सैयद फरहान अहमद
बॉलीवुड के मशहूर तबला वादक महेश राव से खास बातचीत
गोरखपुर, 3 अगस्त । बजरंगी भाईजान फिल्म की कव्वाली ‘‘भर दो झोली मेरी या मोहम्मद’’ में तबले से हुनर का जलवा बिखेरने वाले महेश कुमार राव किसी तारूफ के मोहताज नहीं है। लक्ष्मीकांत प्यारे लाल, इस्माईल दरबार, नदीम श्रवण, शहर एहसान लाय जैसे चोटी के संगीत निर्देशकों के साथ करीब 100 से अधिक फिल्में कर चुके है। वेलकम बैक का गाना ‘ मैं बबूली हुई ‘ या किल दिल का ‘‘ नखरे तेरे ‘ आदि में अपने तबले से जलवा बिखेर चुके है। फिल्मों के लिए गाना राकेश उज्जैनी नाम से लिखते है। करीब 35 सालों से बालीवुड की सेवा कर रहे है।
हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां के उर्स में हो रही कव्वाली में जुनेद सुलतानी बदायूंनी के साथ संगत कर रहे हैं। खास बातचीत में बताया कि पहले के समय के संगीत में रस था। अब उस रस का अभाव हो गया है। लक्ष्मीकांत जब कोई म्यूजिक कोई कम्पोज करते थे तो उनके साथ 100-150 कलाकार परफार्म करते थे। फिर उससे निकलने वाला संगीत दिल को छू जाता था। उसे आज सदाबहार गीत कहते है। आधुनिक वाद्य यंत्रों में विविधता तो बहुत है लेकिन वह मिठास गायब हो गयी है। 100 आदमियों का काम केवल चार आदमी मिलकर आधुनिक यंत्रों व कम्प्यूटर की मदद से कर रहे है। 100 लोगों की रोजी रोटी गयी वहीं क्वालिटी में भी फर्क आया। कम्प्यूटर के तबले व वास्तविक तबले की टोन में काफी फर्क है। आधुनिक वाद्ययंत्रों से संगीत की मिठास गुम हुई है। पहले सब मिल कर गाना कम्पोज करते थे। आधुनिकता में हर क्षेत्र की तरह संगीत के क्षेत्र में भी कम्पटीशन बढ़ गया है।
उन्होंने बताया कि आम तबला वादक के लिए फिल्म इंडस्ट्रीज में बड़ी चुनौतियां है। अब चाहे जितना अच्छा तबला बजा लो लेकिन फिल्म इंडस्ट्रीज के पैमाने पर खरा नहीं उतरेंगे तो काम नहीं मिलेगा। फिल्म इंडस्ट्रीज की अपनी डिमांड है जिसे पूरा करना हर कलाकार के लिए जरूरी है। हर कदम पर आडिशन होता है, उसमें डिग्री से ज्यादा हुनर देखा जाता है। भले ही आपके पास डिग्री नहीं है लेकिन टैलेंट है तो यह फिल्म इंडस्ट्रीज आपकी है।
एक वाकिया बताया कि जब इंडस्ट्रीज में पहला कदम रखना हुआ तो मैं आडिशन के लिए गया तो सिर्फ डिग्री को जन्मतिथि के लिए इस्तेमाल किया गया। आडिशन में तमाम तरह के सवालात किए गए टैलेंट देखा। उसके बाद सेलेक्शन हुआ।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पूर्वांचल या पूरे भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। सिर्फ एक प्लेटफार्म मिलने की दरकार है। मेहनत होनी चाहिए। वक्त के साथ कम्पटीशन में भी तेजी आयी है। लिहाजा तैयारी भी उसी लेबल की हो। मीटर से लेकर बारकाउंटिंग तक की जानकारी भी चाहिए।
उन्होंने बताया कि एक फिल्म के लिए उनका भक्ति गीत रिकार्ड हुआ है। बोले की पहले शायरी और म्यूजिक कम्पोजिंग साथ होती थी बेहतरीन संगीत के साथ उम्दा शायरी भी सुनने को मिलती थी। अब उसमें काफी बदलाव आ गया है। अब तो अलग तरीके के गाने लिखे वा कम्पोज किए जाते है। फर्क तो आया है पिछले और इस जमाने के संगीत व गीत में। बदलाव जरूरी है लेकिन क्वालिटी से समझौता नहीं होना चाहिए।
एक वाकिया बताया कि जब इंडस्ट्रीज में पहला कदम रखना हुआ तो मैं आडिशन के लिए गया तो सिर्फ डिग्री को जन्मतिथि के लिए इस्तेमाल किया गया। आडिशन में तमाम तरह के सवालात किए गए टैलेंट देखा। उसके बाद सेलेक्शन हुआ।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पूर्वांचल या पूरे भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। सिर्फ एक प्लेटफार्म मिलने की दरकार है। मेहनत होनी चाहिए। वक्त के साथ कम्पटीशन में भी तेजी आयी है। लिहाजा तैयारी भी उसी लेबल की हो। मीटर से लेकर बारकाउंटिंग तक की जानकारी भी चाहिए।
उन्होंने बताया कि एक फिल्म के लिए उनका भक्ति गीत रिकार्ड हुआ है। बोले की पहले शायरी और म्यूजिक कम्पोजिंग साथ होती थी बेहतरीन संगीत के साथ उम्दा शायरी भी सुनने को मिलती थी। अब उसमें काफी बदलाव आ गया है। अब तो अलग तरीके के गाने लिखे वा कम्पोज किए जाते है। फर्क तो आया है पिछले और इस जमाने के संगीत व गीत में। बदलाव जरूरी है लेकिन क्वालिटी से समझौता नहीं होना चाहिए।