बक्शीपुर के थवईपुल पर है वाद्य यंत्रों का इकलौता व सबसे बड़ा बाजार
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 18 सितम्बर। मौसिकी (संगीत)के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना करना बेमानी है। इसे भारतीयों की रूह कहा जायें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। भारतीय तीज-त्योहार, सांस्कृतिक कार्यक्रम, शादी विवाह बिना मौसिकी के अधूरे है। मौसिकी हो और वाद्ययंत्रों का जिक्र न हो तो यह मुमकिन नहीं है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान में मौसिकी ने काफी तरक्की की। शहर भी मौसिकी से अछूता नहीं हैं। शहर में एक जगह ऐसी है जहां मौसिकी के साज-ओ-सामान बिकते है। इसके कद्रदान भी बहुत है।
बक्शीपुर के थवईपुल पर मौसिकी के साज-ओ-सामान का बाजार सजता है। वाद्य यंत्रों का यह इकलौता व सबसे बड़ा बाजार है। यहां ढोलक की थाप भी सुनायी पड़ेगी, हारमोनियम की रवानी भी। पाजेब की छमछम भी।
बेहद दिलकश है यह बाजार। आधा दर्जनों से ज्यादा दुकानें लोगों की खिदमत कर रही है। इनकी कीमत भी कम है। साज-ओ-सामान तो मिलता ही है यहां पर वाद्ययंत्रों की खराबी भी दूर की जाती है।
प्रेम म्यूजिक हाउस की मालिकीन समीरून निशा ने बताया कि जमाने से यह दुकान चल रही है। पति मोहम्मद रफीक की मृत्यु हो जाने पर दुकान संभालनी पड़ी। कद्रदानों की कमी नहीं है। दूर दराज से भी लोग यहां पर आते है। यहां पर संगीत का सारा सामान मिल जाता है। शहर में पिछले दस सालों से संगीत के कद्रदान बढ़े है। उन्होंने बताया कि नाटकए नृत्य, झांकी, रामलीला, झूलेलाल जयंती, जुलूस, शादी विवाह, स्कूली कार्यक्रमों में डिमांड रहती है। गिटार, तबला, डफली, हारमोनियम
की बिक्री ज्यादा होती है। इसके अलावा नाटक का मेकअप व कपड़ा भी मिलता है। वाद्ययंत्रों में बांसुरी, हारमोनियम, ढ़ोलक, ताशा, ड्रम, कांगो थ्री पीस, झांझए जंग तबलाए मंजीरा, मृदंग, नाल, संतूर, सरोद, शहनाई, बैंड बाजा, डफली, सितारा सुरबहार, तबला, तानपुरा, तम्बुरा,घुंघरु, इसराज,दिलरुबा, वीणा, सितार, तबला आसानी से मिलता है।
वाद्य यंत्रों की रिपेयरिंग भी होती है। स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय में ढ़ेर सारे कार्यक्रम होने लगे है। इसलिए इन वाद्ययंत्रों की डिमांड बढ़ी है। एक बात और भी काबिलेगौर कि अभिभावक भी चाहते है कि बच्चों के अंदर कई तरह के हुनर हो जाये। इसलिए
वह यहां से वाद्ययंत्र फरोख्त करते है। टीवी के तमाम तरह के रियालिटी शो की वजह से लोगों का रूझान बढ़ा है। सभी चाहते है कि उनका नौनिहाल कुछ कमाल दिखाये। शब्बीर ने बताया कि वाद्ययंत्रों को कोलकाता, बनारस, मथुरा, मेरठ से मंगवाया जाता हैं