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प्रो गोपाल प्रसाद को क्यों देना पड़ा चीफ प्राक्टर पद से इस्तीफा

गोरखपुर। कुलपति पर अमर्यादित व्यवहार और गलत काम कराने का दबाव बनाने का आरोप लगाकर चीफ प्राक्टर पद से इस्तीफा देने वाले दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर गोपाल प्रसाद को विश्वविद्यालय प्रशासन ने नोटिस देकर तीन दिन में जवाब मांगा है। नोटिस में प्रो गोपाल प्रसाद पर मीडिया और सोशल मीडिया में भ्रामक बयान देकर विश्वविद्यालय की ब्रांड इमेज को धूमिल करने का आरोप लगाया गया है। प्रो गोपाल प्रसाद इस्तीफे के बाद मुखर हैं और उनका कहना है कि वे सम्मान कि लड़ाई लड़ेंगे।

दलित वर्ग से आने वाले प्रो गोपाल प्रसाद राजनीति विज्ञान में प्रोफसर हैं। वे छह नवम्बर 2022 को चीफ प्राक्टर बने थे। इसके पहले भी वह दो वर्ष (2017-19) गोरखपुर विश्वविद्यालय के चीफ प्राक्टर रह चुके हैं। उन्होंने 24 अप्रैल की रात चीफ प्राक्टर पद के साथ साथ दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष व दो छात्रावासों के वार्डेन पद से इस्तीफा दे दिया।

प्रो गोपाल प्रसाद ने इस्तीफे का कारण कुलपति द्वारा अमर्यादित व्यवहार करना और गलत कार्य के लिए दबाव बनाना बताया। उनका कहना था कि कुलपति ने कई बार उनके साथ गलत व्यवहार किया। सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। छात्रों व शिक्षकों पर विधि विरू़द्ध कार्यवाही करने का दबाव बनाया और ऐसा नहीं करने पर उत्पीड़न किया।

गोरखपुर न्यूज लाइन ने पड़ताल की तो पता चला कि हालिया तीन घटनाएं प्रो गोपाल प्रसाद के इस्तीफे के कारण बनीं। इन प्रकरणों में उन्होंने कुलपति प्रो राजेश सिंह के आदेश-निर्देश पर सवाल उठाने का साहस किया था।

पहला प्रकरण इतिहास विभाग के दो शिक्षकों के कक्ष को जबरन खाली कराने का था। इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो चन्द्रभूषण व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर मनोज तिवारी के कक्ष को कुलपति ने बिना दोनों को बताए जनवरी महीने में अर्थशास्त्र विभाग को आवंटित कर दिया और दोनों कक्षों को खाली करने को कहा। इस बारे में दोनों शिक्षकों ने आपत्ति करते हुए कहा कि बिना दूसरा कक्ष आवंटित किए कक्ष नहीं खाली कराया जाना चाहिए। इसी बीच कुलपति ने चीफ प्राक्टर को दोनों कक्ष खाली कराने ओर अर्थशास्त्र विभाग को सौंपने का आदेश दिया। प्रो गोपाल प्रसाद इतिहास विभाग जाकर शिक्षकों से बात कर लौट गए। इस पर कुलपति ने उन पर पुनः दबाव बनाया तो उन्हें 19 अप्रैल को दोनों कक्षों में ताला बंद करने की कार्यवाही करनी पड़ी। इस प्रकरण में तेजी और सख्ती नहीं दिखाने पर कुलपति ने प्रो गोपाल प्रसाद को उनके पद से हटाने की बात कही थी।

इसी तरह एक आउटसोर्स ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए प्रो गोपाल प्रसाद को देर रात निर्देशित किया गया। बहुत दबाव बनाये जाने पर वे देर रात कैंट थाने गए और एफआईआर के लिए तहरीर दी। कुलपति ने चीफ प्राक्टर को सुबह तक ठेकेदार की गिरफ़्तारी सुनिश्चित कराने को कहा। इस पर प्रो गोपाल प्रसाद ने कहा कि यह काम पुलिस का है। उन्होंने एफआईआर दर्ज करा दी है। इस पर उन्हें चीफ प्राक्टर का कार्य कर पाने में अक्षम बताया गया।

इसी तरह 2019-20 सत्र के प्री पीएचडी के 17 अभ्यथियों पर फिर से कार्यवाही के लिए प्रो गोपाल प्रसाद पर दबाव बनाया गया। प्रो गोपाल प्रसाद का कहना था कि पुलिस जांच में प्री पीएचडी अभ्यर्थियों को क्लीन चिट मिल गई है। इसलिए उन पद दुबारा कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं है। इस पर कुलपति उनसे नाराज हो गए।

प्रो गोपाल प्रसाद ने आए दिन हो रही इस तरह की घटनाओं से क्षुब्ध होकर इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देते ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी। गुरूवार की रात रजिस्ट्रार की ओर से नोटिस भेजी गयी। नोटिस में मीडिया व सोशल मीडिया में भ्रामक बयान देकर विश्वविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों की ब्रांड इमेज को धूमिल करने, उचित प्राधिकार से अपनी शिकायतें कहने के बजाय बिना अनुमति मीडिया में कई मुद्दों को उठाने का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि यह विश्वविद्यालय के अधिनियम में वर्णित कोड आफ कंडक्ट के अनुसार का उल्लंघन है जिसमें सत्यनिष्ठा के प्रति अपेक्षा व्यक्त की गई है। नोटिस में कहा गया कि आरोपों का तीन दिन में जवाब दिया जाय।

प्रो गोपाल प्रसाद ने गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि उन्हें नोटिस मिली है और उसका वे जवाब भेज रहे हैं।

प्रो गोपाल प्रसाद पहले ऐसे शिक्षक नहीं हैं जिन्हें नोटिस मिली है। विश्वविद्यालयों कि एक दर्जन शिक्षकों को समय -समय पर नोटिस मिलती रही है। हिन्दी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्त को कुलपति की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के लिए निलंबित कर दिया गया है।

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