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प्रेमचन्द ने लोकतंत्र में सामान्य जनता के बहिष्करण को 1919 में ही पहचान लिया था

‘ गोरखपुर में प्रेमचन्द: शताब्दी स्मरण ’

गोरखपुर, 19 अगस्त। महान कथाकार प्रेमचन्द के गोरखपुर आने के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित ‘ गोरखपुर में प्रेमचन्द: शताब्दी स्मरण ’ कार्यक्रम के तहत प्रेमचन्द पार्क में प्रेमचन्द की कहानियों, उनके वैचारिक लेखों व गोरखपुर से उनके सम्बन्ध पर साहित्यकारों ने बातचीत की।
यह आयोजन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान, अलख कला समूह और गोरखपुर फिल्म सोसाइटी ने किया था।
सबसे पहले सुजीत श्रीवास्तव सोनू ने प्रेमचन्द का लेख ‘ साम्प्रदायिकता और संस्कृति ’ तथा अशोक चौधरी ने ‘ नारी जाति के अधिकार ’ का पाठ किया।

7a2d9c00-e183-40b0-87f6-5d204cf922dbअशोक चौधरी

इसके बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल राय ने ‘ प्रेमचन्द का वैचारिक गद्य ( 1916-1921) पर एक दृष्टि ’ पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि इस अवधि में प्रेमचन्द का वैचारिक गद्य अधिक नहीं है लेकिन उनका फरवरी 1919 में ‘ जमाना ’ में छपा लेख ‘ पुराना जमाना नया जमाना ’ बहुत महत्वपूर्ण है। वह इस लेख में आधुनिकता की पहचान करते हुए लोकतांत्रिक चेतना और इसकी विशेषता का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि आज के दौर की लोकतांत्रिकता से सामन्य जनता को बहिष्कृत कर दिया गया है। एक ऐसी सभ्यता बनती जा रही है जिसमें असहाय, कजोर वर्ग अपमानित हो रहा है। उन्होंने प्रेमचन्द के इस लेख में ‘ महाजनी सभ्यता ’ की वैचारिक अनुगूंज सुनाई देती है। वह इस लेख में राष्ट्रीयता की भी पोल खोलते हैं और कहते हैं कि वह कौन सी राष्ट्रीयता है जिसमें दूरस्थ स्थान पर बैठे व्यक्ति के प्रति सहानुभूति दिखाई देती है लेकिन अपने पड़़ोस के बदहाल व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं है। वह इस लेख में नए जमाने में व्यापारियों का वर्चस्व होगा जिसे किसान और मजदूरों का आंदोलन पलट कर नया हिन्दुस्तान बनाएंगें।

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राजेश मल्ल

13 वर्ष की उम्र में प्रेमचन्द ने पढ़ लिए थे उर्दू के 200 से अधिक उपन्यास

वरिष्ठ कवि प्रमोद कुमार ने ‘ गोरखपुर और प्रेमचन्द ’ पर बोलते हुए कहा कि प्रेमचन्द पहली बार 13 वर्ष की अवस्था में गोरखपुर आए थे। इस दौरान उन्होंने बुद्धिलाल बुकसेलर की दुकान पर दो-ढाई वर्ष में उर्दू के 200 से अधिक उपन्यास पढ़ डाले। वह खुद लिखते है कि इस दौरान वह ‘ उन्माद ’ में थे। एक तरह से गोरखपुर ने प्रेमचन्द को लेखकीय संस्कार दिया। यहीं रहते हुए वह उर्दू से हिन्दी लेखन की ओर मुड़े। उनके समय में मन्नन द्विवेदी भी किसानों पर कहानियां लिख रहे थे। प्रेमचन्द के ‘ सेवा सदन ’ की भूमिका मन्नन द्विवेदी ने लिखी थी। सेवा सदन के पहले संस्करण की प्रति आज भी पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर की लाइब्रेरी में मौजूद है। प्रमोद कुमार ने कहा कि प्रेमचन्द ने गांधी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ी हालांकि वह वैचारिक रूप से समाजवाद से प्रभावित थे। खुद भीष्म साहनी ने इस बात को रेखांकित किया है। पे्रमचन्द के लेखकीय व्यक्तित्व व निजी जीवन में कोई फर्क नहीं था।

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प्रो अनिल राय

 प्रतिरोध की चेतना और गहरी मनुष्यता की कहानी है ‘दो बैलों की कथा’

बीएचयू में हिन्दी के प्रोफेसर एवं एवं प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो सदानन्द शाही ने प्रेमचन्द की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ का भाष्य के साथ रोचक पाठ किया। उन्होंने कहा कि ईदगाह के बरक्स यह कहानी कम पढ़ी गई है लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी यह कहानी जातक कथाओं और पचतंत्र की परम्परा से जुड़ी हुई कलात्मक रूप से श्रेष्ठ कहानी है। इसमें प्रतिरोध की चेतना और गहरी मनुष्यता है। प्रेमचन्द ने इस कहानी के जरिए से बताया कि प्रतिरोध के साथ वही खड़े होते हैं जो ज्यादा मानवीय होते हैं। उन्होंने अपभ्रंश के एक कवि की कविता और वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह की कविता ‘ बैलों का संगीत प्रेम ’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह कहानी कृषि संस्कृति के विकास के साथ गाय, बैल से मनुष्य के आत्मीय सम्बन्ध की क्लासिक कहानी है। उन्होंने आधुनिक खेती और मशीनीकरण का जिक्र करते हुए कहा कि जो लोग गाय-बैल की बहुत चर्चा करते हैं कि वे इस बात पर परेशान नहीं है कि खेती में मशीनीकरण ने गाय-बैलों की उपयोगिता के साथ-साथ खेती किसानी व किसान को कितना नुकसान पहुंचाया है। पूंजी की संस्कृति ने मुनष्य को इतना संकीर्ण बना दिया है कि वह अपने लोभ के लिए नदियां, पहाड़, जंगल, पशु-पक्षियों के भी नष्ट करने से बाज नहीं आ रहा। जो बैल उर्जा के बड़े स्रोत हो सकते थे, उनका कोई उपयोग नहीं रह गया है सिवाय उनको मरने के लिए सड़क पर छोड़ देने के। जो लोग दिखवे के पशु प्रेम मंे मनुष्य को उत्पीडि़त कर रहे हैं उन्हें इस बात की कोई चिन्ता नहीं कि नई सामाजिक संरचना में ‘ हीरा मोती ’ की क्या जगह रह गई है ?

pr janardanप्रो जनार्दन

सेवा सदन को फिर से पढ़े जाने की जरूरत: प्रो रामदेव शुक्ल
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो जर्नादन ने कहा कि आज किसानी का जीवन बहुत भयावह है लेकिन इसका साहित्य में वर्णन नहीं है जैसा कि प्रेमचन्द ने अपने समय में किसान संकट पर किया। युवा शिक्षक राजेश मल्ल ने कहा कि गांव और किसान उजड़े नहीं हैं, बल्कि सुनियोजित तरीके से उजाड़े गए हैं। आज इस पर बात होनी चाहिए कि 60-70 वर्षों में खेती से जुडे उद्योग कैसे मालामाल हुए तो दूसरी तरफ साढ़े चार लाख किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो रामदेव शुक्ल ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, बैंकों ने किसानों को किसान से कुलक बनाया और फिर उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया। प्रेमचन्द का दौर यूरोपीय साम्राज्यवाद का दौर है जबकि आज अमेरिकी साम्राज्यवाद की आवारा पूंजी का दौर है जिसकी कल्पना पहले नहीं थी। आज दस हजार रूपए के कर्ज में किसान जेल जा रहा है जबकि कार्पोरेट को लाखों करोड़ की छूट दी जा रही है। उन्होंने कहा कि जब प्रेमचन्द गोरखपुर में थे जो वह एक लेखक के तौर पर लगातार परिपक्व होते जा रहे हैं जिसे उनकी रचनाओं व लेखों में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द के उपन्यास सेवा सदन के साथ आलोचकों ने न्याय नहीं किया है। इस उपन्यास को आज से फिर से पढ़े जाने की जरूरत है। यह यह इस उपन्यास में प्रेमचन्द ने जिस किसान जीवन के शोषण और प्रताड़ना को दिखाया है उसका जिसका उन्वान हमें ‘ कर्मभूमि ’ में दिखता है।
कार्यक्रम का संचालन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।

‘ सद्गति ’ का गोरखपुर विश्वविद्यालय और प्रेमचन्द पार्क में प्रदर्शन

आज इस मौके पर प्रेमचन्द की कहानी पर बनी फिल्म सद््गति का दो जगह प्रदर्शन हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन स्थित प्रेक्षागृह में इतिहास विभाग के प्रोफेसर चन्द्रभूषण अंकुर ने शिक्षकों, छात्र-छात्राओं को ढाई बजे यह फिल्म दिखाई। महान फिल्मकार सत्यजित रे द्वारा 1981 में बनायी गई इस फिल्म को गोरखपुर फिल्म सोसाइटी ने शाम सात बजे प्रेमचन्द पार्क में दिखाई।

प्रेमचन्द की कहानियों पर छात्र-छात्राओं ने बनाए 17 चित्र
गोरखपुर में प्रेमचन्द: शताब्दी स्मरण कार्यक्रम से गोरखपुर विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स के छात्र-छात्राएं भी जुडे़। छात्र-छात्राओं ने प्रेमचन्द की कहानियों पर 17 चित्र बनाए और उसे प्रेमचन्द में लाकर प्रदर्शित किया। कुछ चित्र प्रेमचन्द के थे। इस प्रदर्शनी को देखने फाइन आर्ट्स विभाग के अध्यक्ष प्रो भारत भूषण भी आए।

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इन्होंने बनाए चित्र

1.शिवम कुमार गुप्ता बीए द्वितीय वर्ष -मानसरोवर
2.मनोज विश्वकर्मा बीएम प्रथम वर्ष-वरदान
3.निलेन्द्र राजभर बीए प्रथम वर्ष -प्रेमचन्द का पोट्रेट
4.अजय कुमार एमएम द्वितीय वर्ष- पोट्रेट प्रेमचन्द
5.सूरज चैहान बीए प्रथम वर्ष – पोट्रेट गोेदान
6.रानी विश्वकर्मा बीए प्रथम वर्ष -ईदगाह
7.शशिबाला सिंह बीए प्रथम वर्ष -दो बैलों की कथा
8.शिखर त्रिपाठी बीए प्रथम वर्ष -कलम का सिपाही
9.मनीष एमए प्रथम वर्ष -बड़े घर की बेटी
10.सुरेन्द्र प्रजापति एमए फाइनल इयर -ईदगाह
11.दीपिका गुप्ता एमए फाइनल इयर -कायाकल्प
12.सत्या रमन एमए फाइनल इयर गोदान
13.कंचन सिंह एम एम फाइनल इयर – कफन
14.प्रिया गुप्ता बीए प्रथम वर्ष – पोट्रेट प्रेमचन्द
15.सूर्य प्रताप एमएम प्रथम वर्ष -ईदगाह
16.आदित्य एमए प्रथम वर्ष -प्रेमचन्द की लेखनी
17.ज्योति गप्ता एमए फाइनल इयर -गबन

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