-ऊंचे ओहदों पर हैं अलीम आलमी की आठ बेटियां
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 17 जनवरी । अभी हाल में आयी आमिर खान की फिल्म दंगल का एक डायलॉग सभी की जबां पर खूब चढ़ा हुआ हैं “म्हारी छोरिया छोरों से कम हैं के”। यह डायलॉग शहर के रहमतनगर मोहल्ले में रहने वाले रेलवे के रिटायर्ड अलीम आलमी व रिटायर्ड अध्यापिका नूरुस्सबा खान की आठ बेटियों पर सटीक बैठता हैं। उनकी सभी बेटियां परास्नातक तो हैं ही साथ ऊंचे ओहदों पर मां-बाप का नाम रोशन कर रही हैं। अलीम आलमी और नूरुस्सबा को कोई बेटा नहीं हैं लेकिन आठों बेटियां बेटों से कम बिल्कुल भी नहीं हैं। आठों बेटियां अपने मां-बाप पर जान छिड़कती हैं।
आज कल के जमाने में तीन-चार लड़के-लड़कियों की परवरिश करनी मुश्किल होती हैं।वहीं आठ लड़कियों की परवरिश, तालीम और संस्कार देना कोई मामूली काम नहीं हैं।

आलमी दंपत्ति की बड़ी लड़की रखशां अालमी इमामबाड़ा गर्ल्स इंटर कालेज में वरिष्ठ अध्यापिका हैं तो दूसरे पुत्री निशात अलमी जाने माले कॉर्मल स्कूल सिविल लाइन में वरिष्ठ अध्यापिका के पद पर हैं । तीसरी पुत्री सुआद अंदलिब सहारा इंडिया परिवार में सीनियर मैनेजर व चौथी रेशमा आलमी मैनेजर हैं । पांचवीं पुत्री हिजाब अालमी गोंडा जिला में सरकारी अध्यापिका हैं। छठी पुत्री जुफिशां आलमी इलाहीबाग स्थित महफिल मैरेज हाउस की मालकिन हैं तो उनसे छोटी असफिया अालमी दिल्ली में फिजियो थेरेपिस्ट और सबसे छोटी संदल अालमी अहमदाबाद में इंजीनियर हैं।

रहमतनगर की ये बेटियां पूरे समाज पर रहमत बनी हुई हैं। खास कर मुस्लिम समाज तालीम में काफी पीछे हैं वहीं इन लड़कियों का कारनामा समाज को फख्र महसूस करने का मौका इनायत करा रहा हैं और एक नयी सोच का संचार भी पैदा कर रहा हैं। आलमी दंपत्ति बेटियों के प्रति संकुचित सोच रखने वालों के लिए एक मिसाल हैं। सोचने का मकाम यह हैं कि अलीम आलमी रेलवे में जॉब करते थे और नूरुस्सबा खान अध्यापिका थी। बेटियों की परवरिश वर्तमान परिवेश और बेहतर तरीके से करना आसान काम न था। श्री आलमी ने बताया कि उनकी बेटियों ने इस बात का एहसास ही नहीं करने दिया कि उनके पास एक बेटा भी होता। उन्होंने कहा कि हर लड़की के जन्म पर हमनें खुदा का शुक्र अदा किया और एक जिम्मेदारी का एहसास करते हुए अपने आप को गौरवान्वित महसूस किया। बेटियों के बारे में अपने एहसास को बयां करते हुए दंपत्ति बेहद भावुक हो जाता हैं और कहते हैं कि बेटियां खुदा की रहमत हैं।
श्रीमती नूरुस्सबा खान कहती हैं कि बेटा और बेटियों में कोई फर्क नहीं होता।बशर्तें कि इन्हीं बेहतर तालीम और अच्छे संस्कार दिए जायें। आलमी दंपत्ति वर्तमान में अपने पास-पड़ोस की बेटियों को पढ़ाने का काम करते हैं। आज जरुरत इस बात की हैं कि समाज में बेटियों के प्रति जो सोच है उसे बदला जाये।समाज में फैली दहेज की समस्या से डरने की नहीं ब्लकि अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर आत्मनिर्भर बनाने की जरुरत हैं, जिससे कि वह स्वयं आत्मनिर्भर बन पैरों पर खड़ी हो सकें ताकि दहेज उनके करीब तक न आएं।