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एमएलसी चुनाव में पंचायतों के अधिकार पर बात करने से क्यों कतरा रही है बीजेपी : डॉ चतुरानन ओझा 

देवरिया। ‘ भाजपा द्वारा एमएलसी चुनाव में की जा रही बैठक और प्रचार पंचायत प्रतिनिधियों को गुमराह करने के लिए किए जा रहे हैं। बैठक में पंचायतों को दिए गए संविधान प्रदत्त अधिकारों की कोई चर्चा नहीं की जाती है। इस बात की चर्चा भी नहीं की जाती है कि किस तरह उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के 100 दिन पूरे होने के उपलक्ष्य में उत्तर प्रदेश कैबिनेट द्वारा परंपरा से चली आ रही पंचायतों, न्याय पंचायतों को खत्म करने का फैसला ले लिया गया और उन्हें खत्म कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि उन पंचायतों में पंच और सरपंच मिलकर 42 धाराओं में फैसले दिया करते थे। इसमें चुने हुए “पंच परमेश्वर” के आगे जनता निशुल्क और त्वरित न्याय हासिल करती थी। आज जिन राज्यों में न्याय पंचायतें हैं वहां 90% मामले कोर्ट कचहरी तक नहीं जाते। बीजेपी के राज में उनको गठित करने का वादा किया गया था लेकिन उनको खत्म कर दिया गया। ‘

यह बातें पंचायत प्रतिनिधि महासंघ, उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता डॉ चतुरानन ओझा ने कही। ऊनहोने कहा कि आज जनता किसी भी स्तर पर न्याय हासिल करने से वंचित हो रही है। न्याय पंचायतों को खत्म करने से ये हालात बने हैं। ग्राम पंचायतों को ठेकेदारों के हवाले सौंप दिया गया है और जिले के अधिकारी ठेकेदारी कर रहे हैं। संविधान द्वारा 73 वें संशोधन विधेयक के माध्यम से गांव में काम करने वाले 29 विभागों को पूर्णतया चुनी हुई ग्राम पंचायतों के अधीन होना चाहिए लेकिन उसकी बात एमएलसी चुनाव के लिए हो रही किसी मीटिंग में नहीं हो रही है और अमूर्त और धोखाधड़ी वाली भाषा में पंचायत प्रतिनिधियों के सम्मान स्वाभिमान को बचाने की बातें की जा रही हैं ।

डॉ ओझा ने कहा कि पंचायतों के अधिकार का अपहरण कर उसके सम्मान को बचाने की बात करना पंचायत प्रतिनिधियों के साथ धोखाधड़ी और बेशर्मी है। असल बात यह है कि बीजेपी के पिछले 5 साल के शासन काल में चुने गए प्रतिनिधियों और लोकतांत्रिक संस्थाओं का कोई मोल नहीं रह गया है। आज सभी निर्णय ऊपर से थोपे जा रहे हैं। पंचायत राज की जगह कलेक्टर राज चल रहा है । आज पंचायतों को अधिकार संपन्न बनाने और नौकरशाही के चंगुल से मुक्त कराने की जरूरत है लेकिन बीजेपी और उसके नियंत्रित विपक्ष की इसमें कोई भूमिका और रुचि नहीं है।

उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में प्राइमरी स्कूल में सबसे अधिक जिम्मेदारी के काम करने वाले रसोईया को ₹1000 दिया जाता रहा है जबकि जिनसे कोई भी काम लेने में जिला प्रशासन और सरकार अक्षम रही है ऐसे सफाई कर्मियों को सरकारी नौकरी के नाम पर ₹30000 की तनख्वाह दी जाती है। पंचायतों के निर्णय और विवेक पर होने वाले फैसले और दिए जाने वाले सहयोग को सीधे केंद्रीय स्तर से थोपा जा रहा है।इससे लोगों को लगता है कि छोटी से छोटी राशि, सहायता उनका अधिकार नहीं बल्कि पीएम -सीएम की पैतृक तिजोरी से आ रहा है।
ऐसी सरकार से पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों और स्वाभिमान की रक्षा की अपेक्षा करना बेमानी है। ऐसे में इस चुनाव स्थानीय प्राधिकारी एमएलसी चुनाव में सभी पंचायत प्रतिनिधियों, ग्राम प्रधान और बीडीसी को अपने अधिकारों के लिए सत्ता के खिलाफ वोट करने की जरूरत है।

डॉ ओझा ने कहा कि सत्ता के दबाव और लालच में वोट करने का खामियाजा आज सभी पंचायत प्रतिनिधि भुगत रहे हैं। सभी जानते हैं की सत्ता से टकराए बिना अधिकार नहीं मिलते। इसलिए पंचायत प्रतिनिधियों को वर्तमान पंचायत विरोधी सत्ता से टकराने के लिए, न्याय पंचायत को खत्म करने वाली बीजेपी के खिलाफ वोट करने की जरूरत है। पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा सत्ता के खिलाफ अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए संघर्ष नहीं करने के कारण ही यह स्थिति बनी है कि प्रदेश में 36 पंचायत एमएलसी होने के बावजूद पंचायत अधिकारों के लिए आवाज उठाने, संघर्ष करने की बात तो दूर एक औपचारिक बयान देने वाला एमएलसी भी मौजूद नहीं है। ये पंचायत एमएलसी पंचायत अधिकारों के हनन पर एक शब्द भी बोलना उचित नहीं समझते हैं।

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