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नोटबंदी से 220 देशों मे कार्यरत भारतीयों के परिवारों पर आफत


– गोरखपुर मंडल मे रोजाना 4 करोड़ का भुगतान संकट में
– हजारों परिवार तंगहाल
-रोटी चलाना भारी, दवा- दारू के भी लाले
– धन देने वाली कंपनियां भी उठा रही हैं घाटा

विनोद शाही, वरिष्ठ पत्रकार

गोरखपुर। नोटबंदी की मार अब ठीक से असर दिखाने लगी है। बैंको पर कतार कम नहीं हो रही है। ग्रामीण इलाकों मे हाल और बुरा है। वहाँ कैश पहुंच ही नही पा रहा है। धीरे- धीरे गांव के लोग गर्म हो रहे है। आए दिन सड़क जाम के कारण कानून व्यवस्था बिगड़ने का संकट खड़ा होने से प्रशासन अभी से हलकान है।

 इससे अलग एक दूसरा संकट 220 देशों मे काम कर रहे उन लाखों कामगारों के परिवारों पर आ खड़ा हुआ है जो यहां भारत मे रहते हैं। विदेश से कामगार अपने परिवार को खर्च के लिए वेस्टर्न यूनियन, मनीग्राम, एक्सप्रेस मनी, ट्रांसफास्ट जैसी कई वित्तीय कंम्पनियों के जरिए भारत मे धन भेजते हैं। नोटबंदी से पूर्व विदेश से 16 या 18 डिजीट वाले कोड जनरेट होने के कुछ ही घंटो के भीतर उनके परिजन कंपनी के आफिस जाकर पहचान-पत्र के जरिए नकद धन पा जाते थे।मगर अब हालात काफी बदल गये हैं। सिर्फ गोरखपुर मंडल मे ही इन विदेशी कंपनियों के 500 से ज्यादा कार्यालय हैं जहां विदेश से आया धन लोगों को आसानी से मिल जाता था परन्तु अब ऐसा नही है। कंपनियां अब नकद की जगह चेक दे रही हैं।  विडम्बना यह कि इन परिवारो मे 90% के पास बैंक मे खाता ही नही है।

कंपनी के एक अधिकारी के मुताबिक मंडल मे रोजाना लगभग 4 करोड़ रूपए का भुगतान होता था। महीने मे लगभग 14 हजार परिवारों को इसी जरिए से ₹110 करोड़ मिलता रहा है लेकिन अब सबकुछ खटाई मे पड़ गया है। विदेश मे कार्यरत लोगों के परिवार भारी आर्थिक संकट मे हैं।जिनके पास बैंक खाते नही हैं वे चेक नही ले रहे, कंपनी के आफिस पर कैश है नहीं कि भुगतान हो पाए, जो चेक ले ले रहे हैं वे भुगतान के लिए बैंको पर मारे- मारे फिर रहे हैं।किसी को घर खर्च चलाना मुश्किल है तो किसी के परिजन बीमार हैं,कहीं शादी है तो किसी को खाद-बीज खरीदना है मगर इन्तजाम सूझ नही रहा है।कई परिवारों के गहने बंधक हो गये,कुछ ने कर्ज ले लिये तो कईयों ने घर मे पड़ी विदेशी मुद्रा औने-पौने बेच गृहस्थी बचाने की कोशिश कर डाली।
कंपनी सूत्रों के मुताबिक देशभर मे विदेशों से आए धन के भुगतान के लिए लगभग 5 लाख कार्यालय हैं जहां से हर महीने हजारों करोड़ का भुगतान होता है। गोरखपुर मंडल मे हर माह ₹110 करोड़ का भुगतान होता था जो चेक देने के बाद भी  अब सिर्फ 30% रह गया है। पूरे देश मे कमोबेश यही हालत है। नोटबंदी के कारण भारतीय कामगार विदेश से पैसा नही लगा रहे हैं। वह लगातार अपने परिजनो की हालत से चिन्तित हैं तो दूसरी तरफ कंपनियां नये हालात मे हो रहे घाटे से निपटने के लिए कर्मचारियों की छटनी का प्लान बनाने मे जुट गयी हैं। नोटबंदी से देश सोन चिरैया कब बनेगा यह पीएम मोदी ही जानते हैं मगर नोटबंदी की मार से गृहस्थी डावांडोल हो रही है, नौकरी पर खतरा आ चुका है, यह साफ दिख रहा है।

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