चंदौली। चंदौली जिले के छितो की रहने वाली शांति देवी के पास चार बिस्वां ( 0.0704 हेक्टेयर) भूमि में पोखरा था जिसमें वह मछली पालन करती थीं। इससे उनकी और उनके तीन बेटों की जिंदगी किसी तरह चल जाती थी लेकिन यह पोखरा दो माह पहले सरकार द्वारा अधिग्रहीत कर ली गई। उनके पोखरे से इस्र्टन डेडीकेटेड रेल फ्रेट कारीडोर की विद्युतीकृत डबल रेल लाइन गुजरेगी ताकि देश में रेलवे की माल ढुलाई की क्षमता बढ़ायी जा सके। शांति देवी से कहा गया कि उनकी जमीन के बदले बाजार भाव से चार गुना अधिक मुआवजा मिलेगा, घर के नौजवान सदस्य को नौकरी मिलेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्हें चंदौली के अपर जिलाधिकारी द्वारा 28 जुलाई 2012 को भूमि अधिग्रहण के लिए जो नोटिस दी गई थी उसमें उन्हें उनकी जमीन के बदले 3.33 लाख रूपए मुआवजा देने की बात कही गई थी लेकिन उन्हें 2.09 लाख रूपए का ही चेक मिला।
अब उनके सामने समस्या है कि आजीविका के लिए क्या करें ? अब वह पूरी तरह भूमिहीन हो गई हैं। वह कहती हैं कि अधिग्रहण के बाद उनका पोखरा पाट दिया गया है। यह पोखरा वर्षों से उनके जीवन यापन का स्रोत था। अब कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे। शांति देवी को अब आशा की किरण उनकी ही तरह एक दर्जन से अधिक गांवों के गरीब और छोटे किसानों द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध में शुरू किए गए आंदोलन से है। भाकपा माले के किसान संगठन किसान सभा और उसके प्रयास से गठित प्रभावित किसानों के संगठन किसान संघर्ष परिषद द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन का केन्द्र छितो गांव है। रेलवे क्रासिंग पार फ्रेट कारीडोर के लिए लिए बन रहे फांउडेशन के पास ही किसानों ने कैम्प डालकर 25 फरवरी से अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। शांति देवी किसानों के साथ एकजुटता और संघर्ष का जज्बा लिए रोज यहां धरने पर आती है। शांति देवी की तरह इस रेल फ्रेट कारीडोर के लिए अपना घर, खलिहान, खेत सब कुछ गंवा देने वाले सैकड़ों किसान संघर्ष का बिगुल फूंक रहे हैं।
डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर : किसानों की जमीन की कीमत पर माल भाड़ा यातायात बढ़ाने की योजना
इस्र्टन डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर वर्ष 2005 में तत्कालीन यूपीए-1 सरकार द्वारा देश में राष्टीय और अन्तराष्टीय व्यापार को बढ़ाने के लिए रेलवे की माल भाड़ा यातायात क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर परियोजना का हिस्सा है। यह परियोजना दो हिस्सों में बंटी है-इस्र्टन डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर और वेस्टर्न डेडीकेटेड रेल फ्रेट कारीडोर। पूर्वी डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर ( ईडीएफसी )
1856 किमी लम्बी है तो पश्चिम बंगाल के दानाकुनी से शुरू होकर झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा होते हुए पंजाब के लुधियाना में समाप्त होगी।
पश्चिमी डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर उत्तर प्रदेश के दादरी से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात होते हुए मुम्बई के जवाहर लाल नेहरू पोर्ट तक जाएगी जो 1506 किमी लम्बी होगी। दोनों कारीडोर को बनाने का उद्ेश्य देश में आधुनिक तकनीक वाली विश्वस्तरीय रेल इंफ्रास्टक्चर बनाना है ताकि माल भाड़ा यातायात में रेलवे का शेयर बढ़े, मालगाडि़यो की स्पीड व ढुलाई क्षमता बढ़े। दावा किया गया है कि दोनों कारीडोर के बन जाने से माल गाडि़यों की लम्बाई 700 से बढ़कर 1500 मीटर हो जाएगा और उनकी लदान क्षमता 4 हजार टन से बढ़कर 15 हजार टन हो जाएगी। मालगाडिय़ों की स्पीड भी 75 किमी प्रति घंटा से बढ़कर 100 किमी प्रति घंटे हो जाएगी। इन मालगाडि़यांे पर गार्ड की जरूरत नहीं होगी।
इस परियोजना की लागत शुरू में 28,181 हजार करोड़ आंकी गई थी। अक्तूबर 2007 में यह लागत 37 हजार करोड़ और वर्ष 2009 में 45 हजार करोड़ हो गया। अब कहा जा रहा है कि जब वर्ष 2019 में यह परियोजना सम्पन्न होगी, इस पर 81 हजार करोड़ रूपए खर्च हो चुके होंगे। इस परियोजना को विश्व बैंक और जापान अन्तराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी ( जायका ) से कर्ज लिया गया है।
पूर्वी डीएफसी को भी चार खंडों में बांटा गया है। भाउपुर-खुर्जा 342 किमी, भाउपुर मुगलसराय 402, दादरी-खुर्जा-लुधियाना 450 किमी और मुगलसराय-सोननगर 123 किमी। इसके लिए कुल 4807 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है और दावा किया गया है कि इसमें से 75 फीसदी भूमि का अधिग्रहण हो चुका है और इसके लिए 2742 करोड़ मुआवजा बांटा जा चुका है। इसी तरह पश्चिमी डीएफसी के लिए 5860 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होगा जिसमें से 85 फीसदी भूमि का अधिग्रहण हो चुका है।
पूर्वी डीएफसी में घनी आबादी वाले शहरों-मुगलसराय, इलाहाबाद, कानपुर, इटावा, फिरोजाबाद, टुंडला, हाथरस, हापुड़, मेरठ, सहारनपुर आदि स्थानों पर बाईपास और मुगलसराय, गंजख्वाजा सहित कई जगहों पर जंक्शन भी बनेंगं। इस कारण इन स्थानों पर अधिक भूमि अधिग्रहण होगा और इससे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या भी अधिक होगी।
डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर के बारे में कुछ तथ्य
- -अप्रैल 2005 में इस परियोजना की नींव पड़ी
-राइट्स को इस परियोजना के अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया
-मई 2005 में अवसंरचना समिति ने योजना आयोग के सदस्य अनवरूल हुड्डा की अगुवाई में टास्क फोर्स का गठन किया
-जनवरी 2006 में राइट्स ने व्यवहार्यता अध्ययन रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंपा
-कैबिनेट ने टास्क फोर्स की रिपोर्ट को स्वीकार किया और इसके लिए विशेष सार्वजनिक संस्था बनाने का निदेर्श दिया
-अक्तूबर 2006 में डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर कार्पोरेशन आफ इंडिया का गठन कंपनी अधिनियम के तहत किया गया
-28181 करोड़ की परियोजना लागत अनुमोदित और इस पर काम शुरू
किसानों को खबर नहीं, भूमि छीनने की योजना हो गई तैयार
अप्रैल 2005 में जब भारत के प्रधानमंत्री और जापान के प्रधानमंत्री के बीच बातचीत में डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर बनाने का फैसला हुआ तो चंदौली के छितो, बरठी, लीलापुर, रमउपुर, छिनौती आदि गांवों के लोगों को पता भी नहीं था कि यह कारीडोर उनकी जमीन को निगल जाएगा और उनका घर, खेत, आजीविका हमेशा के लिए छिन जाएगी। यहां के लोगों को 2009 में पता चला। समाचार पत्रों में इस सम्बन्ध में खबरें छपने लगी। इन खबरों में यह भी था कि कारीडोर से प्रभावित लोगों के परिवारों के सदस्यों को नौकरी दी जाएगी। करीब 15 हजार लोगों को नौकरी मिलेगी। प्रशासननिक अधिकारी किसानों से मिले और कहा कि आप जमीन दीजिए। हम आपके घर के लोगों को नौकरी देंगे और जमीन का मुआवजा सर्किल रेट या बाजार रेट जो भी अधिक होगा उससे ज्यादा देंगे। फिर भी लोगों में विश्वास नहीं था कि सरकार जो कह रही है, उसे पूरा करेगी। लोगों को कारीडोर के बारे में सही जानकारी देने वाला भी कोई नहीं था।
इस कारीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण की सूचना 12 जुलाई 2011 को प्रकाशित की गई। इसके बाद भूमि अधिग्रहण से प्रभावित लोगों को इसके बारे में जानकारी देने और अपनी आपत्ति प्रस्तुत करने के लिए दो अखबारों में 3 अगस्त 2011 को अधिसूचना प्रकाशित की गई। लोगों से एक महीने में अपनी बात कहने का मौका दिया गया। एक महीने में 566 आक्षेप प्रस्तुत किए गए।
अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व, चंदौली की अदालत में 24 सितम्बर, 26 सितम्बर, 29 सितम्बर और 30 सितम्बर तथा 13, 14 और 31 अक्तूबर को सुनवाई हुई। सुनवाई पूरी होने के बाद अपर जिलाधिकारी ने 8 नवम्बर 2011 को अपने आदेश में लिखा–‘ आक्षेपकर्ताओं के आक्षेपों को व्यक्तिगत और उनकी तरफ से उपस्थित अधिवक्ताओं को सुना गया। आक्षेपकर्तागण द्वारा मुख्य रूप से अर्जित की जाने वाली भूमि का प्रतिकर वर्तमान बाजार दर, पुनर्वास एवं पुनसर््थापना राशि तथा भू-अर्जन से प्रभावित परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार रेलवे में नौकरी दिए जाने की मांग की गई है। इस सम्बन्ध में अध्याप्ति निकाय की ओर से लिखित और मौखिक रूप से बताया गया कि संशोधित रेल अधिनियम 2008 के प्रावधान अनुसार अर्जित भूमि का प्रतिकर बाजार दर के अनुसार एवं भारत सरकार के पुनसर््थापन एवं पुनर्वास नीति 2007 के अनुसार सहायता राशि दी जाएगी। इसके अतिरिक्त यह भी बताया गया कि भारत रेल मंत्रालय द्वारा भू-अर्जन से प्रभावित परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का शासनादेश जारी कर दिया गया है। शासनादेश की एक प्रति भी उपलब्ध करायी गई है। उभय पक्षों को सुनने और पत्रावली के अवलोकनोपरान्त मै इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि अध्याप्ति निकाय के कथनानुसार भूमि का प्रतिकर बाजार या सर्किल रेट जो भी अधिक हो की दर से दिया जाए। मकान आदि का मुआवजा पीब्ल्यूडी के निर्धारित दर पर दिया जाए तथा रेल मंत्रालय व रेल बोर्ड द्वारा जारी शासनादेश संख्या ई ( एनजी )
11 / 2010 / आरसी-5 /1 दिनांक 16-7-2010 की व्यवस्था के अनुसार रेलवे विभाग में प्रभावित परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए तथा अन्य लाभ जो अनुमन्य हो प्रभावित परिवार को दिया जाए। ’
अपर जिलाधिकारी के आदेश से मुकरा प्रशासन, न नौकरी मिली न बाजार दर से मुआवजा
लेकिन अब प्रशासन और रेलवे दोनों ही अपने वादे और अपर जिलाधिकारी के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। यही नहीं वर्तमान में जिले में तैनात अधिकारी 8 नवम्बर 2011 को आदेश देने वाले अपर जिलाधिकारी को असंतुलित दिमाग वाला बता रहे हैं। भूमि अधिग्रहण से प्रभावित लोग रेलवे में नौकरी के लिए वाराणसी स्थित डीआरएम कार्यालय पर गए और नौकरी की मांग की तो डिविजनल मैनेजर डीआरम ने लिखित रूप से कहा गया कि ईस्ट सेन्टल रेलवे का इससे कोई लेना देना नहीं है। डीएफसीसीआईएल ( डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर कार्पोरेशन आफ इंडिया ) स्वतंत्र निकाय है। प्रभावित किसान उन्हीं से सम्पर्क करें।
सरकार और प्रशासन प्रभावित किसानों के सदस्यों को नौकरी देने के वादे से तो मुकरी ही सर्किल रेट या बाजार रेट से अधिक मुआवजा देने से भी पलट गई। मुआवजा तय करने में भी भारी भेदभाव व अनियमितता बरती गई है। फुटिया निवासी शिवपूजन और उनके भतीजे चंदन की जो भूमि अधिग्रहीत की गई है उसका मुआवजा क्रमशः 1.20 लाख व 1.40 लाख दिया गया है। इस भूमि के अलावा अब दोनों के पास कोई भूमि नहीं है। शिवपूजन ने अब चाय की दुकान खोल ली है क्योंकि अब खेत नहीं रहने से बाजार से अनाज खरीदना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि यदि बाजार दर से मुआवजा मिलता तो कम से कम उन्हें 30 लाख रूपए मिलने चाहिए थे। उनके घर में चार लड़कियों व दो लड़कों सहित नौ लोग है। जमीन से पूरे परिवार के लिए अनाज का इंतजाम हो जाता था।
यह कहानी रामप्रीत राम, जगत नरायन, लल्लन यादव, सोमारू यादव मुरारी सहित सैकड़ों लोगों की है। मुरारी की 0.35 एकड़ भूमि अधिग्रहीत कर ली गई है। उनका घर भी अधिग्रहण के दायरे में आ गया है। लल्लन यादव का पुश्तैनी घर, जोत वाली जमीन छिन गई है। जगत नरायन के परिवार के पांच घर, मवेशियों के रहने की जगह अधिग्रहीत कर ली गई है। इसके बदले उन्हें सिर्फ 5.40 लाख रूपए मुआवजा मिला है। रमउपुर में 25 आवासीय भूमि भी अधिग्रहीत हुई है। किसानों का घर, खेत, कुंआ, नाद, खलिहान सब कुछ उजड़ रहा है लेकिन उनके पुनर्वास की कोई बात नहीं हो रही है और चेक पकड़ा कर अपने खेत, घर से जाने को कहा जा रहा है।
किसानों का कहना है कि अवार्ड में भारी अनियमितता है। प्रशासन ने कागज पर अधिग्रहीत भूमि का जो रकबा दर्ज किया है और उसका मुआवजा दिया है उससे कहीं अधिक भूमि कब्जा कर ली है। एक ही रकबे की आस-पास की जमीन के अलग-अलग रेट तय किए हैं। दलालों की चांदी है। वही सब कुछ तय करा रहे हैं।
रामपुर उर्फ अकबरपुर के राजकिशोर सोनकर ने बताया कि उनके यहां की पूरी सोनकर बस्ती अधिग्रहण से उजाड़ हो रही है। बस्ती से 25 से अधिक परिवार कई पीढ़ी से रह रहे हैं। पूरी बस्ती नगर क्षेत्र में है, इसके बावजूद मुआवजा कृषि दर से तय किया गया है। चंदौली टाउनएरिया की परिधि में आने वाले और ग्रामीण इलाके की पुरानी वस्तियों व आबादी की भूमि का मुआवजा भी कृषि योग्य भूमि की दर से तय हुआ जबकि उनका मुआवजा टाउन एरिया और आबादी की जमीन की दर से तय होना चाहिए।
बरठी कमरौर में 18 दलित परिवरों की भूमि अधिग्रहीत कर ली गई है। यह परिवार कई पीढि़यों से यहां बसे हैं। राजस्व कर्मियों की गड़बड़ी की वजह से इन परिवारों का भूस्वामित्व नहीं हुआ, इसलिए इनको मुआवजा भी नहीं दिया गया है।
इस तरह की गड़बडि़यां आम हैं और इसकी सुनवाई नहीं हो रही है। वादे के मुताबिक मुआवजा व रेलवे में नौकरी नहीं देने, मुआवजे में गड़बड़ी, पुनर्वास की व्यवस्था नहीं किए जाने से किसानों का गुस्सा बढ़ता गया और 25 फरवरी को उन्होंने कारीडोर के लिए हो रहे कार्य को कई स्थानों पर रोक दिया। सबसे पहले छितो में कार्य रोका गया। इसी तरह मुगलसराय से बरठी तक कई स्थानों पर कार्य रोका गया। कार्य रोके जाने पर चैकी इंचार्ज ने एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी। एसडीएम भी आए लेकिन किसानों ने उनसे स्पष्ट कह दिया कि एडीएम की अदालत में जो समझौता हुआ है, उसको लागू किया जाए। जब तक उसके अनुसार प्रशासन मुआवजा, नौकरी व पुनर्वास नहीं करता तब तक काम नहीं होने दिया जाएगा।
भारतीय किसान महासभा के जिला सचिव शशिकांत सिंह ने बताया कि मुगलसराय से बरठी तक 25 गांवों के सैकड़ों परिवार भूमि अधिग्रहण से प्रभावित हो रहे। करीब 15 हजार की आबादी इससे प्रभावित है और अधिकतर लोग भूमि और आवास से विहीन हो रहे हैं।
डीएफसीसीआईएल ने कहा है कि वह कारीडोर के निर्माण से प्रभावित किसानों को देश का सबसे अच्छा प्रतिकर और पुनर्वास पैकेज दे रही है। इस दावे की हकीकत इस रिपोर्ट से पूरी तरह वेपर्दा हो रही है। डीएफसीसीआईएल ने सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पर अपने रिपोर्ट में बहुत कम लोगों को विस्थापित होने का उल्लेख किया है जबकि सच यह है कि बड़ी संख्या में लोग बेघर हो रहे हैं।
आंदोलन तेज, बढ़ता जा रहा कारवां
भारतीय किसान सभा द्वारा किसानों को संगठित करने के बाद आंदोलन में तेजी आयी है। महासभा के प्रयास से 30 जनवरी को भूमि बचाओ सम्मेलन का आयोजन किया और किसान संघर्ष परिषद चंदौली का गठन हुआ। परिषद में 51 सदस्यीय कमेटी बनी है जो आंदोलन का संचालन कर रही है। इसमें फुटिया के किस्मत यादव, रामपुर उर्फ करनपुर के श्यामवलीराम, फुटिया के त्रिभुवन मौर्य, छितो की शांति देवी आदि हैं। किसान महासभा के जिला सचिव शशिकांत सिंह ने बताया कि परिषद ने अधिग्रहण से प्रभावित 25 गांवों के किसानों को एकजुट किया है और 25 फरवरी से छितो में अनिश्चतकालीन धरना चल रहा है। धरना शुरू करने के पहले 6-18 फरवरी तक अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले गांवों में किसान जनजागरण यात्रा निकाली गई थी।
उन्होंने बताया कि इस आंदालन से मिर्जापुर और पड़ोसी राज्य बिहार के भभुआ के किसान भी जुड़ रहे हैं। तीन अप्रैल को हुई किसान जन सभा में इन स्थानों से भी किसान और किसान संगठन आए। किसान सभा को अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजराम सिंह, ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने सम्बोधित किया। हमारी स्पष्ट मांग है कि अपर जिलाधिकारी द्वारा सभी पक्षांे की सुनवाई के बाद जो निर्णय दिया गया था उसे लागू किया जाए।
(यह रिपोर्ट समकालीन जनमत के अप्रैल 2016 अंक में प्रकाशित हुई है)