अशफाक अहमद/सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 11 फरवरी। सांसद योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखनाथ चक्शा हुसैन में बनुकरों ने उप्र चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है और साथ ही बुनकर बाहुल्य क्षेत्रों में बैनर लगाकर नेताओं का प्रवेश वर्जित भी कर दिया हैं। शानिवार को बड़ी तादाद में उक्त क्षेत्रों में प्रदर्शन भी किया गया।
सभी ने एक स्वर में कहा कि पार्टियों द्वारा घोषणा पत्र में बुनकरों के लिए कुछ नहीं हैं। केंद्र सरकार के बजट में भी मामला सिफर रहा। हर बार की तरह इस बार भी बुनकरों की समस्या चुनावी मुद्दा नहीं है। बुनकरों का कोई पुरसाहाल न था और न कोई हैं।
महंगाई की मार और काम का दाम न मिलने से बुनकरों के समक्ष रोजी रोटी के लाले पड़ गय हैं । पहले हथकरघा उद्योग बन्द फिर अब पावर लूम भी बन्द हो गये। बुनकर अपने लूम औने-पौने दाम पर काबाड़ी के हाथ बेच रहे हैं। बुनकर समाज ने चुनाव से दूर रहते हुए नेताओं को आगाह किया नेताओं का प्रवेश वर्जित हैं खुले तौर पर चुनाव का बहिष्कार कर नाराजगी जता दी हैं।
गोरखनाथ लगायत तिपरापुर, तिवारीपुर, मोहनलालपुर रसूलपुर चक्सा हुसैन में एक बहुत बड़ी आबादी बुनकरों की है। आज लगभग 15 बुनकर जिनके पास 10-20 लूम हैं वह कबाड़ में बेच रहे हैं। बुनकारों के पुश्तैनी कारोबार बंद होनेे जा रहा है। सरकारी योजनाओ से उपेक्षित बुनकरों ने चुनाव में किसी भी पार्टियों के नेताओं को आने के लिए प्रवेश वर्जित कर दिया और चुनाव का बहिष्कार का किया।
मौलाना ओबैदुर्रहमान ने बताया कि मेरे पास 20 लूम पर मारवाड़ी के कपड़े बिनाई का काम हो रहा था। बिनाई के काम के बदले उचित मजदूरी न मिलने से घाटा होने लगा। 1993 में मिलने वाली मजदूरी 5 रूपये 10 मीटर रही लेकिन 24 वर्षों में मंहगाई आसमान छूने लगी और बुनकरों की मजदूरी 3 रूपए 10 पैस हो गई। उन्होंने कहा कि हम लोगों की मजदूरी से बड़े सेठ मलाई काटते हैं। हम बुनकर दिन रात मेहनत करके भी दो वक्त की रोटी मयस्सर नहीं हो पाती।
शासन द्वारा चलायी गयी योजनाएं लगातार बंद हो रही है। 1975-76 में सूती धागा उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश में 23 कताई मिल लगायी गई। कपड़ों की बिक्री की समस्या के समाधान के लिए हथकरघा विकास निगम की स्थापना हुई। यह निगम करीब 17 सालों से बंद है। कताई मिले बंद हैं। ऐसे में हथकरघा पर काम करने वाले बुनकर लोगों को रोजगार देने वाले आज मजदूर बन गये। घर चलाना मुश्किल होता है। बच्चों के तालीम की बात तो दूर की कौड़ी है। जो योजनाएं चल रही है। उनके बारे में जानकारी नहीं है।
बदरूज्जमा ने बताया कि कई माह से पावर लूम पर काम नहीं हो रहा 15 पावर लूम की मशीनें शोपीस बन कर पड़ी हैं। 80 हजार की मशीन 12 हजार में कबाड़ी के हाथ बेंच रहा हूं। रोंधे हुए कहते हैं कि अब तो पुश्तैनी कारोबार बंद हो गया। बुनकरों के भलाई के लिए योजनाएं है। लेकिन कागजों पर। बुनकर कार्ड शो पीस की शक्ल में। बुनकर बहबूद सोसाईटी भी नाम की हैं। सरकारें आयी और चली गयी। वादे किये। दावे किये। अमल नहीं किया। बुनकरों को हमेशा वोट बैंक समझा। गोररखपुर की विश्व धरोहर कला खत्म होने के कागार पर है। हथकरघाा की जगह पावरलूमों ने ले ली। लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हुई। आजादी के बाद से ही इनकी बदहाली शुरू हुई जो अब तक जारी है।
बदरे आलम ने कहा कि जमा पूंजी से हम लोग घर के खर्च चला रहे हैं। बुनकरों ने अपने हुनर के बदौलत देश में नहीं विदेशों में भी अलग पहचान बनायी। गोरखपुर की बनी चादर, तकिया, धोती, लुंगी, नेपाली टोपी का कपड़ा, गमछा सहित तमाम कपड़ों की काफी डिमांड थी। आज भी हैं। इसकी शोहरत दूर-दूर तक है। बुनकरों की समस्याएं इतनी कि दो जून की रोटी चलाना मुश्किल। पहले जहां जमुनिहया, रसूलपुर, दशहरी बाग, जाहिदाबाद, पुराना गोरखपुर, गोरखनाथ, अजय नगर, कामरेड नगर, नौरंगाबाद, बख्तियार, हुमायुंपूर, पिपरापुर, इलाहीबाग, तिवारीपुर, बनुकर बाहुल्य क्षेत्रों में चौबीस घंटे खटर-पटर की आवाज खामोश होेने के कागार पर है।
हाजी शमीउल्लाह अपना दर्द बयां करते हैं हुये कहते हैं कि पसमांदा मुस्लिम समाज की आर्थिक, सामाजिक बदहाली तकदीर बन चुकी है। हालात इस बात के गवाह है कि सरकारों ने इन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया और आज भी कर रहे है।
हाफिज अब्दुस्सलाम ने बताया कि हमारी बदहाली की बड़ी वजह कच्चे माल का न मिलना भी है। धागों के बढ़ते रेट ने रोजी रोटी पर संकट खड़ा कर दिया है।
सरकार ने हमारे तरफ ध्यान नहीं दिया। धागा मिलें बंद हो गयी। इससे बुनकरों की कमर टूट गयी। पहले हम मालिक थे अब मजदूरी करने को विवश। धागों के मूल्य में इजाफा ने जले में नमक का काम किया। योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं हे। बुनकर फंड, समय से सूत न मिलना सहित तमाम समस्याओं की वजह से बदहाल हो चुके है।
हाजी राजू मसीहउल्लाह ने कहा कि बुनकरों की स्थिति बेहद खराब है। अजीजुल्लाह ने कहा कि मजदूरी, धागा, बिजली सहित तमाम सारी समस्याओं से हालात बद से बदतर हो चुके है।
शाहिद अली ने कहा कि महंगाई ज्यादा हो गयी। सूत महंगा हुआ। बुनकर की कमर टूट गयी। सरकार अगर तवज्जों देती तो स्थिति कुछ बेहत होती।