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भूजल का दोहन भावी पीढ़ी के साथ अन्यायः आरएमडी

खेती में कम पानी का उपयोग करने वाले किसानों को माडल बनाना होगा- डा. शिराज
हरित क्रांति ने उत्पादन बढ़ाया लेकिन भूमिगत जल का खूब दोहन हुआ-प्रो केएन सिंह
‘ गोरखपुर- गहराता जल संकट ’ पर गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन में संगोष्ठी
गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप और गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने किया था आयोजन
गोरखपुर, 4 मई। भूजल के अनियोजित दोहन के परिणामस्वरूप आने वाला समय काफी भयावहता वाला होगा। अगर आज समाज ने समवेत स्वर में इस दोहन का प्रतिकार नही किया, तो अगले 20 – 25 वर्षों में हमें बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा।
यह बातें नगर विधायक डा़ राधामोहन दास अग्रवाल ने आज गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन और गोरखपुर इनवायरमेंटल एक्शन ग्रूप के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘‘ गोरखपुर-गहराता जल संकट‘‘ विषयक गोष्ठी के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए व्यक्त की। उन्होने कहा यह मात्र पूर्वाचल या पूरे प्रदेश की नही, वरन पूरे देश की लड़ाई है, जिसे नीतिगत आधार पर लड़ना होगा। उन्होने कहा कि स्वार्थ लोलुपता में हम लोग तालाब पोखरों को पाट रहे हैं। अनियोजित कृषि भूजल को प्रभावित कर रही है। उन्होने गोरखपुर में मल्टीस्टोरी भवनों के निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर भूजल की बर्बादी की चर्चा करते हुए इसके लिए जीडीए और बिल्डरों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि वे इस सम्बन्ध में कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी निराशा जाहिर की कि गोरखपुर में तालबों और पोखरों पर कब्जे के खिलाफ निर्णायक आंदोलन नहीं चल सका और हमने दर्जनों तालाबों-पोखरों को खो दिया जिसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरणविद् गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डा. शिराज वजीह ने कहा कि पानी किसी की व्यक्तिगत संपदा नही है। इसके अत्यधिक दोहन का अपराध कुछ लोग करते हैं, दर्द सबको सहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि 67 फीसदी पानी का उपयोग कृषि में होता है जिसे हम काफी कम कर सकते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक किलो गेहूं के उत्पादन में 1600 लीटर, एक किलो धान के उत्पादनमें 3000 हजार लीटर और एक किलो मांस के उत्पादन में 30 हजार लीटर जल का दोहन होता है जबकि एक किलो बाजरे के उत्पादन में सिर्फ 30 लीटर पानी लगता है। डा. वजीह ने कहा कि कम रकबे में बहुस्तरीय खेती कर छोटे किसान काफी कम भूजल का इस्तेमाल कर रहे हैं। गोरखपुर में ऐसे तीन हजार किसानों का काम अनुकरणीय है लेकिन दुर्भाग्य से हम बड़े किसान जो खेती में अत्यधिक कीटनाशक, खाद और पानी का इस्तेमाल कर अधिक उत्पादन करते हैं उन्हें ही प्रगतिशील और माडल किसान मान कर सम्मानित करते हैं जबकि हमारे माडल ये छोटे किसान होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि गोरखपुर में मल्टीस्टोरी बिल्डिगों के निर्माण में लाखों लीटर भूजल की बर्बादी रोकी जा सकती है और इसके लिए तकनीक भी उपलब्ध है लेकिन निर्माण लागत कम करने के लिए बिल्डर इस तकनीक का उपयोग नहीं कर रहे हैं और खामियाजा पूरे शहर की जनता को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि रेन वाटर हावेस्टिंग के प्रयोग की कोई तकनीक गोरखपुर में जानकारी में नहीं है जिससे लोग उसे देख अपना सकें।
गोरखपुर विश्व विद्यालय के भूगोल विभाग के उपाचार्य प्रो0 के.एन. सिंह ने कहा कि हरित क्रांन्ति से देश को अन्न के मामले में आत्म निर्भर बना जरूर लेकिन इसके लिए भूमिगत जल का बड़ा नुकसान किया गया। जहां नहरों की जरूरत थी, वंहा ट्यूबवेल दिया गया, और जहां केवल ट्यूबवेल से काम हो सकता था, वहां नहरों का जाल बिछाया गया। परिणामस्वरूप यह योजना जो कभी ‘‘ गेन ‘‘ थी, आज ‘‘ पेन‘‘ बन गई है। उन्होने कहा कि प्रकृति के विपरीत जाने से जो विकृतियां आ रही हैं, हम उसी के शिकार हो रहे हैं।
समाजसेवी पी.के.लाहिड़ी ने कहा कि लगातार विकराल हो रही इस समस्या को लेकर अब जागृति आ रही है। हम सभी को मिल कर एक एक बूंद पानी को बचाना होगा। आकर््िटेक्ट इं0 सतीश सिंह ने कहा कि बहुमंजिली इमारतों के बेसमेंट में जल रिसाव रोकने की तकनीक का प्रयोग ना कर उस क्षेत्र की डी वाटराइजेशन करने का प्रभाव 100 से 200 मीटर के घेरे में जलस्तर को 10-15 फीट नीचे गिरा देता है। उन्होने कहा कि जीडिए के नक्शों में तों वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान होता है, पर इसका कितना अनुपालन हो रहा है, इससे विभाग को कोई मतलब नही रहता। पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा पानी के निजीकरण और खरीद-फरोख्त के धंधे को तुरन्त बंद करने की मांग उठाते हुए कहा कि देश के करोड़ों गरीबों और किसानों को भूमिगत जल की बर्बादी के लिए दोषी ठहराना शर्मनाक हैं क्योंकि उनकी तो पानी तक पहुंच ही नहीं है। पानी संकट के लिए देश के सबसे ताकतवर लोग सबसे ज्यादा जिम्मेदार है जिन्होंने अपने मुनाफे के लिए जलस्रोतों, नदियों, जंगलों, पहड़ों को बर्बाद कर दिया है। महावीर कंदोई ने कहा कि भूमिगत जल के संरक्षण के लिए सतही जल को बचाना होगा। गोष्ठी का संचालन पत्रकार आत्रेय शुक्ल ने किया। अतिथियों का स्वागत गोजए महामंत्री मनोज श्रीवास्तव गंणेश ने किया, तथा धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोपाल जी ने किया। गोष्ठी में सबसे पहले गोजए के अध्यक्ष रत्नाकर सिंह ने विषय प्रवर्तन करते हुए पानी संकट के प्रति लोगों को सचेत करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत बताई।
इस दौरान गंणेश मिश्रा, वहाब खान, अरूण सिंह, अस्मित श्रीवास्तव, भोला, राजेश सहाय, अनिल गोयल, जितेन्द्र द्विेवेदी, प्रियंका त्रिपाठी, अजित सिंह, नन्हे खान, अमर चन्द श्रीवास्तव अब्दुल जदीद, फरहान, अशोक चैधरी, श्रीप्रकाश सिंह समेत बड़ी संख्या में पत्रकार उपस्थित थे।

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