क्या आम लोगों को कोविड-19 की वैक्सीन कम कीमत पर मिल पाएगी ?

डॉ चंद्रभूषण अंकुर 

 

कोविड-19 के वैक्सीन की आज दुनिया को सबसे ज्यादा जरूरत है। इस हेतु प्रयास पूरी दुनिया में किए जा रहे हैं। कुछ सकारात्मक खबरें भी आई है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इस महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन विकसित कर ली है और इस वैक्सीन को भारत में बनाने के लिए भारतीय कंपनी ‘ सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ‘ को अपना अधिकृत सहयोगी चुना है।  सिरम इंस्टीट्यूट के पुणे स्थित लैब में 9 जुलाई से इस वैक्सीन का निर्माण प्रारंभ हो गया है। इसके अतिरिक्त दो अन्य भारतीय कंपनियों भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और जाइड्स द्वारा निर्मित वैक्सीन का परीक्षण भी भारत में प्रारंभ हो गया है।

सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अनुसार उनकी वैक्सीन साल के अंत तक भारतीय बाजार में आ जाएगी। उनके हिसाब से वैक्सीन का परीक्षण चतुर्थ स्तर पर है जबकि भारत बायोटेक और जाइडस  की वैक्सीन का परीक्षण अभी दूसरे स्टेज पर हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भारत की सबसे पुरानी वैक्सीन निर्माता कंपनी है और इसकी वैक्सीन काफी कम कीमतों पर मिलती है किंतु ऐसा लगता है की कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण के लिए कंपनी ने अपने पुराने वैक्सीन के मूल्य में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी है। कंपनी ने बीसीजी वैक्सीन का दाम डेढ़ गुना और एमएमआर वैक्सीन का दाम तीन गुना बढ़ा दिया है। कंपनी की रोटा वायरस वैक्सीन की कीमत भी बढ़ गई है। संभवत कंपनी ने कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण पर हो रहे खर्च को पूरा करने के लिए ऐसा कदम उठाया है।

कोविड-19 वैक्सीन बनाने की होड़ में लगी दुनिया मैं भारत निश्चित तौर पर एक जरूरी निर्माण कर्ता होगा क्योंकि वैक्सीन निर्माण , विपणन तथा ट्रायल के लिए भारत और चीन ही दुनिया भर में सबसे मुफीद जगह हैं।

कुछ दिन पहले डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने स्वीकार किया कि कोविड-19 के कारण दुनिया भर में बच्चों के टीकाकरण के काम में ढिलाई हुई है। डीपीटी जो काली खांसी, टेटनस और डिप्थीरिया की वैक्सीन है, वह भी बच्चों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

भारतीय सन्दर्भ में बात करें तो डीपीटी का टीका भी भारत में बड़े पैमाने पर सीरम इंस्टीट्यूट ही बनाती थी। यह टीका बच्चों के लिए अति आवश्यक है किंतु यह टीका भी पिछले दिनों अनुपलब्ध था। इसी तरह जापानी इंसेफेलाइटिस का टीका भारत बायोटेक बनाती है लेकिन इन दिनों भारत बायोटेक के इस टीके की अनुपलब्धता है जबकि जापानी इंसेफलाइटिस के संक्रमण का सीजन आ गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक तरफ दुनिया एक नए वैक्सीन की तलाश में है, वहीं दूसरी तरफ जो वैक्सीन पहले से उपलब्ध हैं, उनकी उपलब्धता भी कम हो गई है। इसका दुष्प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

जो भी कंपनी कोविड-19 की वैक्सीन बना लेगी वह अकूत मुनाफा काम आएगी। इसलिए दुनिया के हर विकसित देश की कोई न कोई कंपनी इस वैक्सीन को बनाने की कोशिश कर रही है ताकि वह अकूत मुनाफा कमा सके। रूस और चीन भी इस वैक्सीन को बनाने की दिशा में काफी आगे है। यह बात और है कि अभी उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना भी वैक्सीन बनाने की दौड़ में काफी आगे चल रही है लेकिन अमेरिका में बनी वैक्सीन निश्चित तौर पर भारत और चीन में बनी वैक्सीन की तुलना में काफी महंगी होगी।

असली प्रश्न तो यह है कि कोविड-19 की वैक्सीन कैसे दुनिया के सभी भागों में कम से कम कीमत पर जनता को उपलब्ध हो ना कि यह कंपनियों के मुनाफे का स्रोत बन जाए।

 

( लेखक दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं )