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इस्लाम विज्ञान और प्रगति का विरोधी नहीं है : अल्लामा मसऊद 

इस्लाम ने दिखायी पश्चिमी को इल्म व विज्ञान की राह : मौलाना अहजहर

-20वां अजीमुश्शान जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी 

-शाही जामा मस्जिद उर्दू बाजार पूरब फाटक पर आयोजित

गोरखपुर, 27 दिसम्बर। अलजामियतुल अशरफिया अरबी यूनिवर्सिटी मुबारकपुर के इस्लामिक धर्मगुरु अल्लामा मौलाना मसऊद अहमद ने कहा कि पिछली सदियों के सभी मुस्लिम वैज्ञानिक और शोधकर्ता मदरसों से पढ़कर निकले थे । कुरआन और हदीस उनकी प्ररेणा के स्रोत थे। कई वैज्ञानिक और खोजकर्ता तो कुरआन, हदीस, फिक्ह (धर्मशास्त्र) के विद्वान थे और साथ ही साथ वह नई-नई खोजों में भी व्यस्त रहते थे। इससे  यही सिद्ध होता है कि इस्लाम कहीं भी मनुष्य की प्रगति में रूकावट नहीं डालता। इस्लाम विज्ञान और प्रगति का विरोधी नहीं है। हमारा यक़ीन मुकम्मल यकीन हैं कि इस्लाम में सियासत, हुकूमत और पब्लिक की दुनियावी और परलोकिक ज़रूरतओं को पूरा करने के लिए प्रोग्राम मौजूद हैं।

उर्दू बाजार जामा मस्जिद पूरब फाटक पर चिश्तिया कमेटी के तत्वावधान में आयोजित 20वें अजीमुश्शान जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमानों के ज्ञान व विद्या में किए गये कारनामों को नई  नस्ल के सामने पेश किया जाए और उन्हें यह एहसास कराया जाए कि इस्लाम के दामन से ही रोशनी मिलेगी। इस्लाम की  रोशनी इंसान को फायदा पहुंचाने वाली हैं। हम पश्चिमी जगत की भौतिक उन्नति देखकर हीन-भावना का शिकार न हों और विज्ञान व टेक्नॉलजी के क्षेत्र में आगे आएं।

युवा इस्लामिक विद्वान शमसुल उलूम घोषी मऊ के मौलाना मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा मुसलमान ज्ञान के हर क्षेत्र में आगे थे। चाहे उसका सम्बन्ध धार्मिक ज्ञान से हो या आधुनिक ज्ञान से। धार्मिक ज्ञान में वे मुफक्किर-ए-इस्लाम और वलीउल्लाह थे, तो आधुनिक ज्ञान में उनकी गणना दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों में होती थी।

उन्होंने कहा कि इस्लाम ने ही पश्चिम को इल्म व विज्ञान की राह दिखायी। आज भी यूरोप के पुस्तकालयों में मुसलमानों द्वारा  विज्ञान के विभिन्न विषयों पर ढाई लाख किताबें रखी हैं जिनसे आज तक मुसलमान कोई फायदा नहीं उठा सके हैं।

विशिष्ट अतिथि सालेहपुर के मौलाना सैयद हम्जा ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि मुसलमानों ने अपना इतिहास भुला दिया। उसे वह हुनर तो छोड़ो, वह नाम ही याद नही जिनकी वज़ह से आधुनिक विज्ञान ने इतनी प्रगति की है। मुसलमान अतीत में एक सफल इंजीनियर भी रहे। एक चिकित्सक भी रहे। एक उच्च सर्जन भी रहे हैं। कभी इब्न-उल-हैशम बन कर प्रतिश्रवण के सिंहासन पर काबिज हो गये। तो कभी जाबिर बिन हियान के रूप में रसायन विज्ञान का बाबा आदम बन कर सामने आये। जब यूरोप वाले दस्तखत करना नहीं जानते थे हमनें लाखों किताबें लिख ली थी।आइये फिर उसी राह पर चलने का संकल्प लें।

नात शरीफ रईस अनवर व  अमीर हम्जा ने पेश की। अध्यक्षता नेमतुल्लाह ने व संचालन मौलाना मकसूद आलम ने की। आखिर में सलातो सलाम पढ़ा गया। फलीस्तीन, एलप्पो, सीरिया, इराक,  म्यांमार सहित दुनिया के तमाम मुसलमानों पर हो रहे जुल्म से निजात की दुआ मांगी गयी। हिन्दुस्तान के तरक्की की दुआ हुई।

इस मौके पर हाफिज रहमत अली, रफीउल्लाह, सैयद मेहताब अनवर, नवेद आलम,  नेमतुल्लाह, वसीउल्लाह, वलीउल्लाह, रजीउल्लाह, सैफ, कैफ, सेराज, जुबैर, अब्दुल रहीम, तनवीर, अतहर, मोहम्मद अहमद, तौहीद, सालिम, सलमान सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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