साहित्य - संस्कृति

‘ जनता के सबसे विश्वसनीय कवि हैं मुक्तिबोध ’

प्रेमचन्द पार्क में ‘ मुक्तिबोध: शताब्दी स्मरण ’ कार्यक्रम का आयोजन
साखी के मुक्तिबोध विशेषांक का लोकार्पण
गोरखपुर, 1 दिसम्बर। प्रेमचन्द साहित्य संस्थान ने आज प्रेमचन्द पार्क में प्रख्यात कवि मुक्तिबोध की जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर ‘ मुक्तिबोध: शताब्दी स्मरण ’ कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर संस्थान की पत्रिका साखी के मुक्तिबोध विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ।
कार्यक्रम में बोलते हुए आलोचक रघुवंश मणि ने कहा कि कला, भाषा, प्रतीक और विम्ब में मुक्तिबोध अद्वितीय कवि हैं और यह उन्हें सभी कवियों से अलग करता है। यही कारण हैं कि उन्हें उनके समय में समझा नहीं गया। मुक्तिबोध की कविता पाठक को भले याद न हो लेकिन उसके मनोमस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव डालती हैं जिससे वह जीवन भर बाहर निकल नहीं पाता। आज की सत्ता मुक्तिबोध के समय से ज्यादा दमनात्मक है। सत्ता दमन के माध्यम से मनुष्य को नियंत्रित तो करती ही है आडियोलाजिकत आपरेटस से बु़िद्धजीवी, कवि और विरोधी विचारों को भी अपने साथ कर लेती है। मुक्तिबोध की कविता ‘ अंधेरे में ’ इसे देखा जा सकता है। मुक्तिबोध का आत्मद्वंद हमारे समय के बुद्धिजीवियों का भी अन्तद्र्वंद है। वह सत्ता के चरित्र की व्याख्या करते हुए बुद्धिजीवियों की भूमिका की बात करते हैं। वह हमें बताते हैं कि बु़िद्धजीवियों को जानना चाहिए कि सत्ता का कैसे विरोध करें।
उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की कविता में जो प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है उसके जवाब के लिए हमें उनके गद्य को जानना चाहिए। कविता ‘ ब्रह्मराक्षस ’ और कहानी ‘ ब्रह्मराक्षस का शिष्य ’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध हमें बताते हैं कि मुक्ति कभी एकांत में नहीं मिलती और न ही किसी एक की होती है बल्कि सभी की होती है।

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बीएचयू में हिन्दी के प्रोफेसर सदानन्द शाही ने कहा कि मुक्तिबोध पिछली शताब्दी में कम समझे गए कवि हैं। यह शताब्दी युवा होती शताब्दी है जो मुक्तिबोध को समझ रही हैं। उनकी जटिल कहे जानी वाली कविता धंुध, कोहरा, अंधेरा को छांटने की कोशिश है। उनकी कविता के बारे में कठिनता का मिथक गढ़ा गया। उनकी कविता को जार्गन के जरिए नहीं समझा जा सकता। उनकी कविता के पास सीधे जाना होगा। उनकी कविता हमें इसलिए परेशान करती है क्योंकि हम यथास्थिति से बाहर निकलना नहीं चाहते लेकिन जब हम उससे बाहर आते हैं तो उनकी कविता हमें मुक्ति का आनंद देती है।

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राजेश मल्ल ने कहा कि मुक्तिबोध पूंजीवाद, साम्राज्यवाद का विश्लेषण तो करते ही हैं उससे कहीं अधिक सब्जेक्टिव फोर्सेज के निरन्तर कमजोर होने, डीक्लास होने की शिनाख्त भी करते हैं। आज की भयावह होती परिस्थितियों हमारी कमजोरियों का परिणाम हैं। मुक्तिबोध इसकी शिनाख्त करने के लिए ही क्रांतिकारी आंदोलन के सवालों व व्यवहारों को केन्द्रीय सवाल बनाते हैं।
वरिष्ठ कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि मुक्तिबोध जनकवि नहीं हैं लेकिन जनता के सबसे विश्वसनीय कवि हैं और वैसा हिन्दी में कोई और नहीं है। उनके समय में नए ढंग का उपनिवेशवाद शुरू हो रहा था जिसकी वह पहचान करते हैं। उनकी कविता में अविश्वास बहुत है क्योंकि वह विश्वास की ठोस जमीन का अनुसंधान कर रहे थे। वह समूचे अर्थों में मनुष्यता की वेदना के कवि हैं। वह हिंदी कविता का विवेक, मस्तिष्क और मस्तक है।

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इसके पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर व आलोचक डा. अनिल कुमार राय ने कहा कि मुक्तिबोध को याद करना नई बनती हुई दुनिया में जनता के नायक को ले जाना है। मुक्तिबोध का स्मरण ज्ञान व संवेदना की वह भूमिका है जो मनुष्यता, जनता के पक्ष में है। मुक्तिबोध जिन संकटों, प्रश्नों को लेकर चिंता प्रकट की, वह और भयावह रूप में हमारे सामने है। राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर के शिक्षक अनिल कुमार सिंह ने कहा कि मुक्तिबोध ने जिस अंधेरे की शिनाख्त की वह आज ज्यादा सघन, हिंसक और क्रूर रूप में हमारे सामने है। अंधेरे में का अंधेरा आज रात का ही दिन का भी सच हो चुका है। इस परिस्थिति का सामना भी मुक्तिबोध की तरह अपना पक्ष तय कर ही हो सकता है।
कार्यक्रम में कवि धर्मेन्द्र श्रीवास्तव, शिक्षक अंकुर सच्चर, शोध छात्र गौरव पांडेय, आनन्द कुमार शुक्ल, प्रोद्योत सिंह और ममता ने मुक्तिबोध की कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का समापन संदीप राय की कविता से हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रेमचंद साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह