गोरखपुर , 18 जनवरी। कवयित्री एवं कथाकार डॉ रंजना जायसवाल के दूसरे उपन्यास ‘त्रिखंडिता’ का लोकार्पण 14 जनवरी को विश्व पुस्तक मेले में हुआ। यह उपन्यास वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ हुआ है।
डॉ रंजना जायसवाल का पहला उपन्यास ‘ …और मेघ बरसते रहे ‘ 2013 में प्रकाशित हुआ था। उनके सात कविता संग्रह , दो कहानी संग्रह और लेखों का एक संग्रह आ चुका है।
उनके दूसरे उपन्यास ‘त्रिखंडिता’ के बारे में आलोचक राजीव रंजन गिरि ने यह लिखा है -‘ स्त्रीवादी रचनाकार रंजना जायसवाल की ‘त्रिखंडिता’ तीन स्त्रियों — अनामा, श्यामा और रमा– की जीवन-राग से भरी कथा है। ये तीनों एक स्तर पर एक ही स्त्री के अलग- अलग रूप हैं तो दूसरे स्तर पर एक – दूजे से स्वायत्त भी। तीनों के जीवन में कई जीवन समाहित हैं ,खंडित भी और सम्पूर्ण भी। ये तीनों मिलकर त्रिखंडिता हैं। खंडित जिंदगी के लिए अभिशप्त। सम्पूर्णता की चाह में ही इन्हें मिलता है खंडित जीवन। चाहत और हासिल की कशमकश में थोड़ी जगह अपने लिए, अपनी अस्मिता के लिए, बनाने और बचाने का यत्न बार- बार करती हैं। तीनों के भीतर एक अकुलाहट है, उड़ान की। पर जिस जमीं और आसमां के वृत्त में इन्हें उड़ान भरनी है वह बेहद मजबूत, संकीर्ण और कँटीला भी है। नतीजतन इनके पंख बार- बार जख्मी होते हैं, पर हौसला नहीं। ये हार नहीं मानतीं। जख्म भरते ही पुनः पंख फड़फड़ाती हैं, हौसला भरती हैं और जख्म पाती हैं। जिस संरचना से इन्हें यातना मिलती है, उसमें भरी-पूरी दुनिया शामिल है; स्त्री और पुरुष दोनों इसके किरदार हैं।
उपन्यासकार ने महज सिद्धांत निर्मिति के लिए न तो ‘अन्य’ का स्याह चित्रित किया है और न कोई सार्वभौम सच साबित करने के मकसद के निमित्त कथा को उपकरण ही बनाया है। जीवन के छोटे- छोटे प्रसंगों के सहारे, पात्रों – चरित्रों के जीवन के अलग- अलग रंगों को अपनी कलम- कूँची से उकेरकर औपन्यासिक वितान रचा है।
यही कारण है कि त्रिखंडिता की कथा अनामा, श्यामा और रमा की जीवन- कथा तक सीमित न रहकर, दौर विशेष की स्त्री- कथा प्रतीत होती है। ‘