डॉ आर एन सिंह
खबर है कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री का जुलाई में गोरखपुर आगमन होगा। ख़बरों के अनुसार इस मौके पर वह “एम्स ” का शिलान्यास करेंगे और गोरखपुर के वर्षों से बंद पड़े फ़र्टिलाइज़र को चलाने की घोषणा करेंगे। यह पूर्वांचल के लिए बहुत राहत की बात होगी। सभी इसके लिए कृतार्थ होंगे।
लेकिन पूर्वांचल की सबसे बड़ी त्रासदी इन्सेफेलाइटिस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है। यह आश्चर्यजनक तो है ही ,दुखद भी है,क्योंकि इस महामारी से चालीस वर्षों से प्रतिवर्ष हज़ारों मासूम मारे जाते हैं और विकलांग भी होते हैं केवल पूर्वांचल में। .
इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के 2005 से आठ साल के अनवरत संघर्ष के बाद इस महामारी का नेशनल प्रोग्राम 2012 में केंद्र सरकार के मंत्रियों के समूह ने बना दिया था। यह फिर 2014 में बना लेकिन आज तक यह रिलीज़ नहीं हुआ। आखिर क्यों ? क्या महज़ इस लिए कि इससे कलकवलित होने वाले मासूम वोटर नहीं हैं और गरीबों और किसानों के बच्चे हैं ? यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए कतई मुनासिब नहीं।
इस महामारी को चीन ,जापान ,कोरिया जैसे कई देशों ने दशकों पहले ही लगभग उन्मूलित कर लिया है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते ?जब पोलियो को नेशनल प्रोग्राम के ज़रिये ही 2013 में और स्माल पॉक्स को भी नेशनल प्रोग्राम के ही ज़रिये 1977 में हमारी ही केंद्र सरकार ने उन्मूलित कर लिया तो इन्सेफेलाइटिस मुद्दे पर इतनी असंवेदनशीलता क्यों ? जबकि पोलियो में मृत्युदर मात्र 0.२५% से भी कम और स्माल पॉक्स में केवल १ से २ % ही थी। और वहीं इन्सेफेलाइटिस में मृत्यु दर ३०% से भी अधिक है, विकलांगता अलग से। साथ ही यह महामारी लाइलाज भी है। इसी के साथ सुखद सत्य यह है कि इन्सेफेलाइटिस १००% प्रीवेंटेबल है बशर्ते जनवरी से ही इस पर ध्यान दिया जाय। लेकिन आज़ादी के बाद किसी भी सरकार ने आज तक प्रिवेंशन ( रोकथाम) पर कोई ध्यान नहीं दिया। बस जेई का टीका 2006 और 2010 में इसका अपवाद है।अभियान के 2005 के आंदोलनों के बाद और लोकसभा में स्थानीय सांसद महोदय द्वारा कई बार उठाने के बाद यह टीका 2006 में पहली बार मास स्केल पर लगा और जेई का प्रकोप कम हुआ। मॉस स्केल पर टीका 2010 में भी लगा।
सवाल यह उठता है की इन्सेफेलाइटिस मुद्दे पर पीएम का दो साल बाद भी एक शब्द का बयान तक क्यों नहीं आया ? चार साल पहले ही बन चुका इन्सेफेलाइटिस का नेशनल प्रोग्राम आज तक लागू क्यों नहीं हो पा रहा है ? महामारी से सर्वाधिक मौतें पूर्वांचल में ही होतीं हैं । पीएम भी पूर्वांचल से ही सांसद हैं फिर भी यह मुद्दा राजनैतिक उपेक्षा का शिकार क्यों है ? देश के 19 प्रांतों में पचास वर्षों से हर साल कितने हज़ार मासूमों को यह महामारी काल कवलित करती है, इसका सही रिकार्ड किसी के पास नहीं है।संख्या हर साल हज़ारों में होगी और अब तक लाखों मासूम पूरे देश में इस महामारी से मर चुके हैं। यह पूर्वांचल का सबसे उपेक्षित परन्तु अति संवेदनशील विषय है। लाज़िम है कि इस मुद्दे पर और नेशनल प्रोग्राम को लागू करने पर पीएम को गोरखपुर दौरे से पहले या दौरे दौरान सकारात्मक कदम उठाने की अपील हम अपने अभियान के जरिये महीनों से लगातार कर रहे हैं । अब तक उत्तर प्रदेश ,खासकर पूर्वांचल के दस जिलों से, बिहार और बंगाल से कई हज़ार पोस्ट कार्ड आम लोगों ने भेजे हैं लेकिन कुछ भी सार्थक परिणाम नहीं आया है आज तक। मन की बात वाले पते पर भी लोगों ने पत्र भेजे हैं लेकिन अभी तक कोई जबाब नहीं मिला है। अगर गोरखपुर दौरे पर भी इसी तरह ख़ामोशी कायम रहेगी तो यह अति दुखद साबित होगी।
हमारा अनुरोध है कि इन्सेफेलाइटिस का नेशनल प्रोग्राम जल्द रिलीज़ किया जाय।
(लेखक गोरखपुर के बाल रोग चिकित्सक और इन्सेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के चीफ कैम्पेनर हैं )