चंडीगढ़ में दिल का दौरा पड़ने से निधन
नई दिल्ली, 6 सितम्बर । भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की पोलित ब्यूरो सदस्य व जाने-माने मजदूर नेता कामरेड स्वपन मुखर्जी (63 वर्ष) का आज तड़के चंडीगढ़ में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे वहां पार्टी की बैठक में भाग लेने गये थे। का0 स्वपन का अंतिम संस्कार दिल्ली में निगमबोध घाट पर बुधवार को दोपहर बाद किया जायेगा।
कामरेड स्वपन मुखर्जी की पैदाइश 17 नवंबर 1953 को हुई। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे। 70 के दशक के शुरुआती दौर में दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से बी.एससी. करने के दौरान ही वे उस दौर के बहुत सारे युवाओं की तरह नक्सलबाड़ी आन्दोलन से प्रेरित हुए और माले आन्दोलन में शामिल हुए। बी.एससी. के दिनों से ही वे प्रतिबद्ध क्रांतिकारी थे। उसी समय उन्होंने आजादपुर इलाके के मजदूरों, दिल्ली ट्रांसपोर्ट कोर्पोरेशन के कर्मचारियों, शिक्षकों और छात्रों में काम-काज संगठित करना शुरू कर दिया था।
भाकपा (माले) केन्द्रीय कमेटी ने उनके निधन को गहरा सदमा बताया है। पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भाकपा (माले) आन्दोलन के पहले चरण के बाद के चौतरफा भ्रमों और हताशा के दौर में भी कामरेड स्वपन दृढ़ता से पार्टी की क्रांतिकारी दिशा और चारु मजूमदार की विरासत की जमीन पर मजबूती से डटे रहे। 28 जुलाई 1974 को गठित भाकपा (माले) केन्द्रीय कमेटी, जिसमें कामरेड जौहर महासचिव थे, के पहले ही कामरेड ईश्वरचंद त्यागी की अगुवाई में कुछ और साथियों के साथ कामरेड स्वपन ने बिहार के साथियों से संपर्क कर लिया था, जो तब तक कामरेड जौहर के नेतृत्त्व में काम कर रहे थे. 1976 की शुरुआत में हुई दूसरी पार्टी कांग्रेस के दौर से ही कामरेड स्वपन की दिल्ली के पार्टी काम-काज में सक्रिय भागीदारी रही।
सन 1976 के बीच से लेकर 1978 तक आपातकाल और उसके बाद के हालात में पुलिस से बचने के लिए उन्होंने कुछ दिन के लिए दिल्ली छोड़ दी। आपातकाल के बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के क्लर्क के रूप में कुछ दिनों काम दिया. इस बीच वे लगातार दिल्ली में पार्टी संगठन बनाने के काम में सक्रिय रहे।
कामरेड स्वपन मुख्य रूप से आपातकाल की पृष्ठभूमि में पैदा हुए पीयूसीएल और पीयूएचआर के नेतृत्त्व वाले मानवाधिकार आन्दोलनों में बहुत सक्रिय रहे. वे जस्टिस वी एम तारकुंडे और गोविन्द मुखोटे जैसे लोगों के संपर्क में थे. वे नागभूषण पटनायक और नेल्सन मंडेला की रिहाई के लिए चले आन्दोलनों में बेहद सक्रिय थे. 84 के सिख विरोधी जनसंहार के खिलाफ और वियतनाम व अफ्रीका के उपनिवेशवाद विरोधी साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलनों समेत कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अभियानों के पक्ष में भाकपा (माले) की ओर से वे लगातार सक्रिय रहे. सन 82 के शुरुआत में उनकी सक्रिय भूमिका के चलते दिल्ली में तानाशाही के खिलाफ एक सेमिनार आयोजित हुआ. इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए 26 अप्रैल 1982 को आई पी एफ का जन्म हुआ जिसके वे सक्रिय जीवंत संगठकों में से एक थे.
इस पूरे दौर में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के कर्मचारी के बतौर काम करते हुए कामरेड स्वपन भूमिगत दिल्ली राज्य इकाई के सदस्य रहे. 87 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और फिर पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए, दिल्ली आईपीएफ के प्रभारी बने और दिल्ली के मजदूर वर्ग को संगठित करने का जिम्मा लिया. उन्होंने भाकपा (माले) के मजदूर संगठन को संगठित करने की चुनौती स्वीकार की और 1989 में चेन्नई में हुए पहले सम्मलेन में एआईसीसीटीयू के संस्थापक महासचिव चुने गए.
93 में वे भाकपा (माले) की केन्द्रीय कमेटी में चुने गए. इसी साल वे पंजाब में पार्टी संगठन के प्रभारी बने और अगले तीन दशकों तक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते रहे. 98 में वे एक बार फिर एआईसीसीटीयू के महासचिव बने और मई 2015 में पटना में हुए एआईसीसीटीयू के सम्मलेन तक वे इस जिम्मेदारी को निभाते रहे. इसके बाद पार्टी की ज्यादा सीधी जिम्मेदारियां स्वीकार करने के लिए वे एआईसीसीटीयू के उपाध्यक्ष बने. आख़िरी वक्त तक वे पोलिट ब्यूरो की ओर से दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़, महाराष्ट्र और ओड़िशा के प्रभारी थे.
हल के वर्षों में कामरेड स्वपन ने एआईपीएफ के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे सक्षम पार्टी संगठक थे. वे हमेशा सर्वसुलभ, बहसों और नए विचारों का स्वागत करने वाले थे, अपार धैर्य के साथ पार्टी इकाईयों को पार्टी लाइन समझाने और और उसे लागू करने के लिए साथियों को प्रेरित करते थे. उनकी सर्वाधिक कमी दिल्ली, मुम्बई, पंजाब और चंडीगढ़ के उन नौजवान साथियों को खलेगी, जिनका वे नेतृत्त्व करते थे, जिनके लिए वे प्रेरणा का श्रोत थे. एक संगठक के बतौर वे सघन योजना निर्माण के सिद्धांत पर अमल करते थे और नेतृत्व की पहली कतार में रहते हुए योजनाओं को पूरी तरह लागू करने की मिसाल थे.
धैर्यशाली और विनम्र श्रोता, हमेशा सीखने को तैयार कामरेड स्वपन विभिन्न विचारधाराओं के कार्यकर्ताओं, जनांदोलनों, सांस्कृतिक रुझानों और वाम-जनवादी पार्टियों में बेहद सम्मानित थे।
कॉमरेड स्वपन का जाना पार्टी के लिए ही नहीं, लोकतांत्रिक आन्दोलनों की पूरी धारा के लिए अपूरणीय क्षति है।