साहित्य - संस्कृति

आरएसएस और उसके संगठनों के दबाव में चौथे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल को रोकने की कोशिश

आयोजन के एक दिन पहले एबीवीपी के कहने पर कुलपति ने राजकीय कृषि महाविद्यालय के ऑडिटोरियम का आवंटन रद किया 

अब विद्या भवन ऑडिटोरियम में होगा फ़िल्म फेस्टिवल

उदयपुर , 14 अक्टूबर। आज से शुरू हो रहे चौथे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल को फेस्टिवल शुरू होने से ठीक एक दिन पहले की शाम को आरएसएस और उसके संगठनों तथा प्रशासन ने दबाव बनाकर रुकवाने की भरपूर कोशिश की। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कहने पर राजकीय कृषि महाविद्यालय के कुलपति ने महाविद्यालय का ऑडिटोरियम देने से मना कर दिया गया।

राजकीय कृषि महाविद्यालय का ऑडिटोरियम जो कि फ़िल्म महोत्सव का स्थल था यूनिवर्सिटी द्वारा रद्द कर करने का कारण यह बताया गया कि प्रशासन से कार्यक्रम की पूर्वानुमति नहीं ली गयी थी। आयोजकों – उदयपुर फिल्म सोसायटी और जन संस्कृति मंच का कहना था कि हम पिछले चार साल से यह फ़िल्म फेस्टिवल कर रहे हैं। न तो पिछले तीन फिल्मोत्सवों में कोई पूर्वानुमति ली गयी और न ही किसी भी सांस्कृतिक आयोजन में कभी भी ऐसी किसी अनुमति की जरुरत होती है। उदयपुर फिल्म सोसाइटी के पदाधिकारियों ने बताया कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के द्वारा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति को ज्ञापन सौंपा गया था जिसमे फ़िल्म महोत्सव को आग भड़काने और बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वाला बताया गया। कुलपति ने दबाव में आकर विश्विद्यालय सभागार में कार्यक्रम को निरस्त कर दिया जबकि इसकी पूर्व लिखित अनुमति सोसाइटी ने पहले ही ले ली थी एवं निर्धारित शुल्क 24,450 रूपये भी जमा करा दिए थे।

विश्वविधालय द्वारा अनुमति निरस्त किए जाने के बाद सोसाइटी को आनन-फानन में नया कार्यक्रम स्थल चुनना पड़ा. अब यह फ़िल्म महोत्सव विद्या भवन ऑडिटोरियम में होगा. पूरा कार्यक्रम तीनो दिन यथावत वैसे ही रहेगा.

 एबीवीपी ने फिल्म फेस्टिवल के विरोध में प्रेस विज्ञप्ति भी जारी कि जिसमें  रोहित वेमुला, गुजरात के ऊना मामले और कैराना जैसे विषयों पर फ़िल्म प्रदर्शन और बहस को धर्म एवं जाति पर लड़वाने वाला विषय बताया गया और यह सब मामले छात्रों को बरगलाने की साजिश बताये गये हैं। फेस्टिवल के आयोजकों ने कहा कि जातिगत शोषण के सभी मुद्दों पर बात एवं बहस करके ही जतिमुक्त समाज की दिशा में बढ़ा जा सकता है. इन सभी मुद्दों पर बात करके एवं जातिगत भेदभाव एवं अन्याय का कड़ा विरोध करके ही हम एक समतामूलक समाज की दिशा में आगे बढ़ सकते है. अतः इन विषयों पर चुप्पी नहीं बल्कि बात करना ही जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है. पुलिस प्रशासन द्वारा जिन फिल्मों पर आपति एवं सवाल उठाये गये उनके बारें में सोसाइटी का कहना है कि वह सभी फ़िल्में देश के प्रतिष्ठित निर्माताओं और निर्देशकों द्वारा बनाई गयी है. जिन्हें देश विदेश में पर्याप्त प्रशंसा भी मिली है।

 

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