करंजही गांव के पास राप्ती नदी की धारा को किलोमीटर तक बदला जा रहा है
करंजही, अईमा, नवापार आदि गांवों के ग्रामीणों में गुस्सा, आंदोलन की हो रही है तैयारी
गोरखपुर। गोरखपुर जिले में राप्ती नदी की धारा मोड़ने का प्रोजेक्ट विवाद के घेरे में आ गया है। इस प्रोजेक्ट से न केवल दर्जनों गांवों के राप्ती की नयी बनी धारा में विलीन हो जाने का खतरा है बल्कि सात हजार से अधिक परिवारों के विस्थापित होंगे और उनसे पुस्तैनी जमीन, घर, खेती सब छिन जाएगी। प्रोजेक्ट के लिए सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि भी अधिग्रहीत होगी।
गुपचुप तरीके से किए गए इस बड़े प्रोजेक्ट के दूरगामी पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में सरकार और इस प्रोजेक्ट की कार्यदायी संस्था सिंचाई विभाग कुछ भी बोलने से कतरा रहा है। अफसरों से कोई संतोषजनक जवाब न मिलने से इस प्रोजेक्ट से प्रभावित ग्रामीणों ने इसके विरोध में आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है।
नदियों और जलशयों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे संगठन पूर्वांचल नदी मंच के सदस्यों ने 9 अप्रैल को इस प्रोजेक्ट से प्रभावित हो रहे गांवों का दौरा किया और ग्रामीणों से बातचीत की। मंच ने इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाते हुए ग्रामीणों के आंदोलन का सहयोग करने की घोषणा की है।
राप्ती नदी की धारा मोड़ने के प्रोजेक्ट का तब पता चला जब 26 मार्च को सिंचाई विभाग के अधिकारी भारी-भरकम पोकलैंड मशीनों के साथ करंजही गांव पहुंचे और नदी के एक किनारे से खेतों में झंडी लगाने लगे। सेमरा मानिक चक उंचगांव के पास पोकलैंड मशीन बीच नदी में नदी की धारा को बांधने लगे।
यह देख वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्र हो गए। पूर्व ग्राम प्रधान ओम प्रकाश शुक्ल ने अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि नदी उस पर स्थित गौर बरसाइत तटबंध की सुरक्षा के लिए नदी की धारा मोड़ने का प्रोजेक्ट प्रदेश सरकार ने स्वीकृत किया है। यह सुन ग्रामीण हैरत में पड़ गए क्योंकि इस प्रोजेक्ट के बावत उनसे कभी कोई चर्चा नहीं की गई। प्रोजेक्ट में ग्रामीणों की खेती की जमीनें भी जाएंगी फिर भी उन्हें न तो बताया गया और न कोई जनसुनवाई हुई।
ग्रामीणों ने यह भी कहा कि नदी उस पार का तटबंध तो कभी नदी की बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ और न कभी कटान हुई फिर नदी की धारा मोड़ने का क्या मतलब है ? अधिकारी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके।
पूर्व प्रधान ओमप्रकाश शुक्ल गोरखपुर आकर डीएम से मिले और उन्हें इस बारे में बताया। डीएम ने उन्हें सिंचाई विभाग के अफसरों के पास भेज दिया। सभी अफसर उनसे कहते रहे कि यह प्रोजेक्ट तटबंध को बचाने के लिए किया जा रहा है और इससे बहुत फायदा होगा लेकिन वे श्री शुक्ल के सवालों का जवाब नहीं दे सके। श्री शुक्ल का सवाल था कि जबसे गौर बसाइत तटबंध बना है, वह राप्ती नदी से कभी नहीं कटा। तटबंध का कटान भी नहीं हुआ फिर आखिर यह प्रोजेक्ट किसलिए लाया गया है ? उनका दूसरा सवाल था कि इस प्रोजेक्ट के बारे में ग्रामीणों से काई चर्चा क्यों नहीं की गई जबकि इस प्रोजेक्ट से उनका गांव करंजही, अईमा, नवापार आदि गांवों के लोगों की खेती की जमीन जा रही और नदी की धारा इन गांवों की ओर से मोड़ने से इनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। अधिकारी उनके सवालों का जवाब नहीं दे सके। यहां तक कि उपजिला मजिस्टेट को भी इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी नहीं थी जबकि तहसील के सबसे ब़ड़े राजस्व अधिकारी वही हैं।
श्री शुक्ल ने गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि अधिकारियों ने उनसे कहा कि उनके गांव के पास नदी तट के किनारे बने अंत्येष्टि स्थल से लेकर सेमरा मानिकचक उंचगांव तक करीब दो किलोमीटर तक नदी की धारा को अर्द्धचन्द्रकार मोड़ा जाएगा। इसके लिए अंत्येष्टि स्थल से सेमरा मानिकचक उंचगांव तक दस प्वाइंट बनाकर नदी की धारा को मोड़ दिया जाएगा। श्री शुक्ल ने बताया कि नदी की नयी धारा उनके और दो अन्य गांवों नइमा व नवापार से काफी करीब गुजरेगी।
करंजही गांव गोरखपुर जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर वाराणसी जाने वाले हाइवे से लगभग चार किलोमीटर पूरब राप्ती नदी के मुहाने पर बसा है। बेलीपार चौराहे से पूरब जाने पर 15 किलोमीटर लम्बा बेलवा-भौवापार तटबंध है। यहां से राप्ती नदी के बीच में कई गांव बसे हैं। राप्ती नदी करंजही गांव से सट कर बहती है। पास में ही अईमा, कतरारी, सेनुआपार आदि गांवों की भी बसावट है। राप्ती नदी इन गांवों को तीन तरफ से घेर कर बहती है। ये गांव नदी के पश्चिम तट पर हैं।
नदी के दूसरी तरफ पूर्वी तट पर ढाई किलोमीटर पूरब गौर बरसाइत गांव के पास से होकर जाने वाला गौर बरसाइत तटबंध स्थित है। इसी तटबंध को बचाने के नाम नदी की धारा को मोड़कर करीब दो किलोमीटर नयी नदी बनाये जाने की योजना है।
गोरखपुर न्यूज लाइन ने नौ अप्रैल को करंजही गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से बातचीत की। नदी तट के किनारे सोमनाथ शुक्ल, दुखहरन, जीवधन, नंगा, हरिलाल, रामबचन, नरेश आदि के खेत हैं। अधिकतर खेत दलितों के हैं जिन्हे ये जमीन पट्टे पर मिली है। इस समय गेहूं की फसल लगी हुई है जिसे काटा जा रहा है। जीवधन ने बताया कि उनकी यहां पर 50 डिस्मिल भूमि है। यह भूमि काफी उपजाऊ है। किसान यहां पर गेहूं, धान, अरहर, चना, मसूर के साथ-साथ परवल, गंजी की भी खेती करते हैं। उनका कहना था कि इस प्रोजेक्ट में उनकी पूरी जमीन चली जाएगी और वे भूमिहीन हो जाएंगे। जीवधन की तरह दुखहरन और नंगा की भी यहां पर 50-50 डिस्मिल भूमि है।
रामबचन की यहां पर 1.70 एकड़ भूमि है। रामबचन ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में करंजही गांव का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचेगा जिसकी जमीन बचेगी। जमीन तो जाएगी ही, नदी की बांढ व कटान से उनका गांव भी नहीं बचेगा क्योंकि अब नदी उनके गांव के पास काफी करीब आ जाएगी।
रामबचन इस बात से परेशान हैं कि नदी की धारा को मोड़ने की जरूरत क्यों है ? वह कहते हैं कि नदी तो अपना रास्ता खुद बनाती है। हम उसकी प्रकृति से परिचित हैं और हमें कोई दिक्कत नहीं है। हर वर्ष बाढ़ आती है और हमारे खेत उसमें डूब जाते हैं। घरों तक पानी आ जाता है। कुछ दिन बाद पानी वापस चला आता है। हमें बाढ़ से कोई दिक्कत नहीं है। हम उसके साथ रहने के आदी हैं लेकिन नदी की धारा मोड़ना खतरनाक है। अब अपने हिसाब से नदी की धारा नहीं बना सकते। यदि यह प्रोजेक्ट किया गया है तो इस पूरे इलाके के लिए नया खतरा पैदा हो जाएगा।
नरेश ने कहा कि नदी की धारा मोड़ने से इन गांवों की कई हजार आबादी के साथ ही पशु, पक्षी, पेड़ सभी प्रभावित होंगे और मामूली बाढ़ आते ही नदी की धारा इन गांवों में घुस जाएगी। ये गांव तीन तरफ से नदी से घिरे हैं और एक ही तरफ रास्ता है जा नदी का जलस्तर बढ़ने पर बंद हो जाता है। ऐसे में नदी की धारा को गांव के पास कर देने से लोग विस्थापित होने को मजबूर होंगे।
ग्राम प्रधान ओम प्रकाश शुक्ल ने बताया कि ग्रामीणों के विरोध के कारण जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग ने फिर से सर्वे कराने के नाम पर काम को रोक दिया है लेकिन आशंका है कि कभी भी काम शुरू किया जा सकता है। अभी भी पोकलैंड मशीनें मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट के पीछे प्रभावशाली लोग हैं।
करंजही गांव पहुंचे पूर्वांचल नदी मंच के वरिष्ठ सदस्य एवं आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह ने कहा कि नदी की धारा को मोड़ने का प्रोजेक्ट बेमतलब है और इसे सिर्फ सरकारी धन की लूट के लिए बनाया गया है। इस प्रोजेक्ट के जरिए हजारों लोगों की जिंदगी से खिलवाड किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नदी की धारा मोड़ने के कारण इस इलाके में भू स्थिति बदलेगी और जमीनों पर कब्जे को लेकर संघर्ष भी छिड़ सकता है। उन्होंने आशंका जाहिर की कि इंजीनियरिंग के जरिए बनायी जा रही इस नई धारा को राप्ती नदी स्वीकार नहीं करेगी। इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। नदी के प्राकतिक बहाव से छेड़छाड़ की इजाजत किसी को नहीं है। प्रोजेक्ट से मलाव, बेला, भीटी, कसिहार, करवनिया, देवकली आदि गांव भी प्रभावित होंगे।
पूर्वांचल नदी मंच के सदस्य आलोक शुक्ल ने कहा कि तटबंध बचाने के नाम पर नदी की धारा परिवर्तन का खतरनाक खेल किया जा रहा है। इस साजिश के पीछे के असल खिलाड़ी प्रापर्टी डीलर हैं। गौर बरसाइत गांव के एकदम करीब मिर्जापुर, ढोलबजवा, बेलवार तक जमीनों की प्लाटिंग का धन्धा तेजी से चल रहा है। यह इलाका शहर से नजदीक है। इसलिए इधर जमीन का व्यवसाय तेजी से पांव पसार रहा है। ऐसे में नदी की धारा मुड़ जाने से उन भूमि व्यवसायियों को हजार एकड़ से अधिक जमीन नये व्यवसाय के लिये उपलब्ध हो जायेगी, जिन्हें इससे मतलब ही नहीं है कि उनका मुनाफा कितनी जिंदगियों की कीमत पर आने वाला है। सरकार, प्रापर्टी डीलरों और ठेकेदारों के इरादे कितने शातिराना हैं कि सर्वे हो गया, जमीन अधिगृहित हो गयी और टेंडर भी हो गया पर इससे प्रभावित होने वाले स्थानीय गांव वालों को कुछ पता ही नहीं चला।
पूर्वांचल नदी मंच के संयोजक पूर्व कुलपति प्रो राधे मोहन मिश्र ने गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि करंजही के ग्रामीणों ने उनसे सम्पर्क कर नदी की धारा मोड़ने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इस प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों को फोन किया तो सभी एक दूसरे के मत्थे इसकी जिम्मेदारी डालने लगे। कोई भी इस प्रोजेक्ट के बारे में ठीक से जानकारी देने को तैयार नहीं हैं। सभी का कहना है कि उपर से यह प्रोजेक्ट आया है। उन्हें पता चला कि राप्ती और गोर्रा नदी में चार और स्थानों पर नदी की धारा मोड़ने का प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया है। इन सभी परियोजनाओं के बारे में सरकार, प्रशासन व सिंचाई विभाग की चुप्पी रहस्यमय है। वह इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की मानीटरिंग कमेटी के पास ले जाएंगे।