राज्य

आयातित नेताओं को तरजीह से भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं मे निराशा

– मुखर होने लगे हैं खांटी भाजपाई

– गोरखपुर मंडल मे कई विधानसभा सीटों पर कमल निशान के साथ दिखेंगे दूसरे दलों से आए दिग्गज
विनोद शाही
गोरखपुर, 6 जनवरी। विधानसभा के टिकटों को लेकर रार सिर्फ समाजवादी पार्टी मे ही नही चल रहा है, भाजपा मे भी घमासान कम नही है। सपा जहां अपनो से परेशान है तो वहीं भाजपा दूसरे दलों से आए उन दिग्गजों से जो अपने क्षेत्रों मे अब कमल निशान के प्रबल दावेदार हो गये हैं। गोरखपुर मंडल मे ऐसे कई नेताओं का भाजपा से चुनाव लड़ना तय हो चुका है। ऐसे मे खांटी भाजपाई पार्टी मे अपने भविष्य को लेकर खासे चिन्तित हैं और अब यह लोग मुखर भी होने लगे हैं।चुनाव मे ऐसे नाराज कार्यकर्ता क्या गुल खिलाएंगे सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है।
वैसे भाजपा हर चुनाव मे जिताऊ उम्मीदवार के जुमले की आड़ मे दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट देने मे सभी दलों से आगे रही है। मंडल मे इसबार भी जिताऊ जुमला खांटी भाजपा कार्यकर्ताओं पर स्काईलैब बनकर गिरने वाला है मगर इसबार मिजाज बदला तो जुमले को अपनो से ही पटखनी लग सकती है। ऐसे मे सूबे की सत्ता मे भाजपा का14 साल का वनवास आगे भी जारी रह सकता है।
      2017 के विधानसभा चुनाव की रणभेरी से कई माह पूर्व ही राजनीतिक दलों मे आयाराम-गयाराम का खेल शुरू हो गया।सर्वाधिक भगदड़ बसपा मे हुई।वहां से कई विधायक पाला बदलकर रातोरात भाजपाई हो गये। हाल मे हुए विधानपरिषद और राज्यसभा के चुनावों मे भी ऐसे नेताओं के अच्छे दिन आए। पार्टी बदलने वाले इन नेताओं को अब टिकट भी चाहिए। इनमे से कई ऐसे भी है जो पूर्व मे भाजपा को भी ठेंगा दिखा चुके हैं। तब इन्होने पार्टी और उसके नेताओं की खूब लानत-मलानत भी की लेकिन अब फिर मोदी और भाजपा की शान मे कसीदे पढ़ रहे हैं।
गोरखपुर जिले की कई सीटों पर ऐसे बाहरी ताल ठोक रहे हैं। कैम्पियरगंज सीट से पिछली बार एनसीपी से लड़कर विधायक बने फतेह बहादुर सिंह इसबार फिर भाजपा मे आ चुके हैं। वह कांग्रेस, भाजपा, बसपा समेत कई दलों मे रहे और पाला बदलकर विधायक बन गये। बहुचर्चित चिल्लूपार से दो बार के हाथी सवार विधायक/ मंत्री राजेश त्रिपाठी ने राज्यसभा चुनाव के  फौरन बाद पाला बदला।अब उन्हे हाथी नही कमल की जरूरत है। पिपराईच सीट पर अब कई बार दल बदल कर चुके और फिलहाल जेल मे सजा काट रहे जितेन्द्र जैसवाल ( पप्पू जैसवाल) अपनी पत्नी अनीता को भाजपा में लाये हैं। गोरखपुर ग्रामीण से विधायक रहे विजय बहादुर यादव इस बार भाजपा छोड़ सपा मे हैं तो इस सीट से कौड़ीराम के पूर्व विधायक रहे अम्बिका सिंह के पुत्र विपिन सिंह तथा पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद भाजपा मे आ चुके हैं। यही दोनो यहां से मुख्य उम्मीदवार हैं। यह लोग भी कई दल बदल चुके हैं।  कुशीनगर जिले की खड्डा से कांग्रेस के विधायक विजय दुबे भाजपा के पर 2009 का लोकसभा चुनाव लड़े। हर्णे के बाद कांग्रेस में चले गौए और विधायक बन गए। अब उन्होने फिर पाला बदल लिए है और भाजपा से टिकट के दावेदार हैं। 2014 लोकसभा का चुनाव बसपा से लड़े संगम मिश्रा भी अब भाजपा में हैं। पड़रौना स्थित उनका घर पहले नीले रंग में रंगा था लेकिन अब उसका रंग भगवा हो चुका है।
        दलबदलुओं का बड़ा लंबा चौड़ा इतिहास है। इन्हे राजनीतिक दल जब अपने पाले मे लाते हैं तो इन्हे जिताऊ कहा जाता है लेकिन जब ये लोग पाला बदलकर सत्ता की मलाई खाने निकल लेते हैं तब यही दल इन्हे गद्दार करार देते हैं।सच क्या है यह दलों का हाईकमान जाने मगर इसकी सीधी चोट खाते हैं दलों के वे कार्यकर्ता जो अपनी पार्टी को मजबूत करने मे सारी जवानी खपा देते हैं। ऐसे कार्यकर्ता सभी दलों मे हैं लेकिन भाजपा मे भरमार है।इनका आरोप है जब- जब भाजपा के अच्छे दिन आते हैं ये बाहरी जिताऊ के नाम पर सीटें छीन लेते हैं और जमीनी कार्यकर्ता ठगा महसूस करता है। जिले की सभी सीटों पर जमीनी कार्यकर्ता हैं मगर उन्हे किन्ही वजहों से दरकिनार कर दिया जाता है।कुछ बड़े नेताओं की निजी पसंद भी बड़ी भूमिका निभाती है। शायद यही कारण है दूसरे दलों मे रहे कई लोग सांसद, विधायक हैं। भाजपा के कई पुराने कार्यकर्ता इसबार टिकट के दावेदार हैं मगर इनकी राह मे उधार के ये जिताऊ नेता बड़ी बाधा हैं। इन्हे स्थानीय क्षत्रपों का समर्थन भी है। बावजूद इसके इस बार इन दलबदलुओं के खिलाफ कार्यकर्ता के स्वर मुखर हो रहे हैं और नाराज कार्यकर्ता मैदान मे कूद पड़ा तो दल की चिन्ता बढ़ा सकती है।

Related posts