवनगर 52.25
34 उर्वरक नगर 42.20
35 शिवपुर 38.31
36 पंडित रामप्रसाद बिस्मिल नगर 24.2
37 गुलरिहा 57
38 हरसेवकपुर 50.09
39 सालिकराम नगर 25.47
40 लोहियानगर 33.14
41 हनुमंतनगर 26.38
42 दिग्विजयनगर 40.59
43 जटेपुर 31.26
44 विश्वकर्मापुरम बौलिया 36.72
45 कृष्णनगर 35.39
46 महाराणा प्रताप नगर 36.7
47 शाहपुर 31.08
48 रामजानकी नगर 28.62
49 मैत्रीपूरम 22.3
50 शक्तिनगर 28.2
51 मानसरोवर नगर 39.45
52 माधोपुर 30.51
53 कल्याणपुर 38.76
54 बंधुसिंह नगर 39.4
55 सूरजकुंड धाम 25.47
56 आत्माराम नगर 33.37
57 साहबगंज 28.92
58 महर्षि दधीचि नगर 31.6
59 शिवजी नगर 29.85
60 घंटाघर 35.00
61 नरसिंह पुर 29.58
62 महात्मा ज्योतिबा फूले नगर 30.67
63 बेनीगंज रुद्रपुर 30.28
64 विजय चौक 25.1
65 माया बाजार 29.7
66 जगन्नाथपुर 33.19
67 धर्मशाला बाजार 36.29
68 आर्यनगर 28.96
69 रायगंज 30.41
70 बसंतपुर 34.66
71 बेतियाहाता 28.62
72 गीता प्रेस नगर 42.57
73 रघुपति सहाय फिराक नगर 28.84
74 विकास नगर 36.44
75 विष्णुपुरम 22.00
76 नेताजी सुभाष नगर 45.32
77 श्रीराम चौक 39.55
78 संत झूले लाल नगर 36.4
79 पुराना गोरखपुर 29.8
80 सिविल लाइन 1 32.27
  कुल मतदान 36.749

 

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से शहर में  अभूतपूर्व विकास के दावों के बाद भी मतदाताओं में उत्साह का संचार न होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पहला कारण यह बताया जा रहा है कि लोग इस बात से निश्चिंत हैं कि यहां भाजपा ही जीतेगी। यहां भाजपा को हराना नामुमकिन है। इसलिए भाजपा समर्थक मतदाता और भाजपा विरोधी मतदाता अपने वोट को लेकर उदासीन रहे।

दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा में काफी खींचतान रही। पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप लगे। यह आरोप खुद भाजपा के एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने लगाए। चार निवर्तमान पार्षदों के टिकट काट दिए गए। दो पार्षद तो चुनाव में भी उतर गए। खुद मुख्यमंत्री ने पहल कर कई बागियों को मना लिया लेकिन एक निवर्तमान पार्षद सहित कई कार्यकर्ता चुनाव में डटे रहे। आखिरकार उन्हें पार्टी से निकाला गया। मंचों और बैठकों में भाजपा नेता व कार्यकर्ता अपना चेहरा दिखाते रहे लेकिन फील्ड में उन्होंने मतदाताओं को बूथ तक लाने में ज्यादा मेहनत नहीं की। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि मुख्यमंत्री जिस वार्ड में मतदान को लेकर मंच से विशेष हिदायत दे रहे हों , वहां भाजपा के चार बार के जीते पार्षद व भाजपा संगठन 12 फीसद ही मतदान करा सका।

तीसरा कारण मतदाता सूची में गड़बड़ी। यह गड़बडी हर बूथ पर दिखी। हर बूथ पर मतदाताओं के नाम गायब मिले। अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में यह शिकायत अधिक देखी गई। समाजवादी पार्टी की ओर से राज्य निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई है कि हर बूथ से 100-100 मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं।

पिछले कुछ चुनावों से देखा जा रहा है कि भाजपा हो या सपा या कोई अन्य दल , वोटर लिस्ट को लेकर बहुत सचेत नहीं रहता है। नगर निगम के चुनाव में लोग खुद से मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के प्रति ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं। यह काम पार्षद  उम्मीदवार ही करते रहे हैं। राजनीति में धनबल के बढते प्रभाव के कारण ठोस जमीनी काम (मतदाता सूची दुरुस्त करने, घर-घर सम्पर्क, मतदाता पर्ची का वितरण ) के बजाय रोड शो, खाली घूमते प्रचार वाहन, घर-घर प्रचार करने के बजाय सोशल मीडिया में तस्वीर , वीडियो डालने की प्रवृत्ति नेताओं-कार्यकर्ताओं में बढ़ती जा रही है जिसका सबसे बड़ा असर यह है कि मतदाताओं से प्रत्याशियों का सीधा कनेक्ट बन ही नहीं पा रहा है। इस वजह से भी मतदाता बूथ पर जाने का उत्साह नहीं बना पाते। कई ऐसे मतदाता मिले जिनसे किसी भी पार्टी ने किसी भी स्तर से कोई सम्पर्क नहीं किया था। वे मतदान के प्रति अनिच्छुक दिखे।

चौथा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह समझ में आता है कि नगर निगम के महापौर बने नेताओं का नगर की जनता पर कोई छाप नहीं छोड़ पाना। पिछले पाँच चुनावों में चार बार भाजपा से ही मेयर बने है।  एक बार किन्नर निर्दल किन्नर आशा देवी चुनी गईं थीं। किन्नर आशा देवी को लोगों ने पूर्व के मेयर की निष्क्रियता से आक्रोशित होकर ही चुना था। इसके बाद बने मेयर भी जनता में अपनी कोई खास पहचान नहीं बना पाए। वे समारोहों में फीता काटने और दीप प्रज्ज्वलन को ही अपना मुख्य कार्यभार मानते रहे। कोई इस दायरे से बाहर निकलने की कोशिश करता नहीं दिखा। अभी भाजपा के एक बड़े नेता मंच पर बोल गए कि पहली बार सही मायनों में लोग महापौर को चुनेंगे।

इसकी एक वजह यह भी है कि गोरखपुर की भाजपा की पूरी राजनीति योगी आदित्यनाथ केन्द्रित है। चुने हुए महापौर उनके संकेत को पढ़ने और आदेश-निर्देश का पालन करने तक अपने को सीमित रखते हैं। इसलिए उनकी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं बन सकी। इसके बरक्स विपक्ष की भी राजनीति नगरीय विकास को लेकर बेहद निष्क्रियता का रहा है। वे नगरीय विकास के मुद्दों पर पूरे पांच वर्ष तक संघर्ष-संवाद से दूर ही रहते हैं और चाहते हैं चुनाव में लोग उन्हें वोट दे दें।

इन सभी कारणों के कारण नगर के मतदाताओं में मतदान के साथ-साथ शहर के मुद्दों पर किसी भी प्रकार की सक्रियता कम होती जा रही है। हालत यह हो गई है कि नगर निगम के कुल मतदाताओं का सिर्फ 18 से 20 फीसदी वोट से महापौर चुना जा रहा है लेकिन इसकी चिंता शायद ही किसी को हो।

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