मनोज कुमार सिंह
दो दिन में गोरखपुर में दो घटनाएं। रविवार की रात खोराबार थाना क्षेत्र के फुलवरिया में बहूभोज कार्यक्रम में आर्केस्टा ग्रुप की नृत्यांगना से छेड़खानी को लेकर गोली चल गई जिसे ग्राम विकास अधिकारी के पैर में गोली लगी और वह घायल हो गया।
एक दिन बाद ही कूड़ाघाट क्षेत्र में रिसेप्शन के दौरान सेलीब्रेशन फायरिंग में दूल्हे के भांजे दस साल के श्रेयांश को गोली लगी और उसकी मौत हो गई। इस घटना में गैरलाइसेंसी रिवाल्वर से गोली चलायी गई थी।
कुछ और घटनाओं पर गौर करें।
छह माह पहले गोरखपुर का एक व्यक्ति पत्नी के साथ फल खरीदने गया। इस दौरान उसकी फल विक्रेता से झगड़ा हो गया। उसने तुरंत पिस्टल निकाल ली। पत्नी ने उसका हाथ पकड़ लिया। इसी बीच पिस्टल से गोली चल गई और पत्नी के पेट में लग गई। उसे बीआरडी मेडिकल कालेज ले जाया गया लेकिन चिकित्सक उसे बचा न सके।
बात एक वर्ष पहले की है। बस्ती जिले के छावनी क्षेत्र के तुर्सी प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत एक शिक्षा मित्र स्कूल में भी लाइसेंसी पिस्टल लेकर आता था। चार अक्टूबर 2015 को जब वह पांचवी क्लास में पढ़ा रहा था, उसकी पिस्टल से गोली चल गई जो रिंकी नाम की छात्रा के सिर में लगी और उसकी मौत हो गई। शिक्षा मित्र को गिरफतार किया गया और इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया कि कोई भी शिक्षक स्कूल में असलहा लेकर नहीं आएगा।
यह घटनाएं नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के उस आंकड़े को तस्दीक करते हैं जिसमें कहा गया है कि गोलीबारी की घटनाओं में पूरे देश में सबसे अधिक मौत यूपी में होती है। एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2010 से 2014 के बीच गोलीबारी की घटनाओं में 17490 लोगों की जान गई जिसमें से 6929 की मौत सिर्फ यूपी में हुई। इनमें से 701 लोग लाइसेंसी बंदूक से मारे गए। बाकी लोगों की जान गैरलाइसेंसी हथियारों से हुई। इसके बाद बिहार का स्थान है जहां 3580 लोगों ने गोलीबारी की घटनाओं में जान गंवाई।
ब्यूरो के वर्ष 2015 के आंकड़े इस स्थिति को और बुरा बता रहे हैं। वर्ष 2015 में फायरिंग की घटनाओं में यूपी में 1617 और बिहार में 685 की जान गई। इसमें 172 और 53 लोग लाइसेंसी असलहों से चलाई गई गोली से मारे गए।
हाल में हरियाणा में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा से जुड़ी साध्वी देवा ठाकुर द्वारा एक विवाह समारोह में अंधाधुंध फायरिंग में एक शख्स की मौत के बाद बंदूक संस्कृति पर एक बार फिर से बहस शुरू हुई है।
लाइसेंसी हथियरों की संख्या के आधार पर बिहार और उत्तर प्रदेश एक आम्र्ड सोसाइटी कहना गलत नहीं होगा। बंदूक संस्कृति में ये दोनों राज्य सबसे आगे है। लाइसेंसी और गैरलाइसेंसी बंदूक रखना यह शान की बात मानी जाती है। नेता, ठेकेदार ही नहीं यहां शिक्षक, पत्रकार और साधू भी हथियार रखने में अपने को गौरवान्वित समझते हैं। अकेले अयोध्या में 391 साधुओं के पास लाइसेंसी असलहे हैं। बुंदेलखंड यूपी के पिछड़े इलाकों में से एक है जहां सूखे के कारण लोगों का हाल बेहाल है फिर भी यहां के लोग बंदूक रखने में आगे हैं। कहा जाता है कि घर में खाना भले न हो लेकिन बंदूक जरूर होनी चाहिए।
यूूपी में पुलिस के पास जितने असलहे हैं उससे पांच गुना ज्यादा लोगों के पास लाइसेंसी हथियार हैं। इनमें से 40 हजार ऐसे लोगों के पास लाइसेंसी हथियार हैं जिनके उपर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
यूपी पुलिस के आंकड़े भी बताते हैं कि यहां के लोग लाइसेंसी और गैरलाइसेंसी असलहे रखने के शौकीन हैं। वर्ष 2010 से 2014 के बीच पूरे देश में आम्र्स एक्ट के तहत तीन लाख केस रजिस्टर्ड हुए जिसमें से आधे यानि 1.5 लाख यूपी के थे। वर्ष 2014 में यूपी पुलिस ने 24,583 और 2015 में 24609 असलहे बबरामद किए जिसमें 60 फीसदी से अधिक गैरलाइसेंसी थे।
हाईकोर्ट इलाहाबाद ने यूपी में गन कल्चर पर अंकुश लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए सात अक्टूबर 2013 को नए गन लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने सिर्फ एक सूरत में गन लाइसेंस देने को कहा जब किसी व्यक्ति के साथ आपराधिक वारदात हुआ हो और उसे जान का वास्तविक खतरा हो।
हाइकोर्ट ने यह आदेश प्रदेश में सेलिब्रिटी फायरिंग में बड़ी संख्या में लोगों को की मौत और असलहों का लाइसेंस देने में बरती जा रही उदारता के मद्देनजर दिया था। यूपी सरकार के प्रमुख सचिव गृह ने यूपी में लाइसेंसी हथियारांे का ब्योरा हाईकोर्ट में पेश किया तो न्यायाधीश में हैरत में पड़ गए थे।
प्रमुख सचिव ने अदालत का बताया था कि प्रदेश में 11,02,113 लोगों को अब तक 11,22,844 असलहे का लाइसेंस जारी किया जा चुका है। लाइसेंस धारकों ने 11,04,711 असलहे खरीद भी लिए हैं।
यूपी में प्रत्येक 181 लोगों पर एक लाइसेंसी असलहा मौजूद है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, महराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर और संतकबीरनगर जिले की दो करोड़ की आबादी के बीच 58 हजार से अधिक लाइसेंसी असलहे मौजूद हैं। अहिंसा का उपदेश देने वाले बुद्ध की धरती सिद्धार्थनगर में चार हजार और कुशीनगर में पांच हजार से अधिक लोग लाइसेंसी बंदूक रखते हैं। एक से अधिक बंदूक रखने के लिए लोग महिलाओं के नाम पर लाइसेंस बनवाते हैं।
न्यायाधीश अब्दुल मतीन और सुधीर सक्सेना से इन आंकड़ो को सदमा पहुंचाने वाला बताया और कहा कि यूपी में पुलिस के पास माजूद हथियारों से पांच गुना ज्यादा तो नागरिकों के पास लाइसेंसी हथियार हैं। गैरलाइसेंसी हथियारों की संख्या का तो अभी पता ही नहीं है। जजों ने कहा कि लाइसेंसी हथियार रखने वाले 5730 ऐसे लोग हैं जिन पर दर्ज आपराधिक मुकदमों का ट्रायल चल रहा है जबकि 1061 ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज है। जजों ने कहा कि 2.13 लाख पुलिस कर्मियों के पास 2.25 लाख हथियार हैं जबकि इससे पांच गुना लोगांे के पास लाइसेंसी हथियार हैं। जजों ने टिप्पणी की कि समाज में इतने ज्यादा हथियारों का होना खतरनाक है। हथियार रखना स्टेटस सिंबल बन गया है। हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर हथियार ले जाने पर पावंदी लगाने का भी आदेश दिया था।
[box type=”info” align=”aligncenter” ]यूपी में कुल लाइसेंसी असलहे 11,04,711 एसबीबीएल 3,81,966 डीबीबीएल 3,36,954 राइफल -1,68,669 रिवाल्वर- 1,49,065 पिस्टल -54,035 कारबाइन -525 स्पोर्टस गन -96 अन्य -13882 दो हथियारों का लाइसेंस -35698 तीन हथियारों का लाइसेंस -5959 तीन से अधिक लाइसेंस -55 (प्रमुख सचिव गृह द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे के अनुसार)[/box]
उच्च न्यायालय के इस कड़े रूख के बाद गन लाइसेंस जारी करने पर जरूर रोकथाम लगी है लेकिन तमाम लोग पुलिस से मिल फर्जी केस दर्ज करा कर गन लाइसेंस के लिए आवेदन कर रहे हैं और लाइसेंस हासिल करने में सफल भी हो रहे हैं।
उच्च न्यायायल के आदेश के बाद यूपी के डीजीपी ने आदेश जारी किया कि जिस क्षेत्र में सेलिब्रिटी फायरिंग की घटना होगी उस इलाके के थानेदार को जिम्मेदार मानते हुए कड़ी कार्रवाई की जाएगी फिर भी 2015 और 2016 में तमाम ऐसी घटनाएं हुईं। यूपी में पंचायत चुनावों में जीत के बाद विजयी प्रत्याशियों द्वारा खुशी में फायरिंग करने की कई घटनाए सामने आईं। पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली जिले में सत्तारूढ़ सपा नेताओं द्वारा फायिरंग में एक बच्चे की मौत हो गई। शादियों में भी बेरोकटोक फायरिंग फायरिंग की घटनाएं हो रही हैं।
पिछले वर्ष मुझे मुझे बिहार के सीवान जिले में अपनी रिश्तेदारी में विवाह समारेाह में भाग लेने का अवसर मिला। मैने देखा कि बारात तब तक रवाना नहीं हुई जब तक आमंत्रित बंदूकधारी आ नहीं गए। ऐसा बिहार और यूपी में आम तौर पर होता है। विवाह समारोहों में लोग उन लोगों को बुलाने में खास तवज्जों देते हैं जिनके पास लाइसेंसी हथियार हैं। लोग गर्व से बताते हैं कि हमारे शादी समारोह में इतने बंदूकधारी आए और इतनी जमकर फायरिंग हुई कि शामियाने में छेद ही छेद हो गए। विवाह समारोहों, राजनैतिक सभाओं में बड़ी संख्या में बंदूकधारी देखे जाते हैं जिनकी आयोजक प्रेमपूर्वक आवाभगत करते हैं क्योंकि इससे उनकी शान में इजाफा होता है और समाज में उनका रूतबा बढ़ता है।
कुछ वर्ष पहले गोरखपुर प्रेस क्लब में पत्रकारिता पर गोष्ठी का आयोजन था। मुख्य वक्ता के बतौर दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार आए थे। सभा में तमाम बंदूकधारियों को देख वह हैरत में पड़ गए। उन्होंने तल्ख टिप्पणी भी कि लगता है कि वह पत्रकारों की सभा में नहीं कहीं और आ गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कार्यक्रम में एक पूर्व मंत्री भी आमंत्रित थे जिनके साथ बड़ी संख्या में बंदूकधारी लोग पहुंचे थे। कुछ पत्रकार भी रिवाल्वर व पिस्टल लगाए घूम रहे थे। नेता तो खुद लाइसेंसी हथियार तो रखते ही हैं, अपने साथ रहने वाले लोगों के नाम भी बंदूकों के लाइसेंस बनवाते हैं ताकि जब वह जनता के बीच जाएं तो बंदूकधारियों को देख जनता उनको ‘ मजबूत नेता ’ माने। गोरखपुर के डीएम रह चुके एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने गन लाइसेंस देने में कड़ाई शुरू की तो उनके उपर इतने राजनैतिक दबाब पड़ने लगे कि वह परेशान हो गए। आखिरकार उनका तबादला भी हो गया।
सामान्यतया क्षत्रिय, ब्राह्मण और मजबूत पिछड़ी जाति के लोग बंदूक रखते रहे हैं लेकिन नई आर्थिक नीतियों के बाद पैदा हुए नवधनिकों में भी बंदूक रखने क्रेज बढ़ा है। घर में थोड़ा पैसा आया नहीं कि लक्जरी गाड़ी खरीदते हैं और फिर बंदूक का लाइसेंस लेने की कोशिश शुरू हो जाती है। नेताओं की प्रोफाइल बिना बंदूक के पूरा नहीं होती। बहुत कम ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो रिवाल्वर, पिस्टल या बंदूक नहीं रखते हों। ठेकेदारों के लिए तो यह एक अनिवार्य सी वस्तु है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो एके सक्सेना कहते हैं कि बंदूक रखने की दीवानगी के पीछे दो तरह की मानसिकता काम करती है। पहली यह कि जो व्यक्ति बंदूक रखता है तो समाज को यह दिखाना चाहता है कि वह बहुत मजबूत है लेकिन भीतर से वह बहुत असुरक्षित महसूस करता है। दूसरा यह कि बंदूक रखना सिंबल आफ पावर है। पहले जमींदार और सामंत सिंबल आफ पावर के बतौर हाथी-घोड़ा और बंदूक रखते थे, आज लोग लक्जरी गाडि़या और बंदूक रखते हैं। बंदूक रखने का शौक नवधनिकों में सबसे अधिक देखा जा रहा है। आज हिंसा साधन भी है और लक्ष्य भी। लक्ष्य सम्पति और शक्ति अर्जित करना है क्योंकि यह अवधारणा बन गई है कि पैसे से सभी सुख प्राप्त किए जा सकते हैं और पैसा ही हमें शक्तिशाली बनाता है। इसलिए व्यक्ति का व्यवहार में हिंसक दिखना चाहता है। आज दबंग अच्छा शब्द हो गया है जबकि पहले यह शब्द किसी के लिए प्रयुक्त करने पर वह बुरा मान जाता था। अब किसी को दंबग कहने पर वह खुश होता है।
प्रो सक्सेना कहते हैं कि सोसाइटी में बड़ी संख्या में असलहों की मौजूदगी से डर लगता है। हमने दस रूपए की लेन-देन के लिए गोली मार देने की घटनाएं देखी हैं। रास्ते में चलते हुए यदि कोई बदतमीजी कर दे तो उसका प्रतिरोध करने से डर लगता है क्योंकि उसके पास बंदूक है और वह गोली चला सकता है।