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राजस्व गांव का दर्जा मिलने के बाद वनटांगियां गांवों में विकास की राह खुली

एक जनवरी को सीएम देंगे महराजगंज जिले के 18 वन ग्रामों को राजस्व गांव का प्रमाण पत्र
वन ग्राम चंदन चाफी बरहवां में आयोजित होगा कार्यक्रम
आंगनबाड़ी केन्द्र का शिलान्यास भी होगा
वन ग्रामों में 18 प्राइमरी स्कूल, 7 जूनियर हाईस्कूल, 5849 आवास देने की योजना

गोरखपुर /महराजगंज। महराजगंज जिले के 18 वन ग्रामों में रहने वाले हजारों वनटांगियों की बहुप्रतीक्षित मांग नए वर्ष के पहले दिन पूरी होने जा रही है। मुख्यमंत्री वन ग्राम चंदन चाफी बरहवां में दोपहर 12 बजे से आयोजित एक घंटे के कार्यक्रम में सभी 18 वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का प्रमाण पत्र तो देंगे ही कई विकास योजनाओं से वनटांगियों को लाभान्वित करेंगे। इन विकास योजनाओं में आंगनबाड़ी सेंटर, स्कूल, आवास, बिजली, शौचालय, सड़क, पेंशन आदि प्रमुख हैं।

मुख्यमंत्री के आने के पहले इस वन ग्राम को जाने वाले सभी सड़क मार्गों की मरम्मत हो रही है। मुख्यमंत्री 18 वन ग्रामों को राजस्व गांव का प्रमाण पत्र देने के साथ ही इस गांव में आंगनबाड़ी सेंटर का शिलान्यास करेंगे। सभी 18 वन ग्रामों में आंगनबाड़ी केन्द्र की स्थापना का निर्णय पहले ही लिया जा चुका है। सभी गांवों मंे प्राइमरी स्कूल के अलावा 7 जूनियर हाईस्कूल की स्थापना का प्रस्ताव है। इसके अलावा 5849 लोगों को प्रधानमंत्री आवास व शौचालय देने की भी योजना है।
वन ग्रामों में राशन की छह दुकानें खोली गई हैं। जिले के सभी वन ग्रामों के पात्र विधवा व वृद्धा को पेंशन स्वीकृत किया गया है। नवयुवक मंगल दल का गठन किया गया है। वन गांवों में सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं।

वन ग्राम में सफाई
वन ग्राम जाने वाले रस्ते की सफाई की जा रही है

वन ग्राम आजादी के बाद से इन विकास योजनाओं की राह देख रहे थे। उनके गांव राजस्व गांव नहीं थे, इसलिए उन्हें कोई भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था।

संघर्ष का लम्बा सफर

वनटांगियों को बतौर नागरिक हर अधिकार काफी देर से और संघर्ष के बाद मिले। उन्हें लोकसभा व विधानसभा में वोट देने का अधिकार 1995 में मिला।
दो वर्ष पहले वर्ष 2015 में 10 जून को 23 वन ग्रामों में रहने वाले सैकड़ों वनटांगियों ने कमिश्नर कार्यालय पर घेरा डालो-डेरा डालो आंदोलन किया। आंदोलन की एक प्रमुख मांग थी कि पंचायत चुनाव में वन ग्रामों को भी शामिल किया जाए और उन्हें वोट देने का अधिकार मिले। दो दिन तक कमिश्नर कार्यालय घेरने के बाद प्रशासन ने उनकी मांग मान ली।
आजादी के 68 वर्ष बाद पहली बार गोरखपुर-महराजगंज के 23 वन ग्रामों में रहने वाले 23 हजार वनटांगियों ने पंचायत चुनाव में भागीदारी की। पहली बार वन ग्रामों को पंचायत व्यवस्था से जोड़ा गया और उन्हें ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य व जिला पंचाायत सदस्य के लिए वोट डालने का अधिकार मिला।
317 टांगिया परिवार वाले बरहवां गांव को पास के एक दूसरे गांव चंदन चाफी के साथ जोड़ कर पंचायत बनाया गया। इस वन ग्राम के 65 वर्षीय दलित रामजतन चुनाव लडे और ग्राम प्रधान चुने गए। इसी गांव की दलित अनीता क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनी गईं।
ग्राम प्रधान चुने जाने के बाद ररमजतन ने अपने गांव के विकास की योजना बनाई। वह गांव की सड़क को खडंजा कराना चाहते हैं। स्कूल और आंगनबाड़ी सेंटर बनवाना चाहते थे। गांव में बिजली लाने के साथ-साथ गांव के सभी विकलांगों, बूढ़ी महिलाओं, विधवाओं को पेंशन और इंदिरा आवास दिलाना चाहते थे। जंगली सुअरों, नीलगायों और शहरों से जंगलों में छोड़ दिए गए पशुओ से फसल को बचाने का भी उपाय करना चाहते थे लेकिन ढाई वर्ष बाद भी वह कुछ नहीं कर पाए क्योंकि प्रशासन ने कहा कि जब तक उनका गांव राजस्व गांव नहीं होगा वे कोई विकास कार्य नहीं करा सकते।

इसी जंगल से गुजरता है वन ग्रामों का रास्ता
इसी जंगल से गुजरता है वन ग्रामों का रास्ता

एक वर्ष पहले 2016 की गर्मियों में वनटांगियों ने एक बार फिर कमिश्नर कार्यालय पर अपने वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाने की मांग को लेकर तीन दिन तक डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन शुरू किया। उन्हें आश्वासन मिला लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
यूपी में भाजपा की नई सरकार ने वनटांगियों को उनकी सबसे प्रमुख मांग-राजस्व गांव का दर्जा पूरा कर दिया है। इससे उनके गांवों में विकास योजनाओं की राह आसान हो गई।

वनटांगियों ने इसके लिए लम्बा संघर्ष किया। उनकी प्रमुख मांग थी-रिहाईश और खेती की जमीन का मालिकाना हक दिया जाय, गांवों को पंचायत से जोड़ा जाय, वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा देकर स्कूल, अस्पताल, सड़क बिजली, पानी, आवास, आंगनबाडी आदि योजनाओं लागू की जाएं और लघु वन उपज पर अधिकार दिया जाए।
बसपा सरकार में उन्हें जमीन का मालिकाना हक मिला, सपा सरकार में वह पंचायत व्यवस्था से जुड़े और अब भाजपा सरकार में राजस्व गांव की मांग पूरी हुई। लघु वन उपज पर अधिकार के लिए उन्हें अभी संघर्ष करना होगा।

ग्राम प्रधान रामजतन
ग्राम प्रधान रामजतन

वनटांगियों का इतिहास

रामजतन का गांव बरहवां गोरखपुर से 45 किलोमीटर दूर परतावल-पनियरा मार्ग पर जंगल के बीच है। यह जंगल साखू और सागवान के हैं जिन्हें रामजतन और उनके जैसे हजारों वनटांगियों की तीन पीढ़ी ने अपने खून-पसीने से तैयार किया। अंग्रेजी राज में 100 वर्ष पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में रेल लाइन बिछाने और दूसरे सरकारी विभागों के लिए इमारती लकड़ी मुहैया कराने के लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए। वन विभाग के रिकार्ड में दर्ज है कि हर वर्ष 300 एकड़ वन साफ किए गए। उम्मीद की गई कि गिराए गए पेड़ों की खूंट से फिर से जंगल तैयार हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब अंग्रेजों ने 1920 में वर्मा ( म्यांमार ) में आदिवासियों द्वारा पहाड़ों पर जंगल तैयार करने के साथ-साथ खाली स्थानों पर खेती करने की पद्धति ‘ टोंगिया ’ आजमाया। इसके लिए बड़ी संख्या में आस-पास के इलाकों से गरीबों को लाया गया। जमींदारों के जुल्म की चक्की में पिस रहे दलित और अति पिछड़े वर्ग के ये मजदूर राहत पाने के लिए आए लेकिन यहां आकर वह शोषण के एक नए जाल में फंस गए। अंग्रेजों ने उन्हें गुलामों की तरह रखा। यही मजदूर वनटांगिया कहलाए। रामजतन के दादा झकरी भी उन हजारों गरीब मजदूरों में से एक थे। दोनांे जिलांे में करीब 55 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र का अधिकांश भाग इन टांगिया किसानों की देन है।
साखू और सागवान के पेड़ तैयार करने के लिए उन्हें कोई मेहनताना नहीं दिया जाता था। दो क्यारियों के बीच की जमीन अनाज उगाने के लिए दी जाती थी। पौधे जब बड़े हो जाते तो उन्हें दूसरे स्थानों पर भेज दिया जाता। आजादी के बाद वन विभाग 1980 तक वनटांगियों से इसी तरह काम लेता रहा। वन निगम बनने के बाद वनटांगियों से काम लेना बंद कर दिया गया और उन्हें जंगल से बेदखल करने की कोशिश हुई लेकिन वे अपनी जमीन छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने संगठन बनाया और संघर्ष करते रहे। आखिरकार वर्ष 2006 में वन अधिकार कानून ( अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन अधिकारों की मान्यता कानून 2006 ) बनने के बाद दोनों जिलों के 4745 टांगिया परिवारों को उनकी ख्ेाती और आवास की 1842.199 हेक्टेयर जमीन पर मालिकाना हक दे दिया गया।

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