साहित्य - संस्कृति

‘ नया फरमान जारी कर रहा है रोज बस्ती में, कही खतरे में उसकी ही सरदारी न पड़ जाये ‘

कवि एवं शायर राजेश राही के रचनाएँ 

 

[highlight]( कवि एवं शायर राजेश राही कुशीनगर में रहते हैं और कवि सम्मेलनों और मुशायरों की जान हैं। उनके शेर और कतात लोगों कि जुबां पर रहते हैं। फक्कड़ स्वभाव के राजेश राही उन गिने चुने शायरों में हैं जो जनता के दुख दर्द को अपनी रचना का विषय बनाते हैं।  गोरखपुर न्यूज़ लाइन के पाठकों के लिए हम राजेश राही के चंद कतात प्रस्तुत कर रहे हैं )[/highlight]

 

(1) 

सफर मुश्किल भरा हो तो कलाई छोड़ देता है /
वो मंजिल से ही पहले रहनुमाई छोड़ देता है //
बचाते डूबने से तुम मुझे आखिर भला कब तक /
जो पानी से उपर हो तो भाई छोड़ देता है //

(2)

वो जिनके हौसले तुफान का रुख मोड़ देते हैं /
वही दुनिया की हर झूठी रवायत तोड़ देते //
उठा लाते हैं जाकर आस्माँ से चाँद तारों को /
परिन्दा फिक्र का जिस दिन खुला हम छोड़ देते हैं //

(3) 

हम अपने आप से जिस रोज उनको दूर कर देंगे /
उन्हे शीशा समझकर लोग चकनाचूर कर देंगे //
कबीले पर हुकूमत आपकी रहने ना पायेगी /
हमे सच बोलने पर आप जब मजबूर कर देंगे //

(4) 

जरा सी बात पर माँ बाप से जो रूठ जाते हैं /
वही बच्चे नुमाइश मे किसी दिन छूट जाते हैं //
फलक तो चाहता है सब चमकते ही रहें लेकिन /
गलत सोहबत मे पड़कर कुछ सितारे टूट जाते हैं //

(5)

शहादत के लिए हर वक्त जो तैयार होता है /
हकीकत में कबीले का वही सरदार होता है //
बुजुर्गों के दिखाये रास्ते पर जो कदम रख दे /
वही बेटा विरासत का सही हकदार होता है //

(6)

ये किसने कह दिया यारों कि नेता अब नही देते /
जुबां से सिर्फ देना हो लहू तो कब नही देते //
वतन की रहनुमाई तो सभी को रास आती है /
वतन पे जाँ फिदा करने को बेटा सब नही देते //

(7)

सुना है कि समन्दर को बहुत गुमान आया है /
उधर ही ले चलो कश्ती जिधर तुफान आया है //
नही बिकने का गम यारों मुझे इस बात का गम है /
मेरी कीमत लगाने शहर का बेईमान आया है //

(8)

कहानी में नही आता पहेली से नही जाता /
ये छाला क्यूँ कभी मेरी हथेली से नही जाता //
उन्हे आना पड़ेगा गांव की गुमनाम गलियों में /
सदन का रास्ता उनकी हवेली से नही जाता //

(9)

शिकायत है तुम्हें तनख्वाह क्यूँ मोटी नही मिलती /
उन्हे देखो जिन्हें दो जून की रोटी नही मिलती //
गरीबों का लहू पीते नही तो और क्या करते /
पसीने की कमाई से तो ये कोठी नही मिलती //

(10)

गले की फांस उसकी ये समझदारी न पड़ जाये
कही ये फैसला मुंसिफ पे ही भारी न पड़ जाये।
नया फरमान जारी कर रहा है रोज बस्ती में,
कही खतरे में उसकी ही सरदारी न पड़ जाये।।

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